Thursday, August 28, 2008
Wednesday, August 27, 2008
"यादों का काफिला"
Monday, August 25, 2008
"आवारा"
Thursday, August 21, 2008
Friday, August 15, 2008
ऱाखी
कौन आज़ाद हुआ?
Thursday, August 14, 2008
INDEPENDENCE DAY SPEECH BY PM!!!!!!!!!!!
प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों से १५ अगस्त को दिए जाने वाले प्रधानमंत्री के भाषण की मुख्या बातें पता चली हैं !!!
आप से साझा कर रहा हूँ !!!
प्रधानमंत्री के भाषण का सार :मेरे प्यारे देशवासियों ,मैं आप सभी को देश के ६१ वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई देता हूँ।हमने एक लोकतान्त्रिक देश के रूप में ६१ साल पूरे कर लिए हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है। और हमारी सरकार इसके लिए कृतसंकल्प है। आपने चार साल पहले सरकार चलाने के लिए जनादेश हमें सौंपा था। हमने आपको स्थिर सरकार देने का वायदा किया था। और उस वायदे पर हम पूरी तरह कायम हैं।कमबख्त वामपंथियों के समर्थन वापसी के बाद जो कदम हमने सरकार बचाने के लिए उठाये उसकी मिसालें आने वाली सदियों तक दी जाएँगी। साम,दाम,दंड,भेद भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। हमने उसी महान परम्परा का निर्वहन किया है। मैं लालकिले की इस प्राचीर से अमर सिंह को धन्यवाद देना चाहता हूँ। उनके इस अमूल्य योगदान के लिए भारत रत्न के लिए उनका नाम प्रस्तावित करता हूँ। मुझे खुशी है कि २२ जुलाई के लोकतान्त्रिक यज्ञ में उनकी तपस्या सफल हुई है। मैं उन सांसदों का अभिनन्दन करता हूँ जिन्होंने दिल कि आवाज़ सुनते हुए अपनी पार्टी व्हिप के विपरीत विश्वासमत के पक्ष में वोट दिया। हमारी सरकार ने देश इन की महान धरोहरों की मूर्तियों को विभिन्न चौराहों पर लगाने का निर्णय लिया है। ताकि हमारी आने वाली पीढियां इनसे सीख ले सकें। मैं आप सब को बताना चाहता हूँ हमारी सरकार ने तमाम क्षेत्रों में पिछली सरकारों से बेहतर प्रदर्शन किया है। देश की विकासदर ८ % के ऊपर है। महंगाई दर ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। सभी तरह के सूचकांकों में हम पिछली सरकारों से बेहतर हैं। ब्याज दरें लगातार ऊंचाई की ओर बढ़ रही हैं। किसानों की आत्महत्या के आंकडे भी हमारे पक्ष में हैं। हमारी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि अमेरिका के साथ होने वाली न्यूक्लिअर डील है। अब हम ऊँची लगत पर बिजली बनानें में सफल होंगे। इससे देशी विदेशी पूंजीपतियों को अकूत मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा । वो दिन अब दूर नही है जब मुकेश अम्बानी ( एवं अन्य ) दुनिया के सबसे बड़े धनकुबेर होंगे । उस दिन देश कितना गौरवान्वित महसूस करेगा। उससे भी ज्यादा जितना की आज अभिनव बिंद्रा के गोल्ड मैडल हासिल करने पर कर रहा है। और इसका श्रेय भी हमारी सरकार को जाता है। १९९१ में कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई नई आर्थिक नीति ने निजी उद्यम को बढ़ावा दिया है। अभिनव बिंद्रा ने यह उपलब्धि भी अपने निजी उद्यम से हासिल की है। १९९१ में शुरू किए गए आर्थिक सुधर अब अर्थव्यवस्था के साथ खेलों में भी अपना योगदान कर रहे हैं। प्यारे देशवासियों हमारे पहले प्रधानमंत्री ने पंचायती राज का सपना देखा था। ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो सके। उनका सपना पूरा हुआ है। सत्ता के साथ ही दूसरी चीजों का भी विकेंद्रीकरण हुआ है। भ्रष्टाचार इसमें सबसे ऊपर है। हाँ ये सही है कि इसके प्रचार में समय लगा है। पर आज हम सबों ने इसे आत्मसात कर लिया है। गरीबी पहले से कम हुई है। विपक्षी दलों को यकीन न हो तो टी आर पी की दौड़ में सबसे ऊपर के तीन चैनलों को देख लें। कुल मिलकर हर मोर्चे पर देश आगे बढ़ रहा है। आगामी लोकसभा चुनावों में अगर आपका साथ रहा तो हम इसे और आगे ले जायेंगे। आज से भी आगे । पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ कर । इसी उम्मीद के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ।
जय हिंद
जय भारत
Purnendu Shukla
Monday, August 11, 2008
जीते रहो........
यह अद्भुत दृश्य था.....विहंगम...कुछ विशवास नहीं कर पा रहे थे, कुछ मुस्कुरा रहे थे, कुछ चीख रहे थे और बाकी आंसुओं से भीगे थे ! दृश्य ही कुछ ऐसा था, तिरंगा लहरा रहा था और वो भी बीजिंग में ! जी हाँ .... और इसलिए क्यूंकि ओलम्पिक में भारत ने १९८० के बाद पहला स्वर्ण पदक जीता है। आपको भी विशवास नही हो रहा ? पर यह सच है ! यह पदक हाकी के अलावा किसी भी खेल में भारत का पहला स्वर्ण पदक है और यह इतिहास रचा है भारतीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने ! उन्होंने 10 मीटर एयर राइफ़ल में स्वर्ण पदक हासिल किया।
जहाँ पिछले दो दिनों में एक एक करके सारी भारतीय उम्मीदें टूटती जा रहीं थी, बिंद्रा ने न केवल लाज रखी बल्कि सर गर्व से ऊंचा कर दिया इस बार हालांकि यह उम्मीद थी की हम कोई न कोई पदक जीतेंगे पर तीसरे ही दिन स्वर्ण पदक मिलना वाकई उस देश के लिए अतीव गर्व की बात है जहाँ लोग क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों की तरफ़ आंशिक रूप से भी गर्दन नही हिलाते। हाकी टीम के ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई ना कर पाने से निराश देशवासियों के लिए ये वाकई बड़ी ख़बर है बल्कि बहुत बड़ी ख़बर !
बिंद्रा का स्कोर रहा
BINDRA Abhinav 100 99 100 98 100 99 596
Final shots: 10.7 10.3 10.4 10.5 10.5 10.5 10.6 10.0 10.2 10.8 104.5
अभिनव बिंद्रा का यह पदक १०४ साल में देश को मिला पहला व्यक्तिगत पदक है और यह निश्चित रूप से उनकी कड़ी मेहनत का परिणाम है। भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके स्वर्ण पदक जीतने पर बधाई दी है। भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि "ये बहुत बड़ा दिन है और देश के लिए बहुत गर्व की बात है। उनका कहना था कि अभिनव बिंद्रा युवाओं के लिए एक मिसाल बन गए हैं और इससे भारतीय युवाओं को बहुत बढ़ावा मिलेगा।" "अभिनव बिंद्रा के जीतने से भारतीय राष्ट्रीय ध्वज चीन में लहराया और राष्ट्रगान बजा जिससे हम सबका सर गर्व से ऊंचा हो गया" "कलमाडी का कहना था कि इसमें कोई शक नहीं कि ये ऐतिहासिक दिन है और इसका श्रेय भारतीय शूटिंग महासंघ को भी जाता है."
ज्ञात हो कि खेल रत्न से सम्मानित इस खिलाडी को पदक के दावेदार के तौर पर बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया था और न ही इस बार उनकी चर्चा ज्यादा थी लेकिन तुलसीदास ने कहा है कि सूर समर करनी करहि कही न जनावही आपु मतलब कि वीर कहते नहीं करके दिखाते हैं !
बिंद्रा तुम शूरवीर हो ! तुम लड़े....ऐसे देश में जहाँ लड़ना दुष्कर है तुम लड़े ..... परिस्थितयों से तुम लड़े....... समय से तुम लड़े ....... अपने लिए नहीं, हम सबके लिए तुम लड़े ...... देश के लिए तुम जीते ..... इन सबके लिए तुमको मिला सम्मान हमको मिला गौरवबोध है ! बिंद्रा ......... जीते रहो !!!
Friday, August 8, 2008
खेल दुनिया .......
कई दिनों से मेरे कई साथी जो खेल पत्रकारिता में रूचि रखते हैं, एक ब्लॉग की फरमाइश कर रहे थे जो केवल खेलों को समर्पित हो। इसी फरमाइश के चलते मैंने ये निर्णय लिया कि अब एक ब्लॉग बना ही दिया जाए जो खेलों के लिए हो। अब समस्या ये थी कि ब्लॉग कब चालू किया जाए तो निर्णय हुआ कि ब्लॉग को ओलम्पिक के चालू होने के साथ ही चालू किया जाए तो तय हुआ कि ८ अगस्त को ओलम्पिक के शुरू होने के साथ ही इस ब्लॉग को भी शुरू कर दिया जाएगा।
ये ब्लॉग खेल दुनिया ( www.khelduniya.blogspot.com) उनके लिए है जो क्रिकेट प्रेमी हैं और उनके लिए भी जो क्रिकेट से ऊब चुके हैं ...... इस में तरह के खेलों पर हम बात करेंगे और हर उस व्यक्ति के लेख, कहानी या कविता का स्वागत है जो खेलों पर लिखता है ! सो कलम उठा लीजिये और इस ब्लॉग का सदस्य बनने के लिए हमें मेल करें cavssanchar@gmail.com पर ..... फिलहाल ओलम्पिक आज शुरू हो रहे हैं तो लीजिये ओलम्पिक का मजा खेल दुनिया के साथ ... ! खेल दुनिया पर होगा ; दुनिया भर के खेल खेल की राजनीति खेल आधारित साहित्य खेल अपडेट और बहुत कुछ !
Wednesday, August 6, 2008
जब तक न छेद हो
Sunday, August 3, 2008
युगांत .....
१८ मई, 2008 की रात, जगह थी नॉएडा के सेक्टर १२ के मेट्रो हॉस्पिटल का क्रिटिकल केयर सेंटर ......... मैं शांत और स्तब्ध खडा एक युग को अपने अवसान की ओर जाते देख रहा था........ देख रहा था एक भीष्म को शैया पर पड़े .... और सोच रहा था कि हाँ ये वाकई एक युग का अंत है। मैं तो मैं हूँ ही और यहीं हूँ पर वो युग आज बीत गया, भीष्म आज इच्छा मृत्यु को प्राप्त हो गया ........ और वो भीष्म थे हरकिशन सिंह सुरजीत...... भारतीय वामपंथ के पितामह ! मैं तब नोइडा में एक अदद मीडिया की नौकरी के लिए मन मार रहा था और तभी पता चला कि सुरजीत जी मेट्रो में भरती हैं...... पुराना सोशलिस्ट मन जोर मार गया और रात के ९ बजे मोटर साइकिल का हैंडिल अपने आप ही मुड गया मेट्रो हॉस्पिटल की ओर .... गेट पर गार्ड से पूछा कि सुरजीत जी यहीं भर्ती हैं ...... सर हाँ में हिला इशारा किया रिसेप्शन की ओर , रिसेप्शन पर कहा गया कि ऊपर दूसरी मंजिल पर क्रिटिकल केयर सेंटर में हैं ! ऊपर पहुंचा तो अजीब सी शान्ति मिली, बहुत भीड़ भाड़ नहीं, कोई उत्साही समर्थक नहीं; ना ही पार्टी नेताओं का जमावडा ....... सिर्फ़ दो घरवाले और लुधियाना से आए दो रिश्तेदार ! पहले बाहर बैठने को कहा गया तो मुलाक़ात हुई सुरजीत जी के बड़े बेटे से जो ब्रिटेन के ग्लासगो शहर से आए थे और आजकल वही रहते हैं ........ पता चला कि स्थिति ज्यादा नाज़ुक है ....... सुरजीत जी कोमा में हैं ही और फेफडे तथा गुर्दे दोनों ही काम नही कर रहे थे। उनके रिश्तेदारों से भी उनके व्यक्तित्व के बारे में कुछ चर्चा हुई और बेशक वे उनके राजनीतिक जीवन के बारे में बहुत नही जानते थे पर उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में ज़रूर जानकारी मिली।
तभी बाहर आए उनके पौत्र जो उनकी देखरेख कर रहे थे ....... मेरे ये बताते ही कि छात्र जीवन में स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया से जुडा रहा था तुंरत उन्होंने कहा कि आप साथ आयें और मुझे अन्दर ले गए, सामने की शैया पर मैंने वो देखा जो अब तक किताबो में पढा था ........ एक युग का अंत ! बिस्तर पर तमाम तरह की नलियों और उपकरणों के बीच में कुछ साँसे संघर्ष कर रही थी ....... पहली बार सुरजीत जी को बिना पगड़ी के देखा, देख रहा था एक युग को अचेतन अवस्था में और याद कर रहा था जब पहली बार उनको लखनऊ में और फिर सैकडो बार टीवी पर देखा था।
जितना जानता हूँ उनके बारे में वो सब आज याद आ रहा है क्यूंकि आज १ अगस्त २००८ को अब वे हमारे बीच नहीं हैं ........... एक आम नागरिक के तौर पर हम सब उनके बारे बस यही जानते हैं कि वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) के भूतपूर्व महासचिव और सबसे बुजुर्ग कम्युनिस्ट थे, कई लोग उन्हें वयोवृद्ध कामरेड के या कामरेड सुरजीत के नाम से भी जानते थे। उनको लेकर कई विवादित मुद्दे भी रहे और बिल्कुल ये दूसरो से और भीड़ से अलग होने की कीमत भी है कि आपको प्रसिद्द होने के साथ विवादित भी होना पड़ेगा। कामरेड सुरजीत का जन्म २३ मार्च १९१६ को जालंधर जिले के बुन्दाला में एक बस्सी जाट परिवार में हुआ, इसे संयोग कहें या विधि की भगत सिंह के इस कट्टर अनुयायी का जन्म १९२६ में उसी दिन हुआ जिस दिन १९३१ में भगत सिंह को फांसी दी गई। १९३० में सुरजीत ने किशोरावस्था में ही भगत सिंह की नौजवान भारत सभा की सदस्यता ले ली और आज़ादी की क्रांतिकारी आन्दोलन में कूद पड़े। २३ मार्च १९३२ को भगत सिंह के पहले शहादत दिवस पर सुरजीत ने होशियारपुर कचहरी परिसर में तिरंगा लहरा दिया जिसमे इन्हे दो गोलियाँ मारी गई, अदालत में पेश किए जाने पर जज को इन्होने अपना नाम लन्दन तोड़ सिंह बताया।
रिहाई के बाद सुरजीत पंजाब के साम्यवादियों के संपर्क में आए और १९३६ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली, १९३८ में सुरजीत किसान आन्दोलन से जुड़ गए जब पंजाब किसान संघ की नींव पड़ी और वे उसके महासचिव बनाए गए। उसी साल उन्हें ब्रिटिश सरकार ने पंजाब से बाहर जाने का फरमान सुना दिया, यहाँ से वे पहुंचे उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और वहां से चिंगारी नाम की इंकेलाबी पत्रिका निकालने लगे। तभी द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया और उनको भूमिगत होना पड़ा। फिर उन्हें गिरफ्तार करके लाहोर किले में क़ैद कर दिया गया। १९४४ में वे वहाँ से रिहा हुए और दोबारा किसान आन्दोलन में जुट गए। तभी देश आजाद हो गया ....... इस दौरान बंटवारे को लेकर हुए दंगो में हिंसा रोकने और सदभाव फैलाने की सुरजीत की कोशिशों को लोग आज भी याद करते हैं। १९५४ में भाकपा के तीसरे अधिवेशन में वे पार्टी की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो में चुने गए। वो इन पदों पर १९६४ में पार्टी के टूटने तक रहे फिर १९६४ में विवादित घटनाक्रम में भाकपा मार्क्सवादी की स्थापना हुई और तब से अप्रैल २००८ तक वे पार्टी के वरिष्ठतम क्रम पर रहे। यही नही पिछले दस सालो में गठबंधन की राजनीती में भी सुरजीत हमेशा धुरी बने रहे। अप्रैल २००८ में गिरते स्वास्थ्य की वजह से सुरजीत ने पार्टी के तमाम पदों से इस्तीफा दे दिया।
१९६२ में (कथित साम्यवादी) चीन के हमले के दौरान चीन का समर्थन करने वाले नेताओं में सुरजीत भी शामिल थे और ये विवाद जीवन पर्यंत उनके साथ जुड़े रहे। सुरजीत का ये कदम उनके पूरे राजनैतिक जीवन का सबसे ग़लत कदम माना जा सकता है पर फिर भी इसे सबसे दुस्साहसिक कदम भी कहेंगे ....... ऐसा दुस्साहस सुरजीत हमेशा करते रहे ! सुरजीत उन साम्यवादियों में रहे जो विवादित तो रहे पर कई मामलो में उनके विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। वैसे भी कोई व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं पर उसके कुछ महान काम उसकी तमाम गलतियों पर भारी पड़ते हैं। उनका दुस्साहस यह भी था कि एक ज़बरदस्त विवाद की आधार भूमि पर एक नयी पार्टी बना दी और आज वो देश की सबसे बड़ी साम्यवादी राजनैतिक पार्टी है .......... ये श्रेय उनसे नहीं छीन सकते हम .......... हम में से कितने लोग एक झंडा फहराने के लिए सीने पर गोलियाँ खाने को तैयार हैं ? ...... हम में से कितने किसानो के हक के लिए अपनी जायदाद बेच देंगे ? हम में से कितने लोग खालिस्तान अलगाववादियों के ख़िलाफ़ खुल कर खड़े हो गए था ?
१८ मई की रात मेट्रो हॉस्पिटल में मेरे सामने सुरजीत जी कोमा में पड़े मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे ................ और मैं पहुँच गया था लखनऊ के उस वक़्त में जब मेरी उनसे पहली और चेतन अवस्था में आखिरी भेंट हुई थी ! ...... तब मैंने उनसे अभिवादन करते हुए कहा था ' कामरेड लन्दन तोड़ सिंह को मेरा सलाम ' और उधर से जवाब आया कि " लन्दन क्या जो भी चीज़ तुम पर ज़बरदस्ती थोपी जाए उसे तोड़ डालो ! "
यादों से लौट कर मैं फिर हॉस्पिटल में था........और सोच रहा था कि क्या उनसे ऐसी ही दो मुलाकातें होनी थी .... एक जिसमे ऐसा जोश था और एक में जिंदगी के अंत का सन्नाटा ? फिर अचानक देखा कि सुरजीत जी ने अवचेतन अवस्था में एक बार ज़ोर से साँस ली .... जैसे कहना चाहते हों कि लड़ाई तो हमेशा ही है, चाहे दुनिया से या ख़ुद से ! मैं फिर शांत था क्यूंकि देख लेना चाहता था पूरे ध्यान से और चाहता था कि हमेशा के लिए हिस्सा बन जाऊ उस युग का जो अब ख़त्म हो गया...........
मेरे सामने भीष्म की भांति एक युग और वाकई भारतीय राजनीति शर शैया ही है ..... एक महागाथा अपनी परिणिती की ओर थी .............. आज वो पूर्ण हुई ! विवाद तो होंगे ही ..... गलतियां भी होनी ही हैं पर युग तो युग है ........ यह एक युग की समाप्ति थी ....भारतीय साम्यवाद के !
मयंक सक्सेना
९३११६२२०२८