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Wednesday, November 11, 2009

युवा दखल: इस ज़िद को बचाये रखना अल्पना जी

युवा दखल: इस ज़िद को बचाये रखना अल्पना जी इतिहास विजेताओं का ही होता है अक्सर और साहित्य का इतिहास? एक वक़्त था जब इसमे वो दर्ज़ होते थे जिनके कलाम से उनका समय आलोकित होता था। वे जो अपने वक़्त के साथ ही नहीं बल्कि ख़िलाफ़ भी होते थे…वो जो बादशाह के मुक़ाबिल खडे होकर कह सकते थे-- संतन को कहां सीकरी सो काम। पर अब शायद इतना इंतज़ार करने का वक़्त नहीं किसी के पास। सो वही दर्ज़ होगा जिसके हाथों में पुरस्कार होगा, गले में सम्मान की माला और दीवारों पर महान लोगों के साथ सजी तस्वीर। और सब तरफ़ इतिहास में दर्ज़ होने की आपाधापी के बीच किसे फ़िक्र है अपने वक़्त की या फिर उन ताक़तों की जो एक टुकडा पुरस्कार के बदले न जाने क्या-क्या छीन लेते हैं। अभी दिल्ली के एक बेहद गंभीर और प्रतिबद्ध संस्कृतिकर्मी से बातचीत हो रही थी तो अपने पुराने दोस्त हबीब तनवीर से हुई बातचीत का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि जब इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस ने उनसे राज्यसभा की सदस्यता के लिये प्रस्ताव दिया तो पांच मिनट थे फ़ैसला करने को…और तीसरे मिनट में वह ललच गये। तो जब मेरे उन मित्र से अभी कुछेक साल पहले यही प्रस्ताव दोहराया गया तो उन्होंने बस पहले ही मिनट में तय कर लिया -- नहीं। पर इतिहास? वहां तो हबीब साहब ही दर्ज़ होंगे ना? ऐसे माहौल मे जब मुझे एक मित्र ने बताया कि युवा रचनाकार अल्पना मिश्र ने उत्तराखण्ड सरकार द्वारा प्रस्तावित एक पुरस्कार ( जो उनके साथ बुद्धिनाथ मिश्र को भी मिला है) यह कहते हुए ठुकरा दिया कि ''मुझे किसी राजनेता से पुरस्कार नहीं लेना'' तो मेरा सीना गर्व से चौडा हो गया। न तो अल्पना जी से मेरी कोई जानपहचान है ना ही उनकी कहानियों का कोई बहुत बडा प्रशंसक रहा हूं, लेकिन उनके इस कदम ने मुझे इतनी खुशी दी कि अब वह अगर एक भी कहानी न लिखें तो भी मै उनका प्रशंसक रहुंगा। इसलिये भी कि उन्होंने इस बात का कोई शोरगुल नहीं मचाया न ही किसी आधिकारिक पत्र का इंतज़ार किया। यह सामान्य सी लगने वाली बात अपने आप में असामान्य है। अल्पना आपकी इस हिम्मत के लिये मै आपको सलाम करता हूं। इस ज़िद को बनाये रखियेगा…आपका एक आत्मसमर्पण न जाने कितनों को कमज़ोर बना देगा ! *** अभी अल्पना जी ने बताया है कि यह पुरस्कार राज्य सरकार का नहीं है अपितु किन्हीं धनंजय सिंह जी द्वारा अपने किसी रिश्तेदार की स्मृति में दिया जाना है जिसे उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री या संस्कृति मंत्री के हाथ से दिया जाना है।

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लिखा आप ने अल्पना जी का उदहारण दे कर, लेकिन आज तो लोग मिन्न्त करते है तरसते है किसी नेता के संग एक फ़ोटो खिचवाने के लिये.....

Randhir Singh Suman said...

'मुझे किसी राजनेता से पुरस्कार नहीं लेना'' तो मेरा सीना गर्व से चौडा हो गया। nice

Asha Joglekar said...

अल्पना जी का साहस और व्यक्तित्व प्रशंसनीय है ।

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