संगोष्ठी के बाद रंगलीला के कलाकारों ने चर्चित नाटक सेटिंग का मंचन किया। वरिष्ठ रंगकर्मी शरमन लाल ने एकल नाटक की प्रस्तुति दी। इसके अलावा लाखन सिंह, सोनिया बघेल और हरजीत कौर आदि ने गीत भी प्रस्तुत किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि सोम ठाकुर और संचालन रंगकर्मी एंव पत्रकार योगेन्द्र दुबे ने किया। इस मौके पर डॉ. शशि तिवारी, डॉ. मधुरमा शर्मा, डॉ. श्रीभगवान शर्मा, विनय पसरिया, एस.एन. गोगिया, डॉ. जवाहर सिंह ठाकरे, सदन सोहन सक्सेना, तलत उमरी और कमलदीप आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
Friday, April 3, 2009
हिन्दी रंगमंच दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन
आगरा शहर की जानी-मानी सांस्कृतिक संस्था "रंगलीला" ने हिन्दी रंगमंच दिवस के अवसर पर एक संगोष्ठी और नाट्य प्रस्तुति का आयोजन किया। संगोष्ठी का विषय था "भारतीय संस्कृति का तालिबानीकरण"। संजय प्लेस स्थित यूथ हॉस्टल में आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये संस्था के अध्यक्ष एंव वरिष्ठ पत्रकार अनिल शुक्ल ने कहा कि हजारों साल पुराना इतिहास है कि हमारे देश की संस्कृति विकास की ओर जाने के लिये अग्रसर करती है ना कि किसी भी तरह की कट्टरपंथी विचारधारा को अपनाने की। उन्होने कहा कि हमारे यहां हिन्दु संस्कृति का असर मुस्लिम परिवारों मे और मुस्लिम संस्कृति का प्रभाव हिन्दु परिवरों पर रहा है। लेकिन कुछ साम्प्रदायिक ताकतें अपने स्वार्थ की खातिर समाज मे ज़हर घोलने का काम कर रही हैं। मुख्य अतिथि इप्टा के महासचिव जितेन्द्र रघुवंशी ने संगोष्ठी के विषय की सरहाना करते हुये कहा कि पिछले एक दशक से कुछ ऐसी हिन्दुवादी ताकतें वजूद मे आ गयी हैं जो समाज मे होने वाले सारें क्रिया-कलापों को अपने ढंग से संचालित करना चाहती हैं। चाहे वो किसी नाटक का मंचन हो या फिर किसी फिल्म का शीर्षक। किसी का बेटी क्या पहनेगी, क्या पढेगी, कहां शादी करेगी, किस के साथ और कब घर से निकलेगी इस तरह की तमाम बातों पर फैसला करना चाहतें हैं। जरअसल यही वो लोग हैं जो हमारी संस्कृति को तालिबानीकरण की ओर ले जा रहे हैं। श्री रघुवंशी ने हिन्दी रंगमंच की दिशा और दशा पर प्रकाश डालते हुये इसे बढावा देने का आह्ववान किया। संगोष्ठी को आगे बढाते हुये वरिष्ठ समाजविज्ञानी ड़ॉ. राजेश्वर प्रसाद सक्सेना ने कहा कि कट्टरपंथ वहां फैलता है जहां अशिक्षा हो। इसलिये अगर इस कट्टरपंथ के नासूर को समाज से हटाना है तो पहले शिक्षा का प्रसार-प्रचार हर दिशा मे करना होगा। चाहे वो समाजिक शिक्षा हो या सांस्कृतिक।
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2 comments:
कट्टरवादियों की सोच बदले...भगवन ही ऐसा कर सकता है...
क्योंकि न तो सरकारें ऐसा कर सकती हैं और न ही समाज ऐसा करता हुआ लगता है.
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