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Monday, March 17, 2008

सिलसिला .....



कया
है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....


पलकों पे इक खाव्ब रुक गया
लबो पे तेरा नाम गुनगुना गया
सुबह हमारी फूलों से महका गया..

कया है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....

फूलों सा नम औंस से भीगा गया
चाँद के टुकड़े से हमे दमका गया
सावन के हिंडोले में झुला गया..

कया है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....

दिए के ज्योत जैसे जला गया
मंदिर्यालय की घंटियों सा बज गया
पावन श्लोको सा बरस गया..

कया है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....


कीर्ती वैद्य .........

2 comments:

satyandra yadav said...

bahut badhiya hai ......

Asha Joglekar said...

bahut achcha par mandiryalay kya hota hai ?

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