ऐ काश देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को,
मैं जब तारों पर नज़रें गड़ाकर आंसू बहाता हूं
तसव्वुर बन के भूली बातें याद आती हैं,
तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिलमिलाता हूं
कोई ख़्वाबों में ख़्वाबिदा उमंगों को जगाती है,
तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूं
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