ज़मीर बेचकर जिन्दा रहूँ, ये नामुमकिनमैं अपने आप से दंगा करूँ, ये नामुमकिन, ज़माना तुझको मसीहा कहे, ये मुमकिन हैं मगर मैं तुझको मसीहा कहूँ, ये नामुमकिन।
- शायर श्री हारून रशीद 'गाफ़िल'
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1 comment:
lajabab..dil khush kar diya ..
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