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Saturday, July 26, 2008


"बस यूँही ......"


है बडा दिलनशी प्यार का सिलसिला ,

मेरे दिल को है तेरे दिल से मिला .
तुम मुझे बस यूँही प्यार करते रहो ,
बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही ......


दिन गुज़र जाने पर रात होती है यूँ ,
दिल से तेरे मेरी बात होती है यूँ ,
मुझसे तुम बस यूँही बात करते रहो

बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही ......


दिल में मेरे जला कर मोहब्बत के दीप ,
तुम ने उम्मीद को कर दिया है समीप ,
इनको बुझने ना देना जलाते रहो ,

बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही ......


मेरी दुनिया को था बस तेरा इंतज़ार ,
इसको महका दिया तुने जाने बहार ,
इस चमन में खड़े मुस्कुराते रहो ,

बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही

Tuesday, July 22, 2008

सियासत ... सौदे ........ और सवाल ?


एक बार फिर संसद शर्मसार हुई। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से दुनिया के सामने नंगा हो कर खडा हो गया। हालांकि यह पहली बार नही की भारत की संसद में कोई शर्मिंदा कर देने वाली कोई घटना घटी हो पर जिस तरह ये सब हुआ, शायद देश हमारे नेताओं को कभी माफ़ नहीं कर पाएगा।
हुआ यह की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लगातार विपक्ष की ओर से सरकार पर सांसदों की खरीद फरोख्त के आरोप लगे, जिसके जवाब में प्रधानमन्त्री ने कहा की सबूत पेश करें और जवाब में भाजपा के तीन सांसद लोक सभा के अन्दर आए और पूरे देश के सामने ( लाइव ) निकाल कर रख दिए नोटों के बण्डल और चिल्ला कर कहा की ये उन्हें घूस के तौर पर दिए गए।
हो सकता है की ये रूपए उनको दिए गए हो, या फिर ना भी दिए गए हों पर दुर्भाग्य ये रहा कि ये सब देश की गरिमा की प्रतीक भारतीय संसद के अन्दर हुआ। हम सब जानते हैं कि ये सब जोड़ तोड़ होती है पर शायद कभी सोचा नही था कि ये सब टीवी पर लाइव देखने पर मिलेगा।
इधर भाजपा के सांसद अमर सिंह और अहमद पटेल पर घूस देने का आरोप लगा रहे हैं तो अमर सिंह, मुलायम सिंह और कांग्रेस सफाई देने में जुट गई है .................................... टीवी चैनलों को साल का सबसे बड़ा मसाला मिल गया है और आम आदमी परेशान है कि इन लोगों को उसने देश की रक्षा और उत्थान के लिए चुन कर भेजा है ?
अभी हाल ही में एक टीवी न्यूज़ चैनल ज्वाइन किया है और आज की बड़ी ख़बर पर लोगों का चेहरा खिला है कि आज टी आर पी का दिन है पर मेरा जी कुछ भारी हो रहा है। देख कर सोच रहा हूँ कि दुनिया शायद बहुत प्रोफेशनल हो गई है। कल के दुश्मन आज के दोस्त ....... और कल के भाई आज ..................... क्या मतलब इतना मतलबी बना देता है ?
कहीं हम सब ऐसे हो गए हैं क्या ?
क्या सच हमेशा इतना ही कड़वा होता है ?
बशीर बद्र साहब के कुछ शेर याद आ गए हैं तो रख ही देता हूँ .....
जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता ।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

वो बड़े सलीके से झूठ बोलते रहे
मैं ऐतबार ना करता तो और क्या करता

कभी सोचा नहीं था कि हमारे प्रतिनिधि देश के विकास के प्रतिरोधक बन जाएँगे ........... क्या दुर्भाग्य वाकई इतना दुर्भाग्यशाली होता है ?
...................................................
मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com

"चले आओ"





"चले आओ"


आज फिर दिल तुझे याद किए है
"चले आओ"
आज फिर हर एक फरियाद लिए हैं
"चले आओ"
हर तरफ़ मायूसियों से घिरे साए हैं
आज फिर ये दिल परेशान किए है
"चले आओ"
हर एक चोट सिसक कर उभर आई है
आज फिर हर ज़ख़्म से लहू बहे है
"चले आओ"
ये दिल बेआस, हर निगाह में प्यास है,
आज फिर मुलाकात को दिल चाहे है
"चले आओ"
शिकवे किए खुद से, और शिकायतें भी हैं,
आज फिर हमें ये किस्से उलझाएँ हैं,
"चले आओ"
तेरे आने का गुमान करती हर आहट है,
आज फिर ज़िंदगी से पहले मौत आए है
"चले आओ"

Friday, July 18, 2008



यादें"

बहुत रुला जाती हैं , दिल को जला जातीं हैं ,
नीदों मे जगा जाती हैं , कितना तड़पा जातीं हैं ,
“यादें" जब भी आती है ”
भीगे भीगे अल्फाजों को , लबों पर लाकर ,
दिल के जज्बातों को , फ़िर से दोहरा जाती हैं ,
“यादें जब भी आती हैं ”
खाली अन्ध्यारे मन के , हर एक कोने मे ,
बीते लम्हों के टूटे मोती , बिखरा जाती हैं ,
“यादें जब भी आती है ”
हम पे जो गुजरी थी , उन सारी तकलीफों के ,
दिल मे दबे हुए , शोलों को भड़का जाती हैं ,
“यादें जब भी आती हैं ”
कितना सता जाती हैं , दीवाना बना जाती हैं ,
हर जख्म दुखा जाती हैं , फ़िर तन्हा कर जाती हैं ,
“यादें जब भी आती हैं ”

क्राइमग्राफ घटा लेकिन अपराध बढ़ा

दिल्ली पुलिस आयुक्त वाइ एस डडवाल कल मिडिया से मुखातिब हुए....मैसेज मिलते ही की आज पुलिस कमिश्नर पीसी करेगें... सभी मिडिया कर्मियों के दिमाग में सिर्फ एक ही बात आयी....शायद बाइकर्स गैंग पकड़ा गया..... सभी प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मिडिया अपने अपने तरीके से खबरो को पेश करने के लिए तैयारी में जुट गया....... पुलिस मुख्यालय में ओबी वैन की कतार लग गयी.... सबको इंतजार होने लगा २ बजने का........ पूरा कॉफ्रेंस हॉल ठसाठस भर गया.... कई चैनल से तो तीन-तीन लोग आए थे....सबने अपने लाइव की तैयारी भी कर ली..... दो भी बज गए......और फिर हॉल में आगमन हुआ दिल्ली पुलिस कमिश्नर का...........कैमरा रोल हुआ.......सबके पेन और डायरी लिखने के लिए खुले.......और कमिश्नर साहब बोले.........लेकिन ये क्या कमिश्नर साहब ने पीसी की शुरुआत में ही दिल्ली पुलिस के कामयाबी में कसीदे गढ़ने लगे....दिल्ली पुलिस ने ६० लाख रुपए के जेवर और नकदी की रिकवरी की...... हत्या गका मामला सुलझा लिया गया.......आठ बदमाश पकड़े गए........ जैसे कई तीन छोटे छोटे मामले का खुलासा किया........सभी को लगा कि शायद अब..... ब्रेकिंग न्यूज़ आएगा... बाइकर्स पकड़े गए....हर चैनल के वरिष्ठ पत्रकार भी लाइव फुटेज पर नज़रे गड़ाए हुए थे..... पौज़ लेने के बाद जैसे ही डडवाल जी ने दुबारा बोला.........और जो बोला वो सचमुच में ब्रेकिंग न्यूज़ था..... दिल्ली में क्राइम का ग्राफ कम हुआ है...... दिल्ली पुलिस ने 83फिसदी क्राइम को सुलझाया है....वेलडन दिल्ली पुलिस एक तरफ जहां पूरी दिल्ली दहशत में है.... हर एक आदमी के जहन में सिर्फ एक ही खौफ छाया हुआ है.... बाइकर्स गैंग के हत्थए हम न चढ़ जाए..... ऐसे में कमिश्नर साहब की ये वाहवाही किसी के भी पल्ले नहीं पड़ी..... एक सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि लोग बढ़े है... तो अपराध भी बढ़ा है... लेकिन उससे ज्यादा बढ़ा है उसको सुलझाने का ग्राफ.... अब कमिश्नर साहब काश ये समझ पाते कि दिल्ली वासी ग्राफ से नहीं अपराध से प्रभावित है....... खैर जो सोच कर सभी आये थे वो तो मिला नहीं.... हा ये सवाल ज़रूर सबके मन में उठा कि डडवाल जी को इन छोटे छोटे मामलो पर मिडिया से रुबरु होने की जरुरत क्यों पड़ी..... क्या दिल्ली को दहशत में देखकर पुलिस विभाग भी दहशत में आ गया.... या फिर मुख्यमंत्री के रिपोर्ट मागंने से पहले..... वाहवाही कर अपना कवच बनाने की चाहत थी......सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात तो ये थी कि जिस समय ये पीसी चल रीह थी..... उसी समय खबर आयी कि बवाना में एक व्यक्ति की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई.... और पीसी शुरु होने से पहले ..... अशोक विहार के सरकारी स्कूल में छात्रा के साथ बलात्कार की वारदात हो चुकी थी..... क्या वाहवाही के सुर में कमिश्नर साहब को अशोक विहार की वारदात पहले से नहीं पता थी........ शायद नहीं...... लेकिन सवाल अब भी वहीं है कि दिल्ल की जनता बेखौफ होकर सड़को पर कब घूमेगी.....कब ज़हन से ये डर मिटेगा कि हम शाम को घर सही सलामत वापस आ पाएंगे भी या नहीं.....दिल्ली पुलिस को लोगो के ज़हन से ये डर मिटाना होगा तभी सही मायने में क्राइम ग्राफ गिरेगा और अपराध भी.....................

बदल रहा है जमाना

बदल रहे है रास्ते बदल रहे है लोग इंसानियत की दहलीज़ से गिर रहे है लोग वक़्त की नजाकत भी देखिये क्या खूब है नाम राम और खुदा का लिए खंजर संभाले चल रहे है लोग बदलते ज़माने मैं कितने बदल गए है लोग अपनी सरजमी पे मिली विरासत की एकता को भूल गए है लोग कितनी जद्दो जेहद मैं फस गए है लोग अपनी ही दोस्ती को भूल गए है लोग जिधर देखो ऋत्विक दिल मैं नफरत की आंधी लिए चल रहे है लोग इस गहरी अंधी खाई मैं गिर रहे है लोग

Thursday, July 17, 2008


"हो जाने दो "

ना छुपाओ अपने वजूद को इस जमाने से ,
की ,दुनिया मे ख़ुद की पहचान हो जाने दो.
आईना हूँ , तेरा त्स्सब्बुर नज़र आऊंगा ,
की , मुझे अपने अक्स मे एक बार ढल जाने दो.
मोहब्बत गुनाह ही सही, पर खूबसूरत तो है ,
की , इश्क मे आज अपने बदनाम हो जाने दो.
दिल की धड़कन , शोला -ऐ - एहसास ही सही
की , इस आग मे आज मुझको जल जाने दो.
हाँ, मोहब्बत है मुझसे , ये इकरार कर लो
की , अपने आगोश मे मुझको बिखर जाने दो .....

Wednesday, July 16, 2008

एकीस्वी सदी मैं दुन्दते रह जाओ गे

बच्चो मैं बचपन , जवानों मैं योवन शीशो मैं दर्पण , जीवन मैं सावन गाँव मैं अखाडा , सेहर मैं सिंगाड़ा और टेबल की जगह पहाडा दुन्दते रह जाओगे.. आँखों मैं पानी , दादी की कहानी प्यार के दो पल , नल नल मैं जल संतो मैं वाणी , करण जैसा दानी घर मैं मेहमान , मनुष्यता का सम्मान पड़ोस की पहचान , रसिको के कान तराजू का बट्टा और लड़कियों का दुप्पटा दुन्दते रह जाओगे भरत सा भाई , लक्ष्मण सा अनुयाई चूड़ी भरी कलाई , शादियों मैं शेहनाई मंच पर कविताई , गरीब को खोली और अगन मैं रोली , परोपकारी बन्दे और अर्थी को कंधे धुन्द्ते रह जाओगे कट्टरता का उपाय ,सबकी राय नेताजी को चुनाव जितने के बाद लखनऊ मैं रहित आस , सास लेने को ताज़ी हवा सरकारी अस्पतालों मैं दावा , संस्कृति का सम्मान और नक्शे मैं पाकिस्तान धुन्द्ते रह जाओगे जवाहर जैसे इज्ज़त , सुबाश जैसे हिम्मत पटेल के इरादे , शास्त्री सीधे सादे पन्नाधाय का त्याग , रानी लक्ष्मीबाई की आग स्वामी विवेकानंद का स्वाभिमान , इन्द्रा जैसे बोल्ड अटल बिहारी जैसा ओल्ड , महात्मा जैसा गोल्ड और मायावती जैसे फ्री होल्ड , दुन्दते रह जाओगे बस दुन्दते रह जाओगे.. ऋत्विक विसेन

मायावती जी का आदेश टॉप १० बदमाश पकडे जाए

उत्तर प्रदेश की पुलिस पशोपेश मैं है , शाशन की आज्ञा कैसे पूरी कर पाएंगे और सारे अपराधी जब ख्दर पहन चुके , दूड़ने को क्या उन्हें हम बिहाडो मैं जायेंगे और छोटे मोटे आपराधियों को भेज देंगे जेल , मुख्यमंत्री जी को एक अयेना दिखाएंगे की आप के ही द्वारा मनोनीत मंत्रिमंडल मैं , दुन्डोगे तो टॉप 10 वही मिल जायेंगे. ऋत्विक विसेन

लालू जी का बिहार

न्याय और नेतिकता दोनों को पचा चुके है लालू जी हमारे पद छोड़ नहीं पाएंगे. यादवो के रजा थे , वो कृष्ण जी के वंसज थे बासुरी बजी नहीं तो बास्डा बजा देंगे , और एक ही डकार मैं बिहार को पचा लिया है , धीरे धीरे दल और देश को पचयंगे , और हम कहे आप कहे , पुन्य कहे पाप कहे लालू जी के बाप कहे , लालू नहीं जायेंगे. ऋत्विक विसेन

"ऐसे ही"

ऐसे ही हम क़रीब नही आ गए होंगे,
रब ने ही यूं तकदीर बनाई हुई होगी...

ऐसे ही हम बाँहों मे समाये नही होंगे,
किस्मत ने वजह ज़रूर कोई पाई हुई होगी...

ऐसे ही हम ने अपनी बीती को बताया नही होगा,
हमदर्द बन के तुम जब तलक नही आयी हुई होगी...

ऐसे ही दिल की गहराईओं में तुम समाई नही होती,
कोई तो तेरी बात दिल को मेरे लुभाई हुई होगी....

ऐसे ही मेरे पास चली आओ तुम एक दिन,
वरना ये ज़िंदगी मेरी ऐसी ही गंवाई हुई होगी.........!








Tuesday, July 15, 2008

" आज फिर"










" आज फिर"

आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है,
आज फिर तेरी याद चली आयी है .

दिल ने कहा ताजा कर लें वो सारे गम,
आज फिर हमने जख्मों की किताब उठाई है.

लबों ने चाहा कर लें खामोशी से बातें हम,
आज फिर हमने अपनी तबीयत बेहलाई है.


नज़र मचल गई है एक दीदार को तेरे
आज फिर तेरी तस्वीर नज़र आयी है.

रहा नही वायदों और वफाओं का वजूद कोई,
आज फिर हर एक चोट उभर आयी है.

आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है,
आज फिर तेरी याद चली आयी है .


आज फिर हमने चाहा करें टूट कर प्यार तुम्हे ,
आज फिर दिल म वही आग सुलग आयी है.

आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है,
आज फिर तेरी याद चली आयी है .

Monday, July 14, 2008

"मैं "













"मैं "

कलमों के टूटे ढेर थे मैं छेड़ता रहा,
लफ्जों के हेर फेर ने समझा नहीं मुझे....
कच्ची थी सोंधी ख़ाक में मैं बोलता रहा ,
चाकों के एतबार ने चूप्का किया मुझे...
लौहएमकान का का राज़ था क्यों फाश हो गया ,
कुत्बों के इन्तखाब ने रुसवा किया मुझे ... ..
खारे -चमन था लेकिन चुप चाप जी गया ,
कलियों की बेकली ने तड़पा दिया मुझे ....








Thursday, July 10, 2008

संघर्ष .....................

पिछले कुछ माह से पहले एक प्रशिक्षु के तौर पर ( Intern ) के तौर पर और फिर संघर्ष प्रक्रिया की पूर्ति के लिए नॉएडा - गाजिआबाद - दिल्ली में हूँ ...... हालांकि अब संघर्ष पूर्णता की ओर है पर इस प्रक्रिया में जो कुछ अनुभव किया ......... वो शब्दों में कहना कठिन अवश्य है पर एक प्रयास किया है ! आशा है की वे सारे अग्रज जो इस दौर से गुज़र चुके हैं या वे साथी जो इस से गुज़र रहे हैं ...... इसे महसूस करेंगे ! अनुजो के लिए ये हमारा अनुभव है जो आगे काम आएगा क्यूंकि संघर्ष सफलता के लिए नही बल्कि उसे बनाये कैसे रखना है इसके सबक के लिए होता है ! संघर्ष आजकल आज और कल सुनते ही समय कटता है दिशान्तरों में चलते फिरते आते जाते युगान्तरों सा दिन निपटता हैं सुबह घर से रोज़ हर रोज़ निकल कर लम्बी दूरियां पैदल चल कर सूरज की तेज़ किरणों से चुंधियाती आंखों को मलता कोने से एक आंसू टप से निकलता तेज़ गर्मी में शरीर की भाप का पसीना थक कर हांफता सीना सिकुडी हुई जेबों में पर्स की लाश और उस लाश के अंगो में जीवन की तलाश ख़ुद को हौसला देने को बड़े लोगों की बड़ी बातें पर सोने की कोशिश में छोटी पड़ती रातें वो कहते हैं हौसला रखो बांधो हिम्मत तुम होनहार हो संवरेगी किस्मत ये संघर्ष फल लाएगा तू मुस्कुराएगा बस थोड़ा समय लेता है अन्तर्यामी सबको यथायोग्य देता है मैं चल रहा हूँ न तो उनके प्रेरणा वाक्य मुझे संबल देते हैं न ही उनके ताने अवसाद उनके आशीर्वादों से मैं प्रफ्फुलित नहीं न ही उनकी झिड़की हैं याद मैं चल रहा हूँ क्यूंकि मुझे चलना है ये चाह नहीं उत्साह नहीं शायद यह नियति है की मुझे अभी चलना है सुना है कि पैरों के छालों के पानी से जूते के तले के फटने से जब पैर के तलों का धरातल से मेल होता है तब कहीं जा कर संघर्ष का यज्ञ पूर्ण होता है वही होती है संघर्ष के वाक्य की इति प्रतीक्षा में हूँ कब होती है संघर्ष की परिणिती मयंक सक्सेना

Wednesday, July 9, 2008

कागा बोले

कागा बैठ मुंडेर पर बोले सूचक शव्द अतिथि आने वालें हैं क्यूं खडी हो स्तव्ध जाओ जाकर कर लो आज जी भर साज सिंगार मलिन केश ये धो डालो, पहनो कंगना, हार उड उड रे कागा, तुझी को पहना दूं ये हार क्या पर सच में आयेंगे मन मोहन गिरिधार बैठ जरा सी देर को, तुझे खिलाऊँ खीर उनकी बाट सजाऊंगी रंगोली डाल अबीर चंदन के उबटन से तेरे तनको शीतल कर दूं इस शुभ वार्ता के लिये जीवन न्योछावर कर दूं कागा इस संदेस से ले लीन्हा मुझे मोल तन मन पुलकित कर गई बोली तेरी अनमोल

सुरक्षा अस्त्र

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