Wednesday, August 6, 2008
जब तक न छेद हो
जब तक न छेद हो
जल रिसता नही है
जब तक न भेद हो
किला ढहता नही है
जब तक न फूट हो
घर नही टूटता
जब तक न शुबह हो
छूटता हाथ नही है
दुश्मन को माफ करना
है अपना कतल ही
सांप से तो डसना
कभी छूटा नही है
घर अपना बचाना तो
मालिक का काम है
औरों के भरोसे तो
इसे होना नही है
घर अपना मानते हो,
बचालें इसे मिलकर
किसी एक के बस का
ये काम दिखता नही है ।
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2 comments:
Asha ji aapki bhaut bhaav pradhaan gazal padhi
bhaut achha laga
jab tak bhed na ho kil adhata nahi bhaut achhi baat kahi hai aapne
आपने इन पंक्तिययों में देश काल वातावरण पर कटाक्ष के साथ ही अंतत: सीख भी दी है। एकजुटता का अच्छा आह्वान है। कृति उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद।
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