Saturday, January 17, 2009
भोर
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा,
रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम किंतु मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
सुंदर प्रभात का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में , भौंरें ये मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ,घंटियाँ , मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , पंडितो की वाणी निखार रही
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
जैसे प्रभु की साड़ी सृष्टि ,इस का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,नए जीवन का आवहान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
vijay kumar sappatti
M : 09849746500
E : vksappatti@gmail.com
B : www.poemsofvijay.blogspot.com
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2 comments:
बहुत ही सुंदर कविता . धन्यवाद
bhai mere ab to uth jaa...
bahut sundar likha he..
itani kavitaye hoti he pr afsos uthna bahut kamo ki kismat me hoti he..
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