हमारी खुफिया एजेंसियां 26 जनवरी , 15 अगस्त, 6 दिसम्बर जैसे मौकों पर व आतंकी मामलों में मीडिया के माध्यम से मालूम होता है की वो काफ़ी सक्रिय हैं और देश चलाने का सारा भार उन्ही के ऊपर है । खुफिया एजेंसियों की बातें और उनकी खुफिया सूचनाएं बराबर अखबार में पढने व इलेक्ट्रोनिक माध्यम से सुनने को मिलती हैं । छुटभैया नेता रोज प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है और छपने पर अखबार खरीद कर जगह-जगह किसी न किसी बहाने लोगो को पढवाता रहता है और उसी तरह खुफिया एजेंसियां मीडिया में अपने समाचार प्रकाशित करवाती रहती हैं। खुफिया सूचनाओं का अखबारों में प्रकाशित होना क्या इस बात का धोतक नही है कि जान बूझ कर वह प्रकाशित करवाई जाती हैं और उन सूचनाओ में कोई गोपनीयता नही है । अक्सर विशिष्ट अवसरों से पहले तमाम तरह की कार्यवाहियां मीडिया के माध्यम से मालूम होती हैं जो समाज में सनसनी व भय फैलाने का कार्य करती हैं अंत में वो सारी की सारी सूचनाएं ग़लत साबित होती हैं । नागरिक उस विशिष्ट अवसर से पहले इन सूचनाओ से भयभीत रहते हैं जबकि खुफिया जानकारियों का गोपनीय रहना आवश्यक होता है और किसी घटना होने के पूर्व उन अपराधियों को पकड़ कर घटना को रोकने का कार्य होना चाहिए लेकिन हमारी खुफिया तंत्र का कार्य घटना हो जाने के पश्चात् शुरू होता है । भारतीय कानूनों के तहत सबूतों को व बयानों को अंतर्गत धारा 161 सी आर पी सी के तहत केस ड़ायरी में दर्ज किया जाता है । उस केस ड़ायरी को विपक्षी अधिवक्ता न देख सकता है न पढ़ सकता है । छोटी से लेकर बड़ी घटनाओं तक सारे सबूतों व बयानों को प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से जनता को बताया जाता है । इस तरह का कृत्य भी अपराध है जिसको हमारा खुफिया तंत्र व पुलिस तंत्र रोज करता है। खुफिया सूचनाओ का कोई महत्त्व नही रह जाता है । इन दोनों विभागों की समीक्षा ईमानदारी से करने की जरूरत है अन्यथा इन दोनों विभागों का कोई मतलब नही रह जाएगा । अगर खुफिया तंत्र इतनी छोटी सी बात को समझ पाने में असमर्थ है तो धन्य है हमारे देश की खुफिया एजेंसियां ।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
Monday, December 7, 2009
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