Friday, April 25, 2008
ओह ...लड़की हुई है
एक महिला जिनके साथ ३२ साल जुड़ी रही, एक खुशमिजाज़ महिला जो घर के हर काम में निपुण थी ।
अपनी ४ बहुओ की लाडली सास। जब भी उनकी कोई भी बहु गरभती होती तों उसके हजारो नखरे सर आंखो पर उठाती ।
कभी उनके सर तेल डालती कभी उनकी रूचि का खट्टा - मीठा पकवान बनाती ।
बच्चे के जनम के समय हमेशा सब से आगे हॉस्पिटल में खड़ी रहती ..कोई समस्या तों नही ....सब ठीक तों हैना डॉक्टर जी।
तभी एक नर्स लेबर रूम से चिल्लाती आती है "माता जी लड़की हुई है" ......और माता जी का पीला चेहरा और वो शब्द " ओह ...लड़की हुई है "
न जाने क्यों यह शब्द मुझे हमेशा उनसे बहुत दूर खींच ले जाते, ऐसा लगता की उन्होने मुझे और अपने को भी गाली दी है।
क्या सच में लड़की का होना अपराध है ? क्या एक औरत को दूसरी औरत का नव स्वागत ऐसे करना चाहिए ?
क्यों लड़कियों और लड़को की परवरिश में भी फर्क रखा जाता है जबकि दोनों एक ही घर के बच्चे है , लड़का होता है तों ढोल पीते जाते है पूरे शहर का मुँह मीठा किया जाता है और अपनी ही बेटी के जन्म पर अपना ही मुँह खट्टा हो जाता है।
देश प्रगति की रहा पर है, शिकषित लोगो की संख्या बढ़ रही है पर हमारी सबकी सोच अब भी वंही के वंही थकी और बीमार पड़ी है ।
कीर्ती वैद्य .....
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6 comments:
सही कहा है । हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि पुरुष श्रेष्ठ है । वही संस्कार पत्थर की लकीर बनकर हमारे मन मस्तिष्क पर छाये रहते हैं । जिन्हे प्रयत्न पूर्वक ही हटाना पडेगा और अपने बच्चों पर भी नये संस्कार करने होंगे ।
thanxs didi..for ur valuable comment..
mam ho sakata hai ki mere comment par koi sahamat ho ya na ho .... yah bat satya hai ki aurat ki dushaman aurat hai. chahen dahej ka mamala ho ya gharelu hinsa ka mamala ho ....
mujhe samajh me nahi aata ki ham log aadhunik kapade pahankar aadhunik dikhane ki koshish kar rahe hain lekin apni manshik sthiti badalane ki koshish nahi kar rhe hain.
satyandra
iam agreed with u.....ladies 69% shaanil hai mere hisaab sey
औरत औरत की दुष्मन क्यूं है ? म्रर्द यही चाहता है क्यूंकि इसी में उसका फायदा है । जाने अन-जाने वह इस तरह के क्लेश को बढावा देता रहता है । य़दि मर्द इसके खिलाफ है तो इसके खिलाफ कदम क्यूं नही उठाता ? वह तो ताकतवर है।
My comments are "bound" to be read only as a reaction to the comments above..
The problem is similar to the problem here in this comment box.. the blame game.. The social issues like this are to be sorted out together.. neither by men and nor by women.. by us, by every"I", by mothers, by fathers, by brothers, sisters, sons, wives, husbands, lovers. The problem is not a problem, the problem is the mindset to point out and blame the problem and not starting working towards the solution.
Please please please - the comment is not to be taken as a personal comment to any of us here.. it's js an appeal to all who would read this comment.
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