Wednesday, February 4, 2009
दरवाजे पर खड़ी खड़ी खड़ी
दरवाजे पर खड़ी खड़ी
सजनी करे विचार
फाल्गुन कैसे गुजरेगा
जो नहीं आए भरतार।
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फाल्गुन में मादक लगे
जो ठंडी चले बयार
बाट जोहती सजनी के
मन में उमड़े प्यार।
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साजन का मुख देख लूँ
तो ठंडा हो उन्माद,
"बरसों" हो गए मिले हुए
 रह रह आवे याद।
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प्रेम का ऐसा बाण लगा
 रिस रिस आवे घाव
साजन मेरे परदेसी
बिखर गए सब चाव।
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हार श्रंगार सब छूट गए
 मन में रही ना उमंग
 दिल पर लगती चोट है
बंद करो ये चंग।
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परदेसी बन भूल गया
 सौतन हो गई माया
पता नहीं कब आयेंगें
जर जर हो गई काया।
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माया बिना ना काम चले
 ना प्रीत बिना संसार
जी करता है उड़ जाऊँ
 छोड़ के ये घर बार।
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बेदर्दी बालम बड़ा
 चिठ्ठी ना कोई तार
 एस एम एस भी नहीं
 आया कैसे निभेगा प्यार।
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1 comment:
विरहिणि के मन की ्यथा का सुंदर चित्रण ।
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