Sunday, May 4, 2008
आंसू भी खनकते हैं...
हंसते हैं उजालों में रातों में तड़पते हैं
जज़्बात मुहब्बत के मुश्किल से संभलते हैं
ये इश्क नहीं आसाँ दरिया है शरारों का
जो मौज से बचते हैं साहिल पे पिघलते हैं
ज़ख्मों की कमाई है ख़्वाबों के खजाने हैं
पलकों की तिजोरी में आंसू भी खनकते हैं
जब याद सताती है भूले से सितमगर की
इक साथ कई शीशे नस नस में चट्कते हैं
आंखों की लड़ाई में कुछ हाथ नहीं आता
इस खेल में शातिर भी करवट ही बदलते हैं
कुछ वस्ल के अफ़साने कुछ हिज्र के नजराने
'तनहा' की निगाहों में दिन रात मचलते हैं
-- प्रमोद कुमार कुश ' तनहा'
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3 comments:
palkon ki tijori me ansu bhi khanakte hain..wah kya khoob rachna hai....
बहुत बढिय़ा, कमाल की गज़ल ।
ati sunder abhiwaykti
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