 
A Glorious year is waiting for you. 
Walk with aims, 
Run with confidence 
& Fly with achievements.
Wish you & your family a Very 
HAPPY NEW YEAR-2011. 
कलाकारों एंव पत्रकारों का साझा मंच

 Do you know that according to RTE, all children between the ages of 6 and 14 shall have the right to free and compulsoryelementary education at a neighborhood school. There is no direct (school fees) or indirect cost (uniforms, textbooks, mid-day meals, transportation) to be borne by the child or the parents to obtain ...elementary education. The government will provide schooling free-of-costuntil a child’s elementary education is completed.” Share this with your friends and family. for more detail Please log on to- www.thirkanthengo.blogspot.com
Do you know that according to RTE, all children between the ages of 6 and 14 shall have the right to free and compulsoryelementary education at a neighborhood school. There is no direct (school fees) or indirect cost (uniforms, textbooks, mid-day meals, transportation) to be borne by the child or the parents to obtain ...elementary education. The government will provide schooling free-of-costuntil a child’s elementary education is completed.” Share this with your friends and family. for more detail Please log on to- www.thirkanthengo.blogspot.com
 

 
 आज़ादी का जश्न हम सब मना रहे हैं। लेकिन आज़ादी के मायने क्या हैं इस पर हम सब को सोचना चाहिये। हमें आज़ादी तो मिली पर उसके साथ कुछ ज़िम्मेदारियां भी आयीं। क्या हमने उन ज़िम्मेदारियों के प्रति ईमानदारी दिखाई? अगर नही तो आज फिर मौका है उस ज़िम्मेदारी को निभाने का...... “थिरकन” सभी देशवासियों से अपील करती है कि हम सब देश की प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझे और आज़ादी के जश्न को सार्थक बनाते हुये एक पेड़ या पौधा अपने घर या आस-पास कहीं भी ज़रुर लगायें। ताकि हमारे पर्यावरण को भी प्रदुषण से आज़ादी मिल सके और हमारा कल भी प्रदुषण से आज़ाद हो। जय हिन्द।
www.thirkanthengo.blogspot.com
आज़ादी का जश्न हम सब मना रहे हैं। लेकिन आज़ादी के मायने क्या हैं इस पर हम सब को सोचना चाहिये। हमें आज़ादी तो मिली पर उसके साथ कुछ ज़िम्मेदारियां भी आयीं। क्या हमने उन ज़िम्मेदारियों के प्रति ईमानदारी दिखाई? अगर नही तो आज फिर मौका है उस ज़िम्मेदारी को निभाने का...... “थिरकन” सभी देशवासियों से अपील करती है कि हम सब देश की प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझे और आज़ादी के जश्न को सार्थक बनाते हुये एक पेड़ या पौधा अपने घर या आस-पास कहीं भी ज़रुर लगायें। ताकि हमारे पर्यावरण को भी प्रदुषण से आज़ादी मिल सके और हमारा कल भी प्रदुषण से आज़ाद हो। जय हिन्द।
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 हमारे देश के पर्यटन स्थलों पर लाखों की संख्या मे पर्यटक आते हैं और देश में पर्यटन का सबसे बड़ा केन्द्र होता है आगरा, जहां दुनियाभर के लोग बेपनाह मोहब्बत की अनमोल निशानी ताजमहल का दीदार करते हैं। आगरा शहर को अगर देश में पर्यटन की राजधानी कहा जाये तो कुछ ग़लत नही होगा। क्योंकि हर साल सबसे ज़्यादा पर्यटक इसी शहर में आते हैं। हमारे देश की रवायत है कि मेहमान भगवान के समान होता है। इसीलिये यहां कहा भी जाता है “अतिथि देवोः भवः”। लेकिन आये दिन पर्यटकों और खासकर विदेशी मेहमानों के साथ कोई ना कोई हादसा होने की ख़बरें आती रहती हैं। आगरा में पर्यटकों के साथ होने वाले हादसों की भी एक लम्बी फेहरिस्त है। इन सब हादसों के पीछे सबसे बड़ा सबब है पुलिस की लापरवाही या फिर कहीये कि पैसे के लालच मे की गयी लापरवाही। शहर मे आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा का जिम्मा शहर की पुलिस का है। लेकिन गाहे बगाहे पुलिस पर भी अंगुलिया उठती रहती हैं। इन दिनों आगरा में पर्यटकों को लेकर आने वाले वाहन पुलिस की अवैध कमाई का ज़रिया बने हुये हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या उन वाहनों की है जिनका रजिस्ट्रेशन दिल्ली या आस-पास के राज्यों का है। आगरा की ट्रेफिक पुलिस हो या सिविल पुलिस जिसे मौका मिलता है वो हाथ साफ कर लेता है। पर्यटकों की सुरक्षा का दम भरने वाली पुलिस के हालात ये हो गये हैं कि उन्हे बाहर से आने वाले वाहन केवल सोने का अण्ड़ा देने वाली मुर्गी नज़र आते हैं। फिर चाहे उसमें कोई भी सवार हो, पर्यटक या फिर आगरावासी। राष्ट्रीय राजमार्ग से शहर मे दाखिल होने वाले चौराहों और रास्तों पर सुबह से ही पुलिस वाले तैनात रहते हैं। वहां लगने वाले जाम से उन्हे कोई मतलब नही लेकिन अगर कोई बाहर का वाहन बिना ‘एन्ट्री’ दिये बिना निकल जाये तो मुश्किल है। वसूली का सबसे बड़ा ठिकाना है सिकन्दरा चौराहा और उसके बाद वॉटरवर्क्स चौराहा। इसके अलावा शहर के प्रतापपुरा चौराहा और फतेहाबाद रोड़ भी पुलिस की अवैध कमाई के बड़े केन्द्र साबित हो रहें हैं। हालात इस कदर खराब हो चुकें हैं कि पुलिस ने बाहर से आने वाले इन वाहनों के लिये पैसे तय कर दिये हैं। इण्ड़िका या फिर किसी भी छोटी गाड़ी के लिये पांच सौ रुपये तय हैं। अगर पैसा नही मिला तो गाड़ी शहर मे नही जा सकती। भले ही उसके काग़ज़ात पूरे हों। पैसे लेकर बाकायदा एक कार्ड़ पर एन्ट्री की जाती है। फिर चाहे वो वाहन आगरा में कहीं भी घूमता रहे। वसूली की इस सारी कवायद के पीछे पुलिस वालों की दलील ये है कि चौराहे पर तैनाती के लिये दरोगा को हर दिन के हज़ारों रुपये ऊपर देने पड़ते हैं। रही सिपाही की बात को उसे अच्छे ‘एन्ट्री’ प्वॉइन्ट पर तैनाती के लिये हर माह एक मोटी रकम देनी पड़ती है। अब जब ऊपर तक इतना जाता है तो कुछ कमाने के लिये भी तो होना चाहिये। बस इसी फीक्र मे बेचारे पुलिस वाले धूप हो या छांव, आंधी या तूफान हर हाल मे कमाई का साधन ढूड़ते रहते हैं। पुलिस और वाहन चालकों या स्वामियों के बीच कई बार बात गाली गलौच से बढ़कर हाथापाई तक पंहुच जाती है। लेकिन कुछ दिन दिखावे के लिये सबकुछ ठीक रहता है पर फिर वही वसूली कार्यक्रम शुरु हो जाता है। सबसे अहम बात ये है कि सारी कहानी पुलिस के आलाधिकारियों को पता होती है। लेकिन वो इन मामलों पर चुप्पी साधे रहते हैं। वजह है कि इस कमाई का एक हिस्सा ऊपर वालों को भी तो जाता है इसलिये लाख शिकायत करने के बावजूद किसी पुलिस वाले के खिलाफ कोई कार्यवाही नही होती। आला अधिकारियों से जब इस बारे मे बात की जाती है तो वो अनजान बन जाते हैं। उन्हे तो पता ही नही होता कि किस चौराहे पर क्या हो रहा है। बस अपने कारिन्दो को देखने की बात दोहराते हैं। एक रोना सरकार का रोया जाता है कि सरकार के कामों से अधिकारियों को फुरसत कहां कि वो देख सकें कि किस चौराहे पर क्या हो रहा है। इस पूरे मामले के दौरान सबसे बुरा असर पड़ता है गाड़ी मे बैठे पर्यटक पर जो ये सारा माजरा समझ नही पाता। कई बार पुलिसवाले पर्यटकों के सामने ही वाहन चालक से वसूली के लिये मार पिटाई शुरु कर देतें हैं। जिसे देखकर पर्यटक सहम जाते हैं और खासकर विदेशी पर्यटक तो हैरान रह जाते हैं कि यहां कि पुलिस किस तरह से किसी बेगुनाह को पैसे के लिये मारने पीटने पर आ जाती है। उनकी नज़रों मे पूरे भारत को लेकर सजाया गया ख्वाब और यहां की सभ्यता को लेकर सुनी कहानियां पल मे झूठी हो जाती हैं। बहरहाल केन्द्र और राज्य सरकार दुनियाभर के पर्यटकों की आमद का इन्तज़ार कर रही है। कॉमन वेल्थ गेम्स सर पर हैं। लाखों पर्यटकों के भारत आने की उम्मीद भी है। ऐसे में दिल्ली के बाद पर्यटकों की सबसे ज़्यादा आमद आगरा में होगी। लेकिन अवैध वसूली में नम्बर वन का खिताब पा चुकी आगरा पुलिस पर्यटकों की हिफाजत का ख्याल रखेगी या फिर अपनी जेब का, ये सवाल अब सामने खड़ा दिखाई दे रहा है ?
हमारे देश के पर्यटन स्थलों पर लाखों की संख्या मे पर्यटक आते हैं और देश में पर्यटन का सबसे बड़ा केन्द्र होता है आगरा, जहां दुनियाभर के लोग बेपनाह मोहब्बत की अनमोल निशानी ताजमहल का दीदार करते हैं। आगरा शहर को अगर देश में पर्यटन की राजधानी कहा जाये तो कुछ ग़लत नही होगा। क्योंकि हर साल सबसे ज़्यादा पर्यटक इसी शहर में आते हैं। हमारे देश की रवायत है कि मेहमान भगवान के समान होता है। इसीलिये यहां कहा भी जाता है “अतिथि देवोः भवः”। लेकिन आये दिन पर्यटकों और खासकर विदेशी मेहमानों के साथ कोई ना कोई हादसा होने की ख़बरें आती रहती हैं। आगरा में पर्यटकों के साथ होने वाले हादसों की भी एक लम्बी फेहरिस्त है। इन सब हादसों के पीछे सबसे बड़ा सबब है पुलिस की लापरवाही या फिर कहीये कि पैसे के लालच मे की गयी लापरवाही। शहर मे आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा का जिम्मा शहर की पुलिस का है। लेकिन गाहे बगाहे पुलिस पर भी अंगुलिया उठती रहती हैं। इन दिनों आगरा में पर्यटकों को लेकर आने वाले वाहन पुलिस की अवैध कमाई का ज़रिया बने हुये हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या उन वाहनों की है जिनका रजिस्ट्रेशन दिल्ली या आस-पास के राज्यों का है। आगरा की ट्रेफिक पुलिस हो या सिविल पुलिस जिसे मौका मिलता है वो हाथ साफ कर लेता है। पर्यटकों की सुरक्षा का दम भरने वाली पुलिस के हालात ये हो गये हैं कि उन्हे बाहर से आने वाले वाहन केवल सोने का अण्ड़ा देने वाली मुर्गी नज़र आते हैं। फिर चाहे उसमें कोई भी सवार हो, पर्यटक या फिर आगरावासी। राष्ट्रीय राजमार्ग से शहर मे दाखिल होने वाले चौराहों और रास्तों पर सुबह से ही पुलिस वाले तैनात रहते हैं। वहां लगने वाले जाम से उन्हे कोई मतलब नही लेकिन अगर कोई बाहर का वाहन बिना ‘एन्ट्री’ दिये बिना निकल जाये तो मुश्किल है। वसूली का सबसे बड़ा ठिकाना है सिकन्दरा चौराहा और उसके बाद वॉटरवर्क्स चौराहा। इसके अलावा शहर के प्रतापपुरा चौराहा और फतेहाबाद रोड़ भी पुलिस की अवैध कमाई के बड़े केन्द्र साबित हो रहें हैं। हालात इस कदर खराब हो चुकें हैं कि पुलिस ने बाहर से आने वाले इन वाहनों के लिये पैसे तय कर दिये हैं। इण्ड़िका या फिर किसी भी छोटी गाड़ी के लिये पांच सौ रुपये तय हैं। अगर पैसा नही मिला तो गाड़ी शहर मे नही जा सकती। भले ही उसके काग़ज़ात पूरे हों। पैसे लेकर बाकायदा एक कार्ड़ पर एन्ट्री की जाती है। फिर चाहे वो वाहन आगरा में कहीं भी घूमता रहे। वसूली की इस सारी कवायद के पीछे पुलिस वालों की दलील ये है कि चौराहे पर तैनाती के लिये दरोगा को हर दिन के हज़ारों रुपये ऊपर देने पड़ते हैं। रही सिपाही की बात को उसे अच्छे ‘एन्ट्री’ प्वॉइन्ट पर तैनाती के लिये हर माह एक मोटी रकम देनी पड़ती है। अब जब ऊपर तक इतना जाता है तो कुछ कमाने के लिये भी तो होना चाहिये। बस इसी फीक्र मे बेचारे पुलिस वाले धूप हो या छांव, आंधी या तूफान हर हाल मे कमाई का साधन ढूड़ते रहते हैं। पुलिस और वाहन चालकों या स्वामियों के बीच कई बार बात गाली गलौच से बढ़कर हाथापाई तक पंहुच जाती है। लेकिन कुछ दिन दिखावे के लिये सबकुछ ठीक रहता है पर फिर वही वसूली कार्यक्रम शुरु हो जाता है। सबसे अहम बात ये है कि सारी कहानी पुलिस के आलाधिकारियों को पता होती है। लेकिन वो इन मामलों पर चुप्पी साधे रहते हैं। वजह है कि इस कमाई का एक हिस्सा ऊपर वालों को भी तो जाता है इसलिये लाख शिकायत करने के बावजूद किसी पुलिस वाले के खिलाफ कोई कार्यवाही नही होती। आला अधिकारियों से जब इस बारे मे बात की जाती है तो वो अनजान बन जाते हैं। उन्हे तो पता ही नही होता कि किस चौराहे पर क्या हो रहा है। बस अपने कारिन्दो को देखने की बात दोहराते हैं। एक रोना सरकार का रोया जाता है कि सरकार के कामों से अधिकारियों को फुरसत कहां कि वो देख सकें कि किस चौराहे पर क्या हो रहा है। इस पूरे मामले के दौरान सबसे बुरा असर पड़ता है गाड़ी मे बैठे पर्यटक पर जो ये सारा माजरा समझ नही पाता। कई बार पुलिसवाले पर्यटकों के सामने ही वाहन चालक से वसूली के लिये मार पिटाई शुरु कर देतें हैं। जिसे देखकर पर्यटक सहम जाते हैं और खासकर विदेशी पर्यटक तो हैरान रह जाते हैं कि यहां कि पुलिस किस तरह से किसी बेगुनाह को पैसे के लिये मारने पीटने पर आ जाती है। उनकी नज़रों मे पूरे भारत को लेकर सजाया गया ख्वाब और यहां की सभ्यता को लेकर सुनी कहानियां पल मे झूठी हो जाती हैं। बहरहाल केन्द्र और राज्य सरकार दुनियाभर के पर्यटकों की आमद का इन्तज़ार कर रही है। कॉमन वेल्थ गेम्स सर पर हैं। लाखों पर्यटकों के भारत आने की उम्मीद भी है। ऐसे में दिल्ली के बाद पर्यटकों की सबसे ज़्यादा आमद आगरा में होगी। लेकिन अवैध वसूली में नम्बर वन का खिताब पा चुकी आगरा पुलिस पर्यटकों की हिफाजत का ख्याल रखेगी या फिर अपनी जेब का, ये सवाल अब सामने खड़ा दिखाई दे रहा है ?
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| पुस्तक लोकार्पण का दृश्य | 
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| कमल नयन काबरा जी | 
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| धरने के दौरान एक पोस्टर | 
 उत्सव का नाम पहले भी सुना है मैंने। टेनिस खिलाड़ी रुचिका गेहरोत्रा को आत्महत्या के लिए मजबूर कर देने वाले हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौड़ पर छोटे से चाकू से हमला करने वाला उत्सव ऐसा क्यों कर बैठा, कोई नहीं समझ पा रहा। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की फाइन आर्ट्स फैकल्टी में बीएफए का यह गोल्ड मेडलिस्ट सबको याद है। गोल्ड मेडलिस्ट है तो बताने की जरूरत नहीं कि एक्स्ट्रा आर्डिनरी परफॉर्मेंस की वजह से उसे सब जानते थे। उसके साथियों को याद है कि उत्सव में जबर्दस्त कांफिडेंस था। वह खुलकर कहता कि मेरा नेशनल स्कूल आफ डिजाइन में चयन होगा और ऐसा हुआ भी। यह इंस्टीट्यूट भी कला के छात्रों का एक सपना होता है, खासकर एप्लाइड आर्ट स्टूडेंट्स के लिए। उत्सव ने वर्ष 2006 में एनीमेशन फिल्म डिजाइन के ढाई वर्षीय स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया और वहां भी रंग जमा लिया। इस बात का उदाहरण उसकी शार्ट फिल्म चाय ब्रेक का प्रतिष्ठित अवार्ड के लिए चयन हो जाना है। मेधावी छात्र का इस तरह की वारदात कर बैठना चिंता पैदा करता है। मनो चिकित्सक मां प्रोफेसर इंदिरा शर्मा के अनुसार, वह डिप्रेशन का शिकार था और अहमदाबाद में चार माह से उसका इलाज चल रहा था। एसोसिएशन आफ साइकियाट्रिस्ट इन यूएस की एक रिपोर्ट कहती है कि कलाकारों में डिप्रेशन के मामलों की संख्या ज्यादा होती है, विशेषकर फाइन आर्ट्स से जुड़े लोगों में। यह भी सच है कि कलाकार अधिक संवेदनशील भी होते हैं। उत्सव भी कलाकार है। पिता प्रो. एसके शर्मा बताते हैं कि वह कुछ दिन से न्याय-अन्याय की ज्यादा बातें करने लगा था। हम भी उद्वेलित होते हैं और रुचिका प्रकरण तो है ही ऐसा।
पुलिस का एक अफसर उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी को विदेश जाने से रोक लेता है। अभद्रता करता है और शिकायत न की जाए, इसके लिए परिवार पर जमकर दबाव बनाया जाता है। इससे ज्यादा बेशर्मी क्या होगी कि मुंह न खोलने देने के लिए भाई की गिरफ्तारी कर ली जाती है। आरोप लगाया जाता है कार चोरी का। यही नहीं, फिर हरियाणाभर में कार चोरी के मामलों में उसका नाम जोड़ा जाने लगता है। चंडीगढ़ के स्कूल से सिर्फ फीस लेट हो जाने पर रुचिका का नाम काट दिया जाता है। पिता और बाकी परिवार अघोषित नजरबंदी का शिकार बनता है और नतीजा, अभद्रता की शिकार चौदह साल की रुचिका आत्महत्या कर लेती है। चंद लाइनों में मैंने जो कहानी कहने की कोशिश की है, वास्तव में वह मन में आक्रोश का हजारों लाइनें पैदा कर देती है। एक अफसर और उसके सामने पूरे प्रदेश के पुलिस तंत्र का नतमस्तक हो जाना एवं नेताओं के साथ रिश्तों की बदौलत साथ ही उसे प्रोन्नति मिलते जाना, अकल्पनीय तो नहीं लेकिन शर्मनाक है। गण के इस तंत्र में गण ही कहीं गौण सा है और उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं। और तो और... पीड़ित परिवार को किसी तरह न्याय की उम्मीद बंधती है तो उसमें भी रोड़े डाल दिए जाते हैं। राठौड़ सजा सुनाए जाने के बाद भी आजाद है तो क्यों कोई उत्सव का आक्रोश न भड़के। बकौल प्रो. इंदिरा, उनके यहां कोई भी रुचिका के परिवार को नहीं जानता। ऐसे में उत्सव में जो आक्रोश पैदा हुआ, वह अन्याय की खबरें सुनकर हुआ। वह चंडीगढ़ में था, राठौड़ की पेशी और रुचिका कांड की खबरें वहां हवा में घुली हुई हैं तो वह कैसे बचता। जब पूरा देश प्रतिक्रिया में है तो चंडीगढ़ में तो यह स्थिति और भी तीव्र हो जाती है। जब आम मुजरिम को थर्ड डिग्री से नवाजने वाली पुलिस राठौड़ को किसी वीआईपी की तरह ट्रीट करे, जैसे वह अब भी उनका अफसर हो तो हिंदुस्तान में अपराधी के हिस्से आने वाली यह थर्ड डिग्री देने के लिए कोई उत्सव तो आएगा ही। वैसे, शुक्र अदा करने की बात यह है कि राठौड़ को सजा देने की तैयारी शुरू हुई है। उसकी पेंशन काटी जा रही है, हरियाणा के मुख्यमंत्री सख्त हैं। उत्सव उन भावनाओं का प्रतीक है जो रुचिका प्रकरण में हर आम भारतीय के मन में घुमड़ रही हैं लेकिन बाहर नहीं आ पा रहीं। उत्सव के साथ शायद कानून नहीं होगा लेकिन भीड़ है तमाम भारतवासियों की। एक मेधावी छात्र के एकाएक अपराधी बन जाने की वजह जो है, उससे तो वह कानून से भी क्षमा का हकदार है। बहरहाल, कोर्ट ने उसे सशर्त जमानत पर छोड़ने के आदेश दे दिए हैं। http://kalajagat.blogspot.com
उत्सव का नाम पहले भी सुना है मैंने। टेनिस खिलाड़ी रुचिका गेहरोत्रा को आत्महत्या के लिए मजबूर कर देने वाले हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौड़ पर छोटे से चाकू से हमला करने वाला उत्सव ऐसा क्यों कर बैठा, कोई नहीं समझ पा रहा। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की फाइन आर्ट्स फैकल्टी में बीएफए का यह गोल्ड मेडलिस्ट सबको याद है। गोल्ड मेडलिस्ट है तो बताने की जरूरत नहीं कि एक्स्ट्रा आर्डिनरी परफॉर्मेंस की वजह से उसे सब जानते थे। उसके साथियों को याद है कि उत्सव में जबर्दस्त कांफिडेंस था। वह खुलकर कहता कि मेरा नेशनल स्कूल आफ डिजाइन में चयन होगा और ऐसा हुआ भी। यह इंस्टीट्यूट भी कला के छात्रों का एक सपना होता है, खासकर एप्लाइड आर्ट स्टूडेंट्स के लिए। उत्सव ने वर्ष 2006 में एनीमेशन फिल्म डिजाइन के ढाई वर्षीय स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया और वहां भी रंग जमा लिया। इस बात का उदाहरण उसकी शार्ट फिल्म चाय ब्रेक का प्रतिष्ठित अवार्ड के लिए चयन हो जाना है। मेधावी छात्र का इस तरह की वारदात कर बैठना चिंता पैदा करता है। मनो चिकित्सक मां प्रोफेसर इंदिरा शर्मा के अनुसार, वह डिप्रेशन का शिकार था और अहमदाबाद में चार माह से उसका इलाज चल रहा था। एसोसिएशन आफ साइकियाट्रिस्ट इन यूएस की एक रिपोर्ट कहती है कि कलाकारों में डिप्रेशन के मामलों की संख्या ज्यादा होती है, विशेषकर फाइन आर्ट्स से जुड़े लोगों में। यह भी सच है कि कलाकार अधिक संवेदनशील भी होते हैं। उत्सव भी कलाकार है। पिता प्रो. एसके शर्मा बताते हैं कि वह कुछ दिन से न्याय-अन्याय की ज्यादा बातें करने लगा था। हम भी उद्वेलित होते हैं और रुचिका प्रकरण तो है ही ऐसा।
पुलिस का एक अफसर उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी को विदेश जाने से रोक लेता है। अभद्रता करता है और शिकायत न की जाए, इसके लिए परिवार पर जमकर दबाव बनाया जाता है। इससे ज्यादा बेशर्मी क्या होगी कि मुंह न खोलने देने के लिए भाई की गिरफ्तारी कर ली जाती है। आरोप लगाया जाता है कार चोरी का। यही नहीं, फिर हरियाणाभर में कार चोरी के मामलों में उसका नाम जोड़ा जाने लगता है। चंडीगढ़ के स्कूल से सिर्फ फीस लेट हो जाने पर रुचिका का नाम काट दिया जाता है। पिता और बाकी परिवार अघोषित नजरबंदी का शिकार बनता है और नतीजा, अभद्रता की शिकार चौदह साल की रुचिका आत्महत्या कर लेती है। चंद लाइनों में मैंने जो कहानी कहने की कोशिश की है, वास्तव में वह मन में आक्रोश का हजारों लाइनें पैदा कर देती है। एक अफसर और उसके सामने पूरे प्रदेश के पुलिस तंत्र का नतमस्तक हो जाना एवं नेताओं के साथ रिश्तों की बदौलत साथ ही उसे प्रोन्नति मिलते जाना, अकल्पनीय तो नहीं लेकिन शर्मनाक है। गण के इस तंत्र में गण ही कहीं गौण सा है और उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं। और तो और... पीड़ित परिवार को किसी तरह न्याय की उम्मीद बंधती है तो उसमें भी रोड़े डाल दिए जाते हैं। राठौड़ सजा सुनाए जाने के बाद भी आजाद है तो क्यों कोई उत्सव का आक्रोश न भड़के। बकौल प्रो. इंदिरा, उनके यहां कोई भी रुचिका के परिवार को नहीं जानता। ऐसे में उत्सव में जो आक्रोश पैदा हुआ, वह अन्याय की खबरें सुनकर हुआ। वह चंडीगढ़ में था, राठौड़ की पेशी और रुचिका कांड की खबरें वहां हवा में घुली हुई हैं तो वह कैसे बचता। जब पूरा देश प्रतिक्रिया में है तो चंडीगढ़ में तो यह स्थिति और भी तीव्र हो जाती है। जब आम मुजरिम को थर्ड डिग्री से नवाजने वाली पुलिस राठौड़ को किसी वीआईपी की तरह ट्रीट करे, जैसे वह अब भी उनका अफसर हो तो हिंदुस्तान में अपराधी के हिस्से आने वाली यह थर्ड डिग्री देने के लिए कोई उत्सव तो आएगा ही। वैसे, शुक्र अदा करने की बात यह है कि राठौड़ को सजा देने की तैयारी शुरू हुई है। उसकी पेंशन काटी जा रही है, हरियाणा के मुख्यमंत्री सख्त हैं। उत्सव उन भावनाओं का प्रतीक है जो रुचिका प्रकरण में हर आम भारतीय के मन में घुमड़ रही हैं लेकिन बाहर नहीं आ पा रहीं। उत्सव के साथ शायद कानून नहीं होगा लेकिन भीड़ है तमाम भारतवासियों की। एक मेधावी छात्र के एकाएक अपराधी बन जाने की वजह जो है, उससे तो वह कानून से भी क्षमा का हकदार है। बहरहाल, कोर्ट ने उसे सशर्त जमानत पर छोड़ने के आदेश दे दिए हैं। http://kalajagat.blogspot.com
 
 
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 .jpg) ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की प्रेम कहानी पर लिखी ब्रिटिश लेखिका शरबनी बसु की चर्चित किताब "विक्टोरिया एण्ड  अब्दुल" मे आगरा के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद राजू ने सहयोग किया है। इस सहयोग के लिये शरबनी ने किताब की भूमिका मे उनके नाम का ज़िक्र भी किया है। इस किताब को लन्दन मे लॉन्च किये जाने के बाद भारत मे भी उतारा गया है। इस किताब मे महारानी विक्टोरिया और अब्दुल करीम के प्रेम की वो अनछुई दास्तान है जो अब तक दुनिया से छिपी रही। इस किताब मे करीम का आगरा से सम्बन्ध और उनकी निशानियों का उल्लेख किया गया है। आगरा के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद राजू ने इस किताब में करीम से जुडे पहुलओं को जुटाया है। साथ यहां से सारी तस्वीरे भी शरबनी को मुहैय्या कराई हैं। इस काम के लिये सैय्यद राजू को 11 जनवरी को ब्रिटिश दूतावास मे आयोजित एक कार्यक्रम मे सम्मानित भी किया गया। राजू की इस उपलब्धि पर रंगकर्मी परिवार की बधाई। सैय्यद राजू से 9359937774 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की प्रेम कहानी पर लिखी ब्रिटिश लेखिका शरबनी बसु की चर्चित किताब "विक्टोरिया एण्ड  अब्दुल" मे आगरा के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद राजू ने सहयोग किया है। इस सहयोग के लिये शरबनी ने किताब की भूमिका मे उनके नाम का ज़िक्र भी किया है। इस किताब को लन्दन मे लॉन्च किये जाने के बाद भारत मे भी उतारा गया है। इस किताब मे महारानी विक्टोरिया और अब्दुल करीम के प्रेम की वो अनछुई दास्तान है जो अब तक दुनिया से छिपी रही। इस किताब मे करीम का आगरा से सम्बन्ध और उनकी निशानियों का उल्लेख किया गया है। आगरा के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद राजू ने इस किताब में करीम से जुडे पहुलओं को जुटाया है। साथ यहां से सारी तस्वीरे भी शरबनी को मुहैय्या कराई हैं। इस काम के लिये सैय्यद राजू को 11 जनवरी को ब्रिटिश दूतावास मे आयोजित एक कार्यक्रम मे सम्मानित भी किया गया। राजू की इस उपलब्धि पर रंगकर्मी परिवार की बधाई। सैय्यद राजू से 9359937774 पर सम्पर्क किया जा सकता है। सपा के प्रभावशाली लीडर अमर सिंह ने दुबई में बैठकर पार्टी के सभी महत्वपूर्ण क्रमशः महामंत्री, प्रवक्ता एवं संसदीय बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनका यह इस्तीफा ऐसे समय पर आया है जब पार्टी के अन्दर से उनकी कार्यशैली के विरूद्ध बुजुर्ग समाजवादी लीडर ज्ञानेश्वर मिश्रा एवं पार्टी में सबसे समझदार माने जाने वाले डा0 राम गोपाल यादव के विरोध के स्तर फूटने प्रारम्भ हो गये थे और पार्टी मुखिया इस पर खामोश थे।
वर्ष 1993 में आकर पार्टी के ब्राण्ड एम्बेस्डर का रोल निभाने वाले अमर सिंह ने चंद वर्षों के दौरान जिस प्रकार मुलायम सिंह के दिमाग पर अपना बंगाल का काला जादू चढ़ाया था, जहां से उन्होंने कांग्रेसी लीडर सिद्धार्थशंकर राम की छत्रछाया में राजनीति की ए0बी0सी0डी0 सीखी थी, उसके चलते सपा के सबके बाद एक दिग्गज नेता किनारे लगते चले गये। चाहे वह ज्ञानेश्वर मिश्रा हो या डा0 रामगोपाल यादव चाहे वह शफीकुर्रहमान बर्क रहे हों या सलीम शेरवानी, चाहे वह बेनी प्रसाद वर्मा रहे हो या आजम खां या राज बब्बर अन्त में मुलायम का हाल यह हुआ कि सारी खुदाई एक तरफ अमर प्रेम एक तरफ। मुलायम पर अमर सिंह का ऐसा नशा चढ़ा कि वह समाजवाद का पाठ भूलकर साम्राज्यवाद की डगर पर चल पड़े। उनके पुराने दोस्त जो लोहिया के विचारों के थे वह तो किनारे लग गये अनिल अम्बानी, अमिताभ बच्चन, सुब्रतराय जय प्रदा व जया बच्चन के साथ उनकी गलबहिएं बढ़ती गई। परिणाम यह हुआ कि लोहिया का समाजवाद बकौल वयोवृद्ध समाजवादी लीडर मोहन सिंह के वह काॅरपोरेट समाजवाद में तब्दील हो गया। मुलायम के वोट की दौलत लुटती गई और विदेशी बैंकों में उनकी दौलत में भण्डार बढ़ते गये।
मुलायम सिंह की राजनीतिक बैसाखी दो प्रबल वोट बैंकों पर टिकी थी एक यादव दूसरा मुस्लिम जो उन्हें अपना सच्चा और खरा हमदर्द समझती थी और उनकी इसी छवि के कारण संघ परिवार के लोग उन्हें अपना कट्टर दुश्मन मान कर मौलाना मुलायम सिंह भी कहा करते थे।
अमर सिंह ने मुलायम सिंह के चरित्र को ऐसा बदला कि अखाड़े का यह पहलवान जो कभी लंगोट का बेइंतेहा मजबूत माना जाता था, पर बदनामी के कई दाग लगने लगे। कभी फिल्मी तारिकाओं का लेकर तो कभी उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में उनकी निजी सचिव रही एक महिला आई0ए0एस0 अधिकारी के साथ उनकी करीबी रिश्तों को लेकर। कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति का चरित्र कमजोर हो जाता है तो वह आत्मबल से कमजोर होकर नैतिक पतन के अंधकार में चला जाता है। मुलायम के साथ भी ऐसा ही होने लगा। उनके घर में उनकी छवि बिगड़ने लगी। पहली पत्नी की बीमारी और उसके बाद उनका देहान्त फिर उनके पुत्र अखिलेश से उनके रिश्तों में कड़वाहट मुलायम सिंह की मौजूदा पत्नी व अखिलेश के बीच मतभेद के पीछे भी बताते हैं अमर सिंह का ही अहम किरदार शामिल है।
यही तक नहीं मुलायम सिंह के छोटे अनुज शिवपाल यादव, अखिलेश, डिम्पल वगैरह का एक ऐसा गुट अमर सिंह ने तैयार कर दिया कि मुलायम सिंह बिलकुल बेबस होकर अकेले रह गये मुलायम का अपना कोई स्वतंत्र निर्णय न हो पाता उनके ऊपर अमर सिंह का निर्णय ही सदैव हावी रहता। यहाँ तक कि बीते लोकसभा चुनाव में मुसलमानों में नफरत की निगाह से सदैव देखे जाने वाले कल्याण सिंह के साथ हाथ मिलाकर मुलायम ने अपने सबसे वफादार वोट बैंक मुस्लिम में भी हाथ धो लिया और इसी का लाभ उठाकर कांग्रेस ने अपने बरसों पुराने रूठे हुए मुस्लिम वोट बैंक को अपने घर वापसी कराने में सफलता प्राप्त कर ली।
अमर सिंह की ही गलत नीतियों के चलते हपले शफीकुर्रहमान बर्क, सलीम शेरवानी और राजबब्बर जैसे वफादार नेता मुलायम का साथ छोड़कर गये फिर उनके सबसे पुराने साथी बेनी प्रसाद वर्मा व आजम खाँ भी उनसे रूठकर अलग हो गये। यह सभी अमर सिंह के ही घायल रहे और मुलायम के अमर प्रेम के ही चलते उनसे नाराज हुए। बेनी का तो भरपूर इस्तेमाल कांग्रेस ने करके सपा को ठिकाने लगाने के अतिरिक्त उ0प्र0 में अपने दोबारा सत्ता में आने की राह हमवार कर ली। और वह सपने भी संजोने लगी, वही आजम खा की बयानबाजी ने मुस्लिम वोटों को उनसे काफी दूर कर दिया।
अमर सिंह ने मुलायम के हरे भरे राजनीतिक चमन में ऐसी आग लगाई कि उनके घर तक आग जा पहुंची। बताते हैं कि फिरोजाबाद में अखिलेश की पत्नी डिम्पल की हार की दुआ मुलायम की पत्नी कर रही थी तो वही पलटवार करते हुए मुलायम की पत्नी की पसंद के उम्मीदवार बुक्कल नवाब लखनऊ पश्चिम से विधान सभा उपचुनाव जो लालजी टण्डन के सांसद होने के पश्चात सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे और जीत के करीब पहुंच गये थे कि अमर सिंह ने आकर एक ऐसा भड़काऊ भाषण इमाम हुसैन के हुसैनी लश्कर की तुलना अपने से करते हुए दिया कि बुक्कल नवाब का अपना स्वयं का शिया वोट बैंक उनसे रूठकर छिटक गया और सपा की जीती सीट मौके के ताक में बैठी कांग्रेस के पाले में चली गई। बुक्कल नवाब ने चुनाव बाद स्वयं यह बयान दिया था कि मेरी हार का कारण अमर सिंह है।
समाजवादी पार्टी के दिन प्रतिदिन गिरते राजनीतिक ग्राफ का सीधा लाभ कांग्रेस को हो रहा था जहाँ उसका मुस्लिम वोट जाने को पर तोल रहा था तो वहीं भाजपा के कमजोर होने पर हिन्दू मतों का धु्रवीकरण भी कांग्रेस की ओर होना प्रारम्भ हो गया। उधर विधान सभा का चुनाव होने में मात्र सवा दो साल बचे थे ऐसे में मुलायम सिंह की पार्टी की राजनीतिक भविष्य पर ही प्रश्न उठने खड़े हो गये थे। सपा से बड़े पैमाने पर भगदड़ प्रारम्भ होने के आसार भी साफ दिखने लगे थे सो मुलायम के पास इसके अतिरिक्त कोई चारा नहीं था कि अमर सिंह से छुटटी पा ली जाए। इसीलिए सोंची समझी रणनीति के तहत उन्होंने डा0 रामगोपाल यादव को उन्होंने आगेकर अमर सिंह के विरूद्ध उन्होंने मोर्चा खुलवा दिया वह जानते हैं कि अमर सिंह एक भावुक व्यक्ति हैं वह अपमान सहकर पार्टी में नही रह पायेंगे सो अमर सिंह की प्रतिक्रिया मुलायम की उम्मीदों के करीब आयी हैं। उधर अमर सिंह ने पार्टी की सदस्यता ना छोड़कर इतनी गुंजाइश बाकी बचा ली है कि दोबारा पार्टी में आने की डगर जीवित रहे। मुलायम भी अध्ययन करना चाहते हैं कि अमर सिंह के पार्टी से किनारा करने की खबर पाकर उनके रूठे नेताओं की तरफ से उन्हें क्या संकेत मिलते हैं।
समाजवादी का ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय बतायेगा फिलहाल अमर सिंह के इस्तीफ से समाजवादी पार्टी के तेजी से होते नुकसान में थोड़ा ठहराव अवश्य आ जायेगा विशेष तौर पर मुस्लिम वोटों के पार्टी से जाते कदम रूक सकते हैं। परन्तु मुलायम सिंह को अपनी पुरानी छवि पाने में लोहे के चने चबाने होंगे क्योंकि सब कुछ लुटाने के बाद वह अब अपने होश में आने की तैयारी कर रहे हैं।
मो॰ तारिक खान
सपा के प्रभावशाली लीडर अमर सिंह ने दुबई में बैठकर पार्टी के सभी महत्वपूर्ण क्रमशः महामंत्री, प्रवक्ता एवं संसदीय बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनका यह इस्तीफा ऐसे समय पर आया है जब पार्टी के अन्दर से उनकी कार्यशैली के विरूद्ध बुजुर्ग समाजवादी लीडर ज्ञानेश्वर मिश्रा एवं पार्टी में सबसे समझदार माने जाने वाले डा0 राम गोपाल यादव के विरोध के स्तर फूटने प्रारम्भ हो गये थे और पार्टी मुखिया इस पर खामोश थे।
वर्ष 1993 में आकर पार्टी के ब्राण्ड एम्बेस्डर का रोल निभाने वाले अमर सिंह ने चंद वर्षों के दौरान जिस प्रकार मुलायम सिंह के दिमाग पर अपना बंगाल का काला जादू चढ़ाया था, जहां से उन्होंने कांग्रेसी लीडर सिद्धार्थशंकर राम की छत्रछाया में राजनीति की ए0बी0सी0डी0 सीखी थी, उसके चलते सपा के सबके बाद एक दिग्गज नेता किनारे लगते चले गये। चाहे वह ज्ञानेश्वर मिश्रा हो या डा0 रामगोपाल यादव चाहे वह शफीकुर्रहमान बर्क रहे हों या सलीम शेरवानी, चाहे वह बेनी प्रसाद वर्मा रहे हो या आजम खां या राज बब्बर अन्त में मुलायम का हाल यह हुआ कि सारी खुदाई एक तरफ अमर प्रेम एक तरफ। मुलायम पर अमर सिंह का ऐसा नशा चढ़ा कि वह समाजवाद का पाठ भूलकर साम्राज्यवाद की डगर पर चल पड़े। उनके पुराने दोस्त जो लोहिया के विचारों के थे वह तो किनारे लग गये अनिल अम्बानी, अमिताभ बच्चन, सुब्रतराय जय प्रदा व जया बच्चन के साथ उनकी गलबहिएं बढ़ती गई। परिणाम यह हुआ कि लोहिया का समाजवाद बकौल वयोवृद्ध समाजवादी लीडर मोहन सिंह के वह काॅरपोरेट समाजवाद में तब्दील हो गया। मुलायम के वोट की दौलत लुटती गई और विदेशी बैंकों में उनकी दौलत में भण्डार बढ़ते गये।
मुलायम सिंह की राजनीतिक बैसाखी दो प्रबल वोट बैंकों पर टिकी थी एक यादव दूसरा मुस्लिम जो उन्हें अपना सच्चा और खरा हमदर्द समझती थी और उनकी इसी छवि के कारण संघ परिवार के लोग उन्हें अपना कट्टर दुश्मन मान कर मौलाना मुलायम सिंह भी कहा करते थे।
अमर सिंह ने मुलायम सिंह के चरित्र को ऐसा बदला कि अखाड़े का यह पहलवान जो कभी लंगोट का बेइंतेहा मजबूत माना जाता था, पर बदनामी के कई दाग लगने लगे। कभी फिल्मी तारिकाओं का लेकर तो कभी उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में उनकी निजी सचिव रही एक महिला आई0ए0एस0 अधिकारी के साथ उनकी करीबी रिश्तों को लेकर। कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति का चरित्र कमजोर हो जाता है तो वह आत्मबल से कमजोर होकर नैतिक पतन के अंधकार में चला जाता है। मुलायम के साथ भी ऐसा ही होने लगा। उनके घर में उनकी छवि बिगड़ने लगी। पहली पत्नी की बीमारी और उसके बाद उनका देहान्त फिर उनके पुत्र अखिलेश से उनके रिश्तों में कड़वाहट मुलायम सिंह की मौजूदा पत्नी व अखिलेश के बीच मतभेद के पीछे भी बताते हैं अमर सिंह का ही अहम किरदार शामिल है।
यही तक नहीं मुलायम सिंह के छोटे अनुज शिवपाल यादव, अखिलेश, डिम्पल वगैरह का एक ऐसा गुट अमर सिंह ने तैयार कर दिया कि मुलायम सिंह बिलकुल बेबस होकर अकेले रह गये मुलायम का अपना कोई स्वतंत्र निर्णय न हो पाता उनके ऊपर अमर सिंह का निर्णय ही सदैव हावी रहता। यहाँ तक कि बीते लोकसभा चुनाव में मुसलमानों में नफरत की निगाह से सदैव देखे जाने वाले कल्याण सिंह के साथ हाथ मिलाकर मुलायम ने अपने सबसे वफादार वोट बैंक मुस्लिम में भी हाथ धो लिया और इसी का लाभ उठाकर कांग्रेस ने अपने बरसों पुराने रूठे हुए मुस्लिम वोट बैंक को अपने घर वापसी कराने में सफलता प्राप्त कर ली।
अमर सिंह की ही गलत नीतियों के चलते हपले शफीकुर्रहमान बर्क, सलीम शेरवानी और राजबब्बर जैसे वफादार नेता मुलायम का साथ छोड़कर गये फिर उनके सबसे पुराने साथी बेनी प्रसाद वर्मा व आजम खाँ भी उनसे रूठकर अलग हो गये। यह सभी अमर सिंह के ही घायल रहे और मुलायम के अमर प्रेम के ही चलते उनसे नाराज हुए। बेनी का तो भरपूर इस्तेमाल कांग्रेस ने करके सपा को ठिकाने लगाने के अतिरिक्त उ0प्र0 में अपने दोबारा सत्ता में आने की राह हमवार कर ली। और वह सपने भी संजोने लगी, वही आजम खा की बयानबाजी ने मुस्लिम वोटों को उनसे काफी दूर कर दिया।
अमर सिंह ने मुलायम के हरे भरे राजनीतिक चमन में ऐसी आग लगाई कि उनके घर तक आग जा पहुंची। बताते हैं कि फिरोजाबाद में अखिलेश की पत्नी डिम्पल की हार की दुआ मुलायम की पत्नी कर रही थी तो वही पलटवार करते हुए मुलायम की पत्नी की पसंद के उम्मीदवार बुक्कल नवाब लखनऊ पश्चिम से विधान सभा उपचुनाव जो लालजी टण्डन के सांसद होने के पश्चात सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे और जीत के करीब पहुंच गये थे कि अमर सिंह ने आकर एक ऐसा भड़काऊ भाषण इमाम हुसैन के हुसैनी लश्कर की तुलना अपने से करते हुए दिया कि बुक्कल नवाब का अपना स्वयं का शिया वोट बैंक उनसे रूठकर छिटक गया और सपा की जीती सीट मौके के ताक में बैठी कांग्रेस के पाले में चली गई। बुक्कल नवाब ने चुनाव बाद स्वयं यह बयान दिया था कि मेरी हार का कारण अमर सिंह है।
समाजवादी पार्टी के दिन प्रतिदिन गिरते राजनीतिक ग्राफ का सीधा लाभ कांग्रेस को हो रहा था जहाँ उसका मुस्लिम वोट जाने को पर तोल रहा था तो वहीं भाजपा के कमजोर होने पर हिन्दू मतों का धु्रवीकरण भी कांग्रेस की ओर होना प्रारम्भ हो गया। उधर विधान सभा का चुनाव होने में मात्र सवा दो साल बचे थे ऐसे में मुलायम सिंह की पार्टी की राजनीतिक भविष्य पर ही प्रश्न उठने खड़े हो गये थे। सपा से बड़े पैमाने पर भगदड़ प्रारम्भ होने के आसार भी साफ दिखने लगे थे सो मुलायम के पास इसके अतिरिक्त कोई चारा नहीं था कि अमर सिंह से छुटटी पा ली जाए। इसीलिए सोंची समझी रणनीति के तहत उन्होंने डा0 रामगोपाल यादव को उन्होंने आगेकर अमर सिंह के विरूद्ध उन्होंने मोर्चा खुलवा दिया वह जानते हैं कि अमर सिंह एक भावुक व्यक्ति हैं वह अपमान सहकर पार्टी में नही रह पायेंगे सो अमर सिंह की प्रतिक्रिया मुलायम की उम्मीदों के करीब आयी हैं। उधर अमर सिंह ने पार्टी की सदस्यता ना छोड़कर इतनी गुंजाइश बाकी बचा ली है कि दोबारा पार्टी में आने की डगर जीवित रहे। मुलायम भी अध्ययन करना चाहते हैं कि अमर सिंह के पार्टी से किनारा करने की खबर पाकर उनके रूठे नेताओं की तरफ से उन्हें क्या संकेत मिलते हैं।
समाजवादी का ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय बतायेगा फिलहाल अमर सिंह के इस्तीफ से समाजवादी पार्टी के तेजी से होते नुकसान में थोड़ा ठहराव अवश्य आ जायेगा विशेष तौर पर मुस्लिम वोटों के पार्टी से जाते कदम रूक सकते हैं। परन्तु मुलायम सिंह को अपनी पुरानी छवि पाने में लोहे के चने चबाने होंगे क्योंकि सब कुछ लुटाने के बाद वह अब अपने होश में आने की तैयारी कर रहे हैं।
मो॰ तारिक खान
 
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