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Saturday, April 4, 2009

आज के राजनितिक परिप्रेक्ष्य में -

ज़मीर बेचकर जिन्दा रहूँ, ये नामुमकिन मैं अपने आप से दंगा करूँ, ये नामुमकिन, ज़माना तुझको मसीहा कहे, ये मुमकिन हैं मगर मैं तुझको मसीहा कहूँ, ये नामुमकिन। - शायर श्री हारून रशीद 'गाफ़िल'

1 comment:

mark rai said...

lajabab..dil khush kar diya ..

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