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Friday, July 12, 2013


                                   ग़ज़ल

शरीक़े   ग़म   तुम्हारे    सिर्फ़   हम   थे  
ज़माने   के   सितम  थे  सिर्फ़   हम   थे  

फ़क़त   इक   बार  तुमसे   बात  की  थी 
निशाने   पे   सभी   के   सिर्फ़   हम  थे  

तुम्हारे    साथ    लाखों        मुस्कुराये
तुम्हारे   साथ   सिसके   सिर्फ़   हम   थे        

ग़ज़ल    की   बात   करते   थे   हज़ारों 
ग़ज़ल  से   बात  करते   सिर्फ़  हम   थे  

चलेंगे    साथ    था   वादा      तुम्हारा 
चले   'तनहा'  सफ़र   पे   सिर्फ़  हम  थे   


          - प्रमोद  कुमार  कुश  'तनहा' 

 http://pramodkumarkush.blogspot.com
       www.reverbnation.com/pkkush

5 comments:

Amrita Tanmay said...

क्या बात है .

Asha Joglekar said...

बेहद खूबसूरत ।

virendra sharma said...

बहुत आला दर्जे के शैर पिरोये हैं इस गजल में आपने। पहले भी इस पर टिपण्णी की है स्पेम में देखिये।

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

परम स्नेही वीरेन्द्र जी,अमृता जी एवं आशा जी -
ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये आपका हार्दिक आभार ...

Daisy said...

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