नीला आकाश,
नीला सागर,
कितना गहन ।
हवा सा बहता,
पारे सा फिसलता,
चंचल मन ।
फूलों की खुशबू सी,
छुपाये न छुपे
ये अपनी प्रीत ।
ये ना माने,
ना पहचाने,
दुनिया की रीत ।
पर तन मन को
दे जाती है
कितनी उजास ।
मानना ही पडेगा
तुमको भी
कि ये है खास ।
आदरणीय आशा जी सादर प्रणाम, कैसे हैं आप? ईश्वर से कामना है कि आप स्वस्थ होगें। आपसे अनुरोध है कि आपनी रचनाओं से रंगकर्मी को सुशोभित करते रहें। कॉफी समय से आपकी कोई रचना ना आना चिन्ता का विषय बन रहा था किन्तु आज आपकी रचना देखकर प्रसन्नता हुई। उम्मीद है आपका आशीष रंगकर्मी को सदैव मिलता रहेगा।
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3 comments:
sach kaha, preet,sneh,payar hee to zindagi ke andhere dur karta hai, narayan narayan
आदरणीय आशा जी सादर प्रणाम, कैसे हैं आप? ईश्वर से कामना है कि आप स्वस्थ होगें। आपसे अनुरोध है कि आपनी रचनाओं से रंगकर्मी को सुशोभित करते रहें। कॉफी समय से आपकी कोई रचना ना आना चिन्ता का विषय बन रहा था किन्तु आज आपकी रचना देखकर प्रसन्नता हुई। उम्मीद है आपका आशीष रंगकर्मी को सदैव मिलता रहेगा।
परवेज़ जी आपके स्नेह के लिये बहुत आभार. कई बार व्यस्तता या केवल कुछ ना सूझने की वजह से भी नही लिखा जाता पर कोशिश करती रहूंगी ।
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