सांप्रदायिक शक्तियों का नाश करो
देश की एकता और अखंडता की हिफाजत के लिए दीपावली के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि सांप्रदायिक शक्तियों का नाश किया जाए ।
इन शक्तियों ने अपने स्वार्थ के लिए जाति-
धर्म,
भाषा ,
प्रान्त का शोर मचा कर हिन्दुवत्व की आड लेकर साम्प्रदायिकता और प्रांतीयता जगा कर अपने स्वार्थ सिद्ध करते है।
इन्ही स्वार्थी तत्वों के कारण देश का विकास रुकता है बाधित होता है,
जबकी देश की समस्याओं का निराकरण मिल बाँट कर करने की बात नही होती है तबतक देश का विकास बाधित रहता है।
सांप्रदायिक शक्तियों के कारण भाषा,
जाति,
प्रान्त जैसे मुद्दे बने रहते है और मुख्य मुद्दे गौड हो जाते है ।
जैसे बेरोजगारी महंगाई, शोषण,
अत्याचार,
उत्पीडन का खत्म तथा रोटी, आवास,
स्वास्थ,
शिक्षा जो हमारी मुख्य आवश्यकताएं है सब गौड हो गई है इसलिए आवश्यक हो गया है की एक बेहतर समाज बनाने के लिए हमको महासागर की भूमिका में को अपनाना होगा । महासागर में विभिन्न नदियों का पानी आकर उसका निर्माण करती है. उसी तरह भारत का निर्माण विभिन्न धर्मो, जातियों, भाषाओ रुपी नदियों से होता है हमारा देश भी एक महासागर है और विश्व का अद्भुद देश भी है क्षुद्र स्वार्थी तत्व इसके स्वरूप को नष्ट कर देना चाहते है । उन तत्वों से देश को बचाना होगा।
दीपावली इस देश के नायक मर्यादा पुरषोत्तम राम के रावण को मार कर वापस आने के अवसर पर देशवासियों द्वारा दीपक जलाकर मनाने से प्रारम्भ हुआ था। यह हमारी वैभव सम्पन्नता के प्रतीक का त्यौहार है किंतु सांप्रदायिक तत्वों ने समय-समय पर मर्यादा पुरषोत्तम राम के आचरण के विपरीत सांप्रदायिक झगडे खड़े कर इस देश को कमजोर किया है । राम को वनवास दिया है । कुछ वर्षो पूर्व बाबरी मस्जिद का ध्वंस करके देश की एकता और अखंडता को कमजोर किया है। सुप्रसिद्ध शायर कैफी आजमी ने लिखा है :-
राम बनवास से जब लौट के घर में आए
याद जंगल बहुत आया, जो नगर में आये
रक्से दीवानगी आँगन में जो देखा होगा
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आए
जगमगाते थे जहाँ राम के कदमो के निशान
प्यार की कहकशां लेती थी अंगडाई जहाँ
मोड़ नफरत के उसी राहगुजर में आये
धर्म क्या उनका था, क्या जात थी, यह जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारे खंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की खता, जख्म जो सर में आये
पाओ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे
के नजर आए वहां खून के गहरे धब्बे
पाओ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे
राम यह कहते हुए अपने द्वारे से उठे
राजधानी की फिजा आई नही रास मुझे
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे
आइये हम आप मिलकर सांप्रदायिक शक्तियों का नाश करने के युद्घ में आगे आयें और जिन लोगो ने हमारे नायक को फिर बनवास दिया है उनका नाश करें ।
दीपावली हमारा महापर्व है । हम आप सबकी सुख और सम्रद्धि की कामना करते है
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
1 comment:
आपका कहना एकदम दुरुस्त है ।
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