Monday, February 2, 2009
रात भर यूं ही.........
कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
चाहता हूँ कि तुम प्यार ही जताते रहो,
अपनी आंखो से तुम मुझे पुकारते रहो,
कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
चुपके से हवा ने कुछ कहा शायाद ..
या तुम्हारे आँचल ने कि कुछ आवाज़..
पता नही पर तुम गीत सुनाते रहो...
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
ये क्या हुआ , यादों ने दी कुछ हवा ,
कि आलाव के शोले भड़कने लगे ,
पता नही , पर तुम दिल को सुलगाते रहो
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
ये कैसी सनसनाहट है मेरे आसपास ,
या तुमने छेडा है मेरी जुल्फों को ,
पता नही पर तुम भभकते रहो..
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
किसने की ये सरगोशी मेरे कानो में ,
या थी ये सरसराहट इन सूखे हुए पत्तों की,
पता नही ,पर तुम गुनगुनाते रहो ;
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
ये कैसी चमक उभरी मेरे आसपास ,
या तुमने ली है ,एक खामोश अंगढाईं
पता नही पर तुम मुस्कराते रहो;
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......
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4 comments:
kuchh bhi kaho...
bahut sundar rachna he..
sabse behtreen pankti mujhe lagi
apni aankho se mujhe pukarte raho..
vah kya baat he..kavi aour uski kalpna esi upma me aate he to
man prasanna ho jaata he.
बहुत सुंदर कविता के लिये आप का धन्यवाद
किसने की ये सरगोशी मेरे कानो में ,
या थी ये सरसराहट इन सूखे हुए पत्तों की,
पता नही ,पर तुम गुनगुनाते रहो ;
kya baat hai......
sunder kawita.
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