इस बोनसाय के पेड़ के साथ बडीही मधुर यादगार जुडी हुई है....इस बात को शायद १० साल हो गए...एक दिन सुबह मै अपने इन "बच्चों" के पास आयी तो देखा, इस पेड़ पे बुलबुल घोंसला बना रही थी...!कितने विश्वास के साथ....! इस पँछी का ऐसा विश्वास देख, मेरी आँख नम हो आयी...मैंने रात दिन कड़ी निगरानी राखी...जब तक उस बुलबुल ने अंडे देके बच्चे नही निकाले, मैंने इस पेड़ को बिल्लियों और कव्वों से महफूज़ रखा...!
इस परिंदे ने एक बार नही दो बार इसपे अपने घोंसले बनाये...! परिंदे तो उड़ गए, घोंसले यादगार की तौरपे मेरे पास हैं! इसी पेड़ पे रखे हुए नज़र आते हैं, गर गौरसे देखा जाय तो...! लेकिन उन घोंसलों की अलग से एक तस्वीर कभी ना कभी ज़रूर पोस्ट करूँगी...!
इस पोस्ट को नाम देने का दिल करता है सो ये," मेरे घर आना ज़िंदगी..!".....कई बार आना ज़िंदगी....मेरे अपने पँछी तो उड़ गए...दूर, दूर घोंसले बना लिए...लेकिन परिंदों, तुम आते रहना .....अपने घोंसले बनाते रहना...वादा रहा...इन्हें मेरे जीते जी, महफूज़ रखूँगी...!
(फिलहाल तो मेरे ब्लॉग पे मौजूद पोस्ट को यहाँ कॉपी किया है..ये पोस्ट "बागवानी" तथा 'संस्मरण",इन दोनों ब्लॉग स है।)
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