Sunday, May 25, 2008
बैठे हैं इंतिज़ार में ...
'तनहा' उदास रात के लमहों की खैर हो
इक शम्म जल उठी है अंधेरों की खैर हो
बैठे हैं इंतज़ार में लौटेंगे वो कभी
बरसों की बात छोड़िये सदियों की खैर हो
होठों पे एक बात है होती नहीं बयाँ
सोचा है आज कह भी दें लफ़्ज़ों की खैर हो
उनको छुआ कि जिस्म को बिजली ने छू लिया
देखा है उनको बारहा आंखों कि खैर हो
मौजों से आज हो गयी तूफाँ कि दोस्ती
दरिया है बेलगाम किनारों की खैर हो
-- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
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4 comments:
वाह!
GOOD JOB....
प्रमोद जी बहुत खूब लिखा है आपने...
उम्मीद है ये सिलसिला जारी रहेगा...
शुभकामनाओं के साथ
परवेज़ सागर
Aasha ji , Keerti ji aur bhai Parvez Sagar ji , ghazal pasand karne ke liye aap sabhi ka shukriya .
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