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Monday, January 19, 2009

मत करना विश्वास

मत करना विश्वास अगर रात के मायावी अन्धकार में उत्तेजना से थरथराते होठों से किसी जादुई भाषा में कहूं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ मैं मत करना विश्वास अगर सफलता के श्रेष्ठतम पुरस्कार को फूलों की तरह गूँथते हुए तुम्हारे जूडे मे उत्साह से लडखडाती हुई भाषा में कहूं सब तुम्हारा ही तो है! मत करना विश्वास अगर लौट कर किसी लम्बी यात्रा से बेतहाशा चूमते हुए तुम्हे एक परिचित सी भाषा में कहूं सिर्फ़ तुम आती रही स्वप्न में हर रात

हालांकि सच है यहकि विश्वास ही तो था वह तिनका जिसके सहारे पार किए हमने दुःख और अभावों के अनंत महासागर लेकिन फ़िर भी पूछती रहना गाहे बगाहे किसका फ़ोन था कि मुस्करा रहे थे इस क़दर ? पलटती रहना यूं ही कभी कभार मेरी पासबुक करती रहना दाल में नमक जितना अविश्वास

हंसो मत ज़रूरी है यह विश्वास करो तुम्हे खोना नही चाहता मैं

2 comments:

अमिताभ श्रीवास्तव said...

achcha likha he aapne..apki kalam aor sochane ki shakti behatar he..

Asha Joglekar said...

बहुत खूबसूरत प्रस्तुती ।

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