Sunday, April 27, 2008
कभी देखो किसी से दिल बदल के ...
दरो - दीवार की हद से निकल के
अकेले हर कदम रक्खो सँभल के
बदल डालो मआनी ज़िंदगी के
कभी देखो किसी से दिल बदल के
सँभालो आईना ये काग़ज़ी है
गुरूर-ऐ- हुस्न का प्याला न छलके
मसाइल हल न होंगे खंजरों से
कटेगा हर सफ़र इक साथ चलके
जलाओगे हमें ' तनहा ' जलोगे
मिटोगे शमा की मानिंद जल के
--- प्रमोद कुमार कुश ' तनहा '
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
बहुत खूबसूरत ।
umda....
Post a Comment