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Monday, May 11, 2009

ज़िन्दगी को मौत के पहलू मे पाता हूँ.....

ऐ काश देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को,

मैं जब तारों पर नज़रें गड़ाकर आंसू बहाता हूं

तसव्वुर बन के भूली बातें याद आती हैं,

तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्‍दत से पहरों तिलमिलाता हूं

कोई ख़्वाबों में ख़्वाबिदा उमंगों को जगाती है,

तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूं

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