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Tuesday, January 27, 2009

माँ

माँ जैसे दूध पे जमे मलाई, वैसे घर में होती माँ जैसे बहती हो पुरवाई , वैसी ठंडक देती माँ । जैसे सर्दी की हो धूप, वैसे अच्छी लगती माँ जैसे झम झम बरसे बारिश, वैसे प्यार लुटाती माँ । कभी कभी तो तेज़ धूप सी गुस्सा करती माँ और उमस भरी दोपहरी सी, गुपचुप रहती माँ । पर जब हम बादल से घुमडें आसपास पास बारिश की पहली बूंदें, आँखों छलकाती माँ । कभी हमें गंभीर बनीं बातें समझाती माँ रात को लेकिन उढा के चादर, माथा चूमती माँ ।

Monday, January 26, 2009

शम्मां मुहब्बत का जलायें

(1) आवाज़ उठाये हम वतन के वास्ते खून बहायें अपना वतन के वास्ते कमी न हो कभी तिरंगे की शान में दुश्मनों को सबक सिखायें वतन के वास्ते (2) वतन के वास्ते जीयें जायें हम कार्य दुष्कर सारे किये जायें हम बाधाओं से ना कभी घबरायें हम साहसिक तेवरों के साथ बढ़ते जायें हम (3) तरक्की की राह में हम चलते जायें शर्त ये के पहले नफरतों को मिटायें अमन, चैन, खुशहाली सब मुमकिन है तीरगी मिटायें, शम्मां मुहब्बत का जलायें

Monday, January 19, 2009

मत करना विश्वास

मत करना विश्वास अगर रात के मायावी अन्धकार में उत्तेजना से थरथराते होठों से किसी जादुई भाषा में कहूं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ मैं मत करना विश्वास अगर सफलता के श्रेष्ठतम पुरस्कार को फूलों की तरह गूँथते हुए तुम्हारे जूडे मे उत्साह से लडखडाती हुई भाषा में कहूं सब तुम्हारा ही तो है! मत करना विश्वास अगर लौट कर किसी लम्बी यात्रा से बेतहाशा चूमते हुए तुम्हे एक परिचित सी भाषा में कहूं सिर्फ़ तुम आती रही स्वप्न में हर रात

हालांकि सच है यहकि विश्वास ही तो था वह तिनका जिसके सहारे पार किए हमने दुःख और अभावों के अनंत महासागर लेकिन फ़िर भी पूछती रहना गाहे बगाहे किसका फ़ोन था कि मुस्करा रहे थे इस क़दर ? पलटती रहना यूं ही कभी कभार मेरी पासबुक करती रहना दाल में नमक जितना अविश्वास

हंसो मत ज़रूरी है यह विश्वास करो तुम्हे खोना नही चाहता मैं

Saturday, January 17, 2009

भोर

भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा, रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ; किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम किंतु मधुर अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ; तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा ! भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!! सुंदर प्रभात का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे रही कोयल कूक बागों में , भौंरें ये मस्त तान गुंजा रहे , स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ; तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा ! भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!! खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने , फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने , पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने , तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा ! भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!! प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही साथ ही इसके ,घंटियाँ , मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही , मन्त्र और श्लोक प्राचीन , पंडितो की वाणी निखार रही तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा ! भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!! प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही जैसे प्रभु की साड़ी सृष्टि ,इस का अभिनन्दन कर रही , और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,नए जीवन का आवहान कर रही , तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा ! भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!! vijay kumar sappatti M : 09849746500 E : vksappatti@gmail.com B : www.poemsofvijay.blogspot.com

Thursday, January 15, 2009

श्रीगंगानगर में किया विरोध

श्रीगंगानगर में आज टीवी न्यूज़ चैनल्स से जुड़े पत्रकारों ने प्रस्तावित"काले कानून" के विरोध में काली पट्टियां बांधी। काली पट्टी बांधे पत्रकार जिला कलेक्टर ऑफिस पहुंचे। वहां उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम लिखा एक ज्ञापन जिला कलेक्टर राजीव सिंह ठाकुर को दिया। ज्ञापन में पत्रकारों ने प्रधानमंत्री से कोई ऐसा कानून ना लागु करने का आग्रह किया है जिस से न्यूज़ चैनल की अभिवयक्ति की आजादी ख़तम हो जाए। ज्ञापन जी न्यूज़ के गोविन्द गोयल,एनडीटीवी के राजेश अग्रवाल,ईटीवी के राकेश मितवा,डीडी के आत्मा राम,एमएच १ की मिस स्वाति अग्रवाल तथा पंजाब के टाइम टीवी के पत्रकार सुनील सिडाना ने कलेक्टर को दिया। जिला कलेक्टर ने ज्ञापन पीएमओ भिजवाने के आश्वाशन दिया। पत्रकारों ने आज दिन भर काली पट्टी लगाकर अपना काम काज किया।

Tuesday, January 13, 2009

स्वामी विवेकानंद

आज भी परिभाषित है उसकी ओज भरी वाणी से निकले हुए वचन ; जिसका नाम था विवेकानंद ! उठो ,जागो , सिंहो ; यही कहा था कई सदियाँ पहले उस महान साधू ने , जिसका नाम था विवेकानंद ! तब तक न रुको , जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो ... कहा था उस विद्वान ने ; जिसका नाम था विवेकानंद ! सोचो तो तुम कमजोर बनोंगे ; सोचो तो तुम महान बनोंगे ; कहा था उस परम ज्ञानी ने जिसका नाम था विवेकानंद ! दूसरो के लिए ही जीना है अपने लिए जीना पशु जीवन है जिस स्वामी ने हमें कहा था , उसका नाम था विवेकानंद ! जिसने हमें समझाया था की ईश्वर हमारे भीतर ही है , और इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है उसका नाम था विवेकानंद ! आओ मित्रो , हम एक हो ; और अपनी दुर्बलता से दूर हो , हम सब मिलकर ; एक नए समाज , एक नए भारत का निर्माण करे ! यही हमारा सच्चा नमन होंगा ; भारत के उस महान संत को ; जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद !!! vijay kumar sappatti +91 9849746500 vksappatti@gmail.com http://www.poemsofvijay.blogspot.com/

Sunday, January 11, 2009

क्या मंदा है श्रीमान

----चुटकी---- मंदा मंदा मंदा क्या मंदा है श्रीमान, जिसके बिना ना काम चले वह महंगा सब सामान, रोटी महँगी कपड़ा महंगा महंगा है मकान, मंदा मंदा मंदा क्या मंदा है श्रीमान।

Saturday, January 10, 2009

एस पी, डीएसपी आपका जवाब नहीं

श्रीगंगानगर के मुख्य बाज़ार में एक दुकानदार को ५-६ जने पीट गए। दुकानदार के चेहरे पर चोट लगी। वह अपने भाई- बंधू के साथ थाना गया। वहां ३ घंटे के बाद मुकदमा दर्ज हुआ। इसी दौरान वह भी आ गया जिसका नाम रिपोर्ट में था। मुक़दमा आईपीसी की धारा ३२३,३४१,४५२,३८२ में दर्ज हुआ। मगर पुलिस ने उस आरोपी से बजाये कुछ पूछने के उसको जाने दिया। घटना को २४ घंटे से भी अधिक का समय हो गया। तब से लेकर अब तक श्रीगंगानगर के पुलिस अधीक्षक श्री आलोक विशिस्ट, सी ओ सिटी भोला राम जी के सेल फ़ोन पर लगातार बात करने की कोशिश की मगर सफलता नहीं मिली। दोनों अधिकारियों के फ़ोन नम्बर पर एक से अधिक बार अलग अलग समय कॉल की गई लेकिन एसपी और सीओ ने फ़ोन नहीं उठाया। इस दौरान ऐसी कोई घटना भी नहीं हुई कि ये मान लिया जाए कि वे सब उसमे व्यस्त थे। श्रीगंगानगर जिला पाकिस्तान से लगा हुआ है। इसके तीन तरफ़ छावनियां हैं। श्रीगंगानगर जिला हर लिहाज से बहुत ही संवेदनशील है। ऐसे स्थान पर नियुक्त एसपी अपना फ़ोन अटेंड ही ना करे तो इस से अधिक संवेदनहीनता और क्या हो सकती है। पता नहीं कौन क्या सूचना एसपी को देना चाहता हो! हो सकता है कोई बहुत अधिक पीड़ित आदमी एसपी की मदद चाहता हो!सम्भव है कोई संभावित बड़े अपराध के बारे कोई सुचना देना चाहता हो!मगर इन सब बातों से इन अधिकारियों को क्या? ये तो सरकार के नौकर हैं,जनता के प्रति इनकी जवाबदेही थी ही कब? अगर कोई अधिकारी,बड़ा नेता इस को पढ़े तो इस पर कुछ ना कुछ करे जरुर ताकि अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास तो हो सके। एक ओर एस पी हैं जो अपना फोन अटेंड ही नहीं करते दूसरी ओर नए आए जिला कलेक्टर हैं जिन्होंने पहले दिन ही अपना फोन नम्बर इस वक्तव्य के साथ सार्वजनिक कर दिया कि कोई भी उनसे संपर्क कर अपनी बात कह सकता है।

Wednesday, January 7, 2009

मुखिया जी से शिकायत कब तक?

याद करें, मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकियों के हमले के तुरंत बाद क्या प्रतिक्रिया थी? पूरे देश के साथ-साथ सरकार के स्वर में भी यह बात शामिल थी कि पाक को सबक सिखाया जाएगा। यह स्वर गायब हो चुका है? जनता के स्वर में निराशा का पुट है तो सरकार की चेतावनी भी अब घिघियाहट सी लगती है। इतना तो तय हो ही चुका है कि हम अपने दम पर कुछ नहीं कर सकते। पाक के खिलाफ कारॆवाई की बात तो छोड़ दें, उन आतंकियों के खिलाफ कारॆवाई के लिए भी हम बाकी देशों की चिरौरी कर रहे हैं, जिन्होंने हमारी नाक में दम कर रखा है। न जाने कितने सालों से पाक भारत के खिलाफ आतंकियों को शह दे रहा है, उनकी मदद कर रहा है। बावजूद इसके हमें हर हमले के बाद नए सिरे से हमले में पाकिस्तानी आतंकियों की संलिप्तता के सुबूत देना देने पड़ते हैं। इस बार भी हम वही कर रहे हैं। आपत्ति इस बात पर नहीं है। पाक की करतूतों की जानकारी पूरी दुनिया को होनी चाहिए। कूटनीतिक प्रयास जारी रहें। संभव है, इसके नतीजे बाद में आएं।

दिल नहीं दिमाग की बात करें तो कोई नहीं कहता कि हमें पाक पर हमला कर देना चाहिए। लेकिन इन दिनों भारत और पाकिस्तान के सुर पर विचार करें तो बात चोरी और सीनाजोरी वाली लगती है। पाकिस्तानी आतंकियों ने हमें इतनी बड़ी चोट दी, इसके बावजूद पाकिस्तान धौंस भरे स्वर में बात कर रहा है। और इक्का-दुक्का बेमतलब के बयानों को छोड़ दें तो हमारी सारी सक्रियता इस बात को लेकर है कि अमेरिका और बाकी देश मिलकर पाकिस्तान पर दबाव बनाएं। इतना तो हमने भी मान ही लिया है कि हमारे किए कुछ नहीं होने वाला।

एक बात और। दुनिया भर में अमेरिकी दादागीरी की बात को लेकर कभी-कभी अपने यहां भी बहस होती है। सरकार भी कहती है कि हमारी नीतियां या हम अमेरिका से नहीं प्रभावित होते। ये बातें कितनी निरथॆक हैं, यह एक बार फिर साबित हुई है। भारत पर आतंकियों के हमले के बाद हम फिर अमेरिका पर ही टकटकी लगाए बैठे हैं। सारी उम्मीदें वहीं हैं। अमेरिका दबाव बनाए तो पाक आतंकियों के खिलाफ कोई कारॆवाई करे। वरना वह तो यह भी मानने को तैयार नहीं कि हमला पाकिस्तानियों ने किया।

मानेगा भी क्यों? आपने ऐसा किया ही क्या है? और अमेरिका आपके लिए किस हद तक दबाव बनाएगा, यह तो उसे ही तय करना है। विश्व ग्राम के अघोषित मुखिया जी गांव के इस दुस्साहसी घर के साथ अपने रिश्ते भी देखेंगे। और यह किसे पता नहीं होगा, गांव में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत आज भी पूरी दमदारी के साथ मौजूद है। मार खाने के बाद मुखिया जी से शिकायत करके अपने कतॆव्य की इतिश्री मान लेने वाले लोग आगे भी पिटते रहते हैं। गांव में भी लोग उसीसे भिड़ने से बचते हैं, जो मारपीट भले न करता हो, मारपीट का जवाब देने की हैसियत रखता हो। फिलहाल हमारी स्थिति तो जवाब देने वाली नहीं, मुखिया जी से शिकायत करने वाली ही लगती है। आखिर क्यों नहीं पाकिस्तान को भी उसी की भाषा में जवाब दिया जाए। ऐसे भी पाकिस्तान कहता तो यही है। आप आईएसआई पर हमले की बात करते हैं तो वह रॉ पर आरोप लगाता है। आप जैश, लश्कर प्रमुख और दाऊद को मांगते हैं तो वह बाल ठाकरे, छोटा राजन की सूची सौंपता है। आपके सुबूतों के जवाब में दुनिया को आपके खिलाफ तैयार सीडी सौंपता है।

अब हम भी देते रहें दुनिया को सफाई। आखिर पाकिस्तान के खिलाफ सुबूतों के दम पर हम विश्व समुदाय से अपने साथ खड़े होने की उम्मीद करेंगे तो उन्हें यह भी तो बताना होगा कि नहीं, पाकिस्तान जो कह रहा है, हम वैसा कुछ नहीं करते। इसका मतलब हमें अकारण ही बचाव की मुद्रा में आना होगा। जो हम करते नहीं, उसकी सफाई देनी होगी।

इसे लेकर बहुत किंतु-परंतु हो सकते हैं, लेकिन आखिर पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की रणनीति क्यों नहीं बननी चाहिए? कब तक हम हर हमले के बाद दुनिया के सामने घिघियाते रहेंगे कि पाक को रोको। यह तो तय है कि पाक के खिलाफ क्या किसी के भी खिलाफ युद्ध की स्थिति में हम नहीं है। युद्ध तो केवल दुनिया का दादा अमेरिका ही छेड़ सकता है। भले ही वह एकतरफा क्यों न हो? युद्ध के अधिकार और स्थिति से वंचित भारत को भी तो आखिर अपने बचाव के लिए कुछ न कुछ करना होगा। क्या यह जैसे को तैसा की रणनीति के अलावा वतॆमान परिस्थितियों में कुछ और हो सकता है? कई बार तो यह भी लगता है कि मुंबई पर हमले के बाद से लेकर अब तक हमारी सरकार तय ही नहीं कर पाई है कि उसे करना क्या है। यह मानने में सचमुच हमें संकोच नहीं होना चाहिए कि हमारे पास वैसे नेतृत्व का अभाव है जो ऐसे मौकों पर उचित निणॆय ले सके। बात सिफॆ प्रधानमंत्री की नहीं है, पूरी सरकार ही इस मामले में लचर दिखाई दे रही है। हमारे नेता गाहे-बगाहे यह दोहराकर देश को संतुष्ट करने की कोशिश भर कर रहे हैं कि हमारे सारे विकल्प खुले हैं। विकल्प बताने को कोई नहीं कहता लेकिन देशवासी न जाने यह बात कितने सालों से सुन रहे हैं। हर बड़े हमले के बाद यह बात बार-बार दोहराई जाती है। होता कुछ नहीं है।

देश की जनता भी हर बार इस तरह की बातें सुन-सुनकर उसी रंग में रंग गई लगती है। वरना कहां हमले के बाद का शोर और कहां अब की उदासीनता। हमले के बाद जितना शोर हमारे नेता मचा रहे थे, जनता भी कुछ उसी अंदाज में उतना ही शोर मचा रही थी और अब वह भी शांत हो गई। आखिर भारत के खिलाफ पाक की इतनी बड़ी-बड़ी साजिशों के बावजूद क्यों नहीं कोई जनांदोलन इस बात के लिए उपजता कि पाक को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए? आखिर जनतंत्र में सबकुछ होता भी तो जनता की इच्छा से ही है।

इजराईल को गुरु बनाओ

--- चुटकी--- ना पाक को सबूत दो ना किसी अमेरिका को समझाओ, आप तो बस इजराईल को अपना गुरु बनाओ। ------गोविन्द गोयल श्रीगंगानगर

Friday, January 2, 2009

कब्र

जब तुम ज़िन्दगी की टेड़ी-मेढ़ी और उदास राहों पर चलकर ,थककर किसी अपने की तलाश करने लगो , तो एक पुरानी ,जानी पहचानी राह पर चली जाना ये थोडी सी आसान सी राह है इसमे भी दुःख है ,दर्द है ; पर ये थकाने वाली राह नही है .. ये मोहब्बत की राह है !!! जहाँ ये रास्ता ख़त्म होंगा , वहां तुम्हे एक कब्र मिलेंगी ; उस कब्र के पत्थर अब उखड़ने लगे है कब्र से एक झाड़ उग आया है , पहले इसमे फूल उगते थे ,अब कांटो से भरा पड़ा है.. कब्र पर कोई अपना ,कई दिन पहले कुछ मोमबत्तियां जला कर छोड़ गया था .. जिसे वक्त की आँधियों ने बुझा दिया था.. अब पिघली हुई मोम आंसुओं की शक्लें लिए कब्र पर पड़ी है काश , कोई उस कब्र को सवांरने वाला होता .. पर मोहब्बत की कब्रों के साथ ज़माना ऐसा ही सलुख करता है .. कुछ फूल आस-पास बिखरे पड़े है वो सब सुख चुके है पर अब भी चांदनी रातों में उनसे खुशबू आती है , चारो तरफ़ बड़ी वीरानी है .. तुम उस कब्र के पास चली आना अपने आँचल से उसे साफ़ कर देना अपने आंसुओं से उसे धो देना फिर अपने नर्म लबों से उसके सिरहाने को चूम लेना वो मेरी कब्र है !!! वहां तुम्हे सकून मिलेंगा वहां तुम्हे एहसास होंगा कि मोहब्बत हमेशा जिंदा रहती है ..!! मेरी कब्र पर जब तुम अओंगी , तो , वहां कि मनहूसियत थोड़े वक्त के लिए चली जायेंगी कुछ यादें ताज़ा हो जायेंगी ..!! जब कुछ और सन्नाटा गहरा जायेगा तब, तुम्हे एक आवाज सुनाई देंगी तुम्हे मेरी आह सुनाई देंगी ; क्योकि मेरी वो कब्र तुमने ही तो बनाई है !!!! तुम्हे याद आयेगा कि कैसे तुमने मेरा ज़नाजा वहां दफनाया था ...!! वक्त बड़ा बेरहम है ...... जब तुम वापस लौटोंगी तो , मेरी आँखें ,तुम्हे .. दूर तलक जातें हुए देखेंगी ....! तुम; फिर कब अओंगी मेरी कब्र पर !!!!!!! Vijay Kumar Sappatti E : vksappatti@gmail.com M : 09849746500

Thursday, January 1, 2009

एक और कलेंडर बदल गया

नया साल क्या है? एक कलेंडर का बदलना ! इस के अलावा और क्या बदला? कुछ भी तो नहीं। वही पल हर पल है। हम और आप भी वही हैं उसी सोच के साथ। हमारे तुम्हारे सम्बन्ध भी वैसे ही रहेंगें जैसे रहते आए हैं। हमने एक कलेंडर के अलावा कुछ भी बदलने की कोशिश ही नहीं की। बस कलेंडर बदला और अपनों को दी नए साल की शुभकामनायें, उसके बाद बस वैसा ही सब कुछ जैसा एक दिन पहले था। इस प्रकार से ना जाने कितने ही साल आते गए जाते गए,परन्तु हम वहीँ हैं। केवल एक कलेंडर या गिनती बदलने से कोई नया पन नही आता। नया तो हमारे दिल और दिमाग में होना चाहिए। उसके बाद तो हर पल नया ही नया है। हर नए दिन की सुबह नई है शाम नई है।बाग़ के किसी फूल को देखोगे तो वह भी हर पल नया ही लगेगा। सुबह को नए अंदाज में निहारोगे तो वह कल से नई नजर आएगी। मगर अफ़सोस तो इस बात का है कि हम केवल कलेंडर बदल कर ही नया साल मानतें हैं। जबकि हम चाहें तो हमारा हर पल,हर क्षण नया ही नया हो सकता है। बस थोडी सोच नई करनी होगी। हर पल का यह सोचकर आनंद लेना होगा कि यह फ़िर कभी नहीं आने वाला। क्योंकि हर पल नया जो होगा। फ़िर एक दिन के बदलने की बजाय हम लोग हर पल बदलने की मस्ती अपने अन्दर अहसास कर सकेंगें। तो फ़िर देरी किस बात की है,३६५ दिन इंतजार क्यों करें,हर पल नया साल अपने अन्दर महसूस करें और सभी को कराएँ। एक बार करके तो देखें वरना ३६५ दिनों बाद कलेंडर तो बदलना ही है। आप सभी मुस्कुराते रहो,यही कामना है।

सुरक्षा अस्त्र

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