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Wednesday, January 7, 2009

मुखिया जी से शिकायत कब तक?

याद करें, मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकियों के हमले के तुरंत बाद क्या प्रतिक्रिया थी? पूरे देश के साथ-साथ सरकार के स्वर में भी यह बात शामिल थी कि पाक को सबक सिखाया जाएगा। यह स्वर गायब हो चुका है? जनता के स्वर में निराशा का पुट है तो सरकार की चेतावनी भी अब घिघियाहट सी लगती है। इतना तो तय हो ही चुका है कि हम अपने दम पर कुछ नहीं कर सकते। पाक के खिलाफ कारॆवाई की बात तो छोड़ दें, उन आतंकियों के खिलाफ कारॆवाई के लिए भी हम बाकी देशों की चिरौरी कर रहे हैं, जिन्होंने हमारी नाक में दम कर रखा है। न जाने कितने सालों से पाक भारत के खिलाफ आतंकियों को शह दे रहा है, उनकी मदद कर रहा है। बावजूद इसके हमें हर हमले के बाद नए सिरे से हमले में पाकिस्तानी आतंकियों की संलिप्तता के सुबूत देना देने पड़ते हैं। इस बार भी हम वही कर रहे हैं। आपत्ति इस बात पर नहीं है। पाक की करतूतों की जानकारी पूरी दुनिया को होनी चाहिए। कूटनीतिक प्रयास जारी रहें। संभव है, इसके नतीजे बाद में आएं।

दिल नहीं दिमाग की बात करें तो कोई नहीं कहता कि हमें पाक पर हमला कर देना चाहिए। लेकिन इन दिनों भारत और पाकिस्तान के सुर पर विचार करें तो बात चोरी और सीनाजोरी वाली लगती है। पाकिस्तानी आतंकियों ने हमें इतनी बड़ी चोट दी, इसके बावजूद पाकिस्तान धौंस भरे स्वर में बात कर रहा है। और इक्का-दुक्का बेमतलब के बयानों को छोड़ दें तो हमारी सारी सक्रियता इस बात को लेकर है कि अमेरिका और बाकी देश मिलकर पाकिस्तान पर दबाव बनाएं। इतना तो हमने भी मान ही लिया है कि हमारे किए कुछ नहीं होने वाला।

एक बात और। दुनिया भर में अमेरिकी दादागीरी की बात को लेकर कभी-कभी अपने यहां भी बहस होती है। सरकार भी कहती है कि हमारी नीतियां या हम अमेरिका से नहीं प्रभावित होते। ये बातें कितनी निरथॆक हैं, यह एक बार फिर साबित हुई है। भारत पर आतंकियों के हमले के बाद हम फिर अमेरिका पर ही टकटकी लगाए बैठे हैं। सारी उम्मीदें वहीं हैं। अमेरिका दबाव बनाए तो पाक आतंकियों के खिलाफ कोई कारॆवाई करे। वरना वह तो यह भी मानने को तैयार नहीं कि हमला पाकिस्तानियों ने किया।

मानेगा भी क्यों? आपने ऐसा किया ही क्या है? और अमेरिका आपके लिए किस हद तक दबाव बनाएगा, यह तो उसे ही तय करना है। विश्व ग्राम के अघोषित मुखिया जी गांव के इस दुस्साहसी घर के साथ अपने रिश्ते भी देखेंगे। और यह किसे पता नहीं होगा, गांव में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत आज भी पूरी दमदारी के साथ मौजूद है। मार खाने के बाद मुखिया जी से शिकायत करके अपने कतॆव्य की इतिश्री मान लेने वाले लोग आगे भी पिटते रहते हैं। गांव में भी लोग उसीसे भिड़ने से बचते हैं, जो मारपीट भले न करता हो, मारपीट का जवाब देने की हैसियत रखता हो। फिलहाल हमारी स्थिति तो जवाब देने वाली नहीं, मुखिया जी से शिकायत करने वाली ही लगती है। आखिर क्यों नहीं पाकिस्तान को भी उसी की भाषा में जवाब दिया जाए। ऐसे भी पाकिस्तान कहता तो यही है। आप आईएसआई पर हमले की बात करते हैं तो वह रॉ पर आरोप लगाता है। आप जैश, लश्कर प्रमुख और दाऊद को मांगते हैं तो वह बाल ठाकरे, छोटा राजन की सूची सौंपता है। आपके सुबूतों के जवाब में दुनिया को आपके खिलाफ तैयार सीडी सौंपता है।

अब हम भी देते रहें दुनिया को सफाई। आखिर पाकिस्तान के खिलाफ सुबूतों के दम पर हम विश्व समुदाय से अपने साथ खड़े होने की उम्मीद करेंगे तो उन्हें यह भी तो बताना होगा कि नहीं, पाकिस्तान जो कह रहा है, हम वैसा कुछ नहीं करते। इसका मतलब हमें अकारण ही बचाव की मुद्रा में आना होगा। जो हम करते नहीं, उसकी सफाई देनी होगी।

इसे लेकर बहुत किंतु-परंतु हो सकते हैं, लेकिन आखिर पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की रणनीति क्यों नहीं बननी चाहिए? कब तक हम हर हमले के बाद दुनिया के सामने घिघियाते रहेंगे कि पाक को रोको। यह तो तय है कि पाक के खिलाफ क्या किसी के भी खिलाफ युद्ध की स्थिति में हम नहीं है। युद्ध तो केवल दुनिया का दादा अमेरिका ही छेड़ सकता है। भले ही वह एकतरफा क्यों न हो? युद्ध के अधिकार और स्थिति से वंचित भारत को भी तो आखिर अपने बचाव के लिए कुछ न कुछ करना होगा। क्या यह जैसे को तैसा की रणनीति के अलावा वतॆमान परिस्थितियों में कुछ और हो सकता है? कई बार तो यह भी लगता है कि मुंबई पर हमले के बाद से लेकर अब तक हमारी सरकार तय ही नहीं कर पाई है कि उसे करना क्या है। यह मानने में सचमुच हमें संकोच नहीं होना चाहिए कि हमारे पास वैसे नेतृत्व का अभाव है जो ऐसे मौकों पर उचित निणॆय ले सके। बात सिफॆ प्रधानमंत्री की नहीं है, पूरी सरकार ही इस मामले में लचर दिखाई दे रही है। हमारे नेता गाहे-बगाहे यह दोहराकर देश को संतुष्ट करने की कोशिश भर कर रहे हैं कि हमारे सारे विकल्प खुले हैं। विकल्प बताने को कोई नहीं कहता लेकिन देशवासी न जाने यह बात कितने सालों से सुन रहे हैं। हर बड़े हमले के बाद यह बात बार-बार दोहराई जाती है। होता कुछ नहीं है।

देश की जनता भी हर बार इस तरह की बातें सुन-सुनकर उसी रंग में रंग गई लगती है। वरना कहां हमले के बाद का शोर और कहां अब की उदासीनता। हमले के बाद जितना शोर हमारे नेता मचा रहे थे, जनता भी कुछ उसी अंदाज में उतना ही शोर मचा रही थी और अब वह भी शांत हो गई। आखिर भारत के खिलाफ पाक की इतनी बड़ी-बड़ी साजिशों के बावजूद क्यों नहीं कोई जनांदोलन इस बात के लिए उपजता कि पाक को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए? आखिर जनतंत्र में सबकुछ होता भी तो जनता की इच्छा से ही है।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर बात लिखी आप ने , लेकिन हम बार बार क्यो मुखिया के पास जाते है? क्यो नही खुड कुछ करते,?????
धन्यवाद

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