Sunday, April 27, 2008
कभी देखो किसी से दिल बदल के ...
Friday, April 25, 2008
ओह ...लड़की हुई है
Thursday, April 24, 2008
हमने ज़िन्दगी को...
Thursday, April 17, 2008
तिब्बतीयों को आजादी कब मिलेगी.............
Monday, April 14, 2008
कल थी १३ अप्रैल और हम सब एक बार फिर कुछ भूल गए ..... कल के ही दिन १९१९ में जलियांवाला बाग़ में कातिल डायर के हाथों सैकडो निर्दोषों की जान गई थी कुछ याद पडा ? खैर कोई बड़ी बात नहीं हैं क्यूंकि अब यह आम बात हैं दरअसल फ़िल्म अभिनेताओ के जन्मदिन याद रखते रखते अब हम ये सब छोटी मोटी बातें भूलने लगे हैं ...
पर माफ़ी चाहूँगा कि मैंने जुर्रत की याद दिलाने की पर अब याद आ ही गई हैं तो भगत सिंह की डायरी से कुछ , यह कविता भगत सिंह ने जतीन दा की मृत्यु पर पढी थी, जिसके लेखक यू एन फिग्नर थे,
जो तेजस्वी था वह धराशायी हो गया
वे दफ़न किए गए किसी सूने में
कोई नहीं रोया उनके लिए
अजनबी हाथ उन्हें ले गए कब्र तक
कोई क्रोस नही
कोई शिलालेख नहीं बताता उनका गौरवशाली नाम
उनके ऊपर उग आई है घास ,
जिसकी झुकी पत्ती सहेजे है रहस्य
किनारे से बेतहाशा टकराती लहरों के सिवा
कोई इसका साक्षी नहीं
मगर वे शक्तिशाली लहरें
दूरवर्ती गृह तक विदा संदेश नहीं ले जा सकती ........
कुल मिला हम आगे भी शायद इनका बलिदान याद नहीं रखने वाले हैं जब तक कि याद न दिलाया जाए ! खैर कुछ लोग हमेशा इस याद दिलाने के काम में लगे रहेंगे .....
धन्यवाद महान नेताओं को
जागरूक मीडिया को
सेवक समाज सेवियो को
साम्यवादी कलाकारों को
देशभक्तों को परदे पर उतारते फ़िल्म कलाकारों को
बुद्धिजीविओं को
विद्वानों को
हम सबको
जो आज का दिन भूल गए
ठीक ही है .....
जब सामने मरता आदमी नहीं दिखता
तो वो तो बहुत पहले मर चुके !!
जलियावाला बाग़ में आज के दिन १९१९ में रोलेट एक्ट का विरोध करने एक आम सभा में करीब २० हज़ार लोग इकट्ठा हुए थे ........ दिन था फसलों के त्यौहार बैसाखी का ...... बाग़ से निकलने के इकलौते रास्ते को बंद करवा कर पंजाब के लेफ्टिनेंट माइकल ओ डायार ने १६५० राउंड फायर करवाए ....निर्दोष औरत, बच्चे , बूढे, और पुरूष क़त्ल...............१५०० घायल !!!
भूल गए
हो गई गलती .....
आख़िर कहाँ तक याद रखें ....!
मार्च १९४० में उधम सिंह ने डायर की लंदन में हत्या की ..... मकसद था जलियावाला का बदला लेना फांसी दिए जाने पर उधम सिंह ने कहा,
" मुझे अपनी मौत का कोई अफ़सोस नहीं है। मैंने जो कुछ भी किया उसके पीछे एक मकसद था जो पूरा हुआ ! "
पर हम भूल गए क्या कोई मकसद है हमारे पास ?????
सोचना शुरू करिये ....... आख़िर आप सब पत्रकार हैं !
सुनहरे भविष्य की शुभकामनाएं !!!
मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@जीमेल.com
Monday, April 7, 2008
मैं कौन ...
आज भि यही सवाल मेरे ज़हन
ढूँढ रही ना जाने कब से, मैं कौन?
शायद वो...
जो गुडयिया से घर-घर खेले
नाक -चश्मा, काँधे बस्ता
कच्ची सड़क नाप, सकूल पहुँच जाये
रोज़, ढूध इक सांस में गटक
घंटो साईकल लिए फिरे
शायद वो....
गीतों के धुन पे मोरनी बन नाचे
कटी पतंगो,कभी तितलियों के पीछे भागे
रोज़ घुटने कभी कोहनी चोट खाये
माँ की डांट पर कोने बैठ मुँह फुलाये
बहना से लड़ उसकी टोफ्फी चुरा खाये
शायद वो...
चोरी से सिगरेट के छल्ले बनाना सीखे
कभी बियर के बोतलों में ज़िन्दगी ढूंढे
कभी इक सांस में मंदिर की सीढिया चढ़े
कभी सालो इश्वर को अपने में ही ढूंढे
शायद वो...
बिन परवाह किये बिन सब बंधन तोड़ दे
अपनी हथेली सजी मेहंदी को ही रोंद दे
कभी बन पहाड़ घर-परिवार संभाले
कभी शोला बन दुनिया फूंक डाले ..
शायद वो...
इंसानी रिश्तो को बारीकी से समझे
कभी उन्ही रिश्तो में छली जाये
आधी अधूरी ज़िन्दगी को हाथो में समेटे
कभी दुनिया को अलविदा कह जाये
फिर भि अब तलक ना पता
मैं कौन ... ?
कीर्ती वैद्य ....०५ अप्रैल २००८