नदिया से जब संग चले थे
बादल से क्यूं दूर हुए,
यश की सीढी चढे चले तो
मद में यूं मग्रूर हुए ।
ऐसे अलग हुए अपनों से
दूरी से भी से दूर हुए ,
चिठ्ठी पत्री भूल गये सब
इतने भी क्यूं क्रूर हुए ।
जिस घर को संवारने खातिर
मेहनत में थे चूर हुए,
उसी के सब हालात भुलाये
ऐसे क्या मजबूर हुए ।
धन, पद, मान मिल गये हैं तो
मद से यूं भरपूर हुए
माँ बाबा की सुधि बिसराई
भाई बहन से दूर हुए ।
जब सगे ही याद नही तो
हम भी भुलाये जरूर हुए,
एक हम ही पागल से बनेहैं,
सोच विचार में चूर हुए ।
1 comment:
सुंदर रचना..
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