Tuesday, January 27, 2009
माँ
माँ
जैसे दूध पे जमे मलाई, वैसे घर में होती माँ
जैसे बहती हो पुरवाई , वैसी ठंडक देती माँ ।
जैसे सर्दी की हो धूप, वैसे अच्छी लगती माँ
जैसे झम झम बरसे बारिश, वैसे प्यार लुटाती माँ ।
कभी कभी तो तेज़ धूप सी गुस्सा करती माँ
और उमस भरी दोपहरी सी, गुपचुप रहती माँ ।
पर जब हम बादल से घुमडें आसपास पास
बारिश की पहली बूंदें, आँखों छलकाती माँ ।
कभी हमें गंभीर बनीं बातें समझाती माँ
रात को लेकिन उढा के चादर, माथा चूमती माँ ।
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1 comment:
chot lagti hamko aur dard mahsus karti hai maa.
bahut khub...........
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