"हाल-ऐ-दिल"
पलकों पे आए और भिगाते चले गए,
आंसू तुम्हारे फूल खिलाते चले गए..
तुमने कहा था हाल-ऐ-दिल हम बयाँ करें
हम पूरी रात तुम को बताते चले गए...
मुद्द्त के बाद बोझील पलकें हो जो रही,
हम लोरियों से तुम को सुलाते चले गए...
तुम्ही को सोचते हुए रहने लगे हैं हम,
तुम्ही के अक्स दिल में बसाते चले गए....
अब यूँ सता रहा है हमें एक ख़याल ही,
हम तुम पे अपना बोझ बढाते चले गए .........
Thursday, August 28, 2008
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4 comments:
बहुत खुब, धन्यवाद
सहज सरल शब्दों में गहन अभिव्यक्ति !
सुंदर अभिव्यक्ति.
Bahut sunder
अब यूँ सता रहा है हमें एक ख़याल ही,
हम तुम पे अपना बोझ बढाते चले गए .
kya bat hai.
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