श्रीगंगानगर-सनातन धर्म,संस्कृति में पुत्र की चाहना इसीलिए की जाती है ताकि पिता उसके कंधे पर अंतिम सफर पूरा करे। शायद यही मोक्ष होता होगा। दोनों का। लेकिन तब कोई क्या करे जब पुत्र के होते भी ऐसा ना हो। पुत्र भी कैसा। पूरी तरह सक्षम। खुद भी चिकित्सक पत्नी भी। खुद शिक्षक था। तीन बेटी,एक बेटा। सभी खूब पढे लिखे। ईश्वर जाने किसका कसूर था? माता-पिता बेटी के यहाँ रहने लगे। पुत्र,उसके परिवार से कोई संवाद नहीं। उसने बहिनों से भी कोई संपर्क नहीं रखा। बुजुर्ग पिता ने बेटी के घर अंतिम सांस ली। बेटा नहीं आया। उसी के शहर से वह व्यक्ति आ पहुंचा जो उनको पिता तुल्य मानता था। सूचना मिलने के बावजूद बेटा कंधा देने नहीं आया।किसको अभागा कहेंगे?पिता को या इकलौते पुत्र को! पुत्र वधू को क्या कहें!जो इस मौके पर सास को धीरज बंधाने के लिए उसके पास ना बैठी हो। कैसी विडम्बना है समाज की। जिस बेटी के घर का पानी भी माता पिता पर बोझ समझा जाता है उसी बेटी के घर सभी अंतिम कर्म पूरे हुए। सालों पहले क्या गुजरी होगी माता पिता पर जब उन्होने बेटी के घर रहने का फैसला किया होगा! हैरानी है इतने सालों में बेटा-बहू को कभी समाज में शर्म महसूस नहीं हुई।समाज ने टोका नहीं। बच्चों ने दादा-दादी के बारे में पूछा नहीं या बताया नहीं। रिश्तेदारों ने समझाया नहीं। खून के रिश्ते ऐसे टूटे कि पड़ोसियों जैसे संबंध भी नहीं रहे,बाप-बेटे में। भाई बहिन में। कोई बात ही ऐसी होगी जो अपनों से बड़ी हो गई और पिता को बेटे के बजाए बेटी के घर रहना अधिक सुकून देने वाला लगा। समझ से परे है कि किसको पत्थर दिल कहें।संवेदना शून्य कौन है? माता-पिता या संतान। धन्य है वो माता पिता जिसने ऐसे बेटे को जन्म दिया। जिसने अपने सास ससुर की अपने माता-पिता की तरह सेवा की। आज के दौर में जब बड़े से बड़े मकान भी माता-पिता के लिए छोटा पड़ जाता है। फर्नीचर से लक दक कमरे खाली पड़े रहेंगे, परंतु माता पिता को अपने पास रखने में शान बिगड़ जाती है। अडजस्टमेंट खराब हो जाता है। कुत्ते को चिकित्सक के पास ले जाने में गौरव का अनुभव किया जाता है। बुजुर्ग माता-पिता के साथ जाने में शर्म आती है। उस समाज में कोई सास ससुर के लिए सालों कुछ करता है। उनको ठाठ से रखता है।तो यह कोई छोटी बात नहीं है। ये तो वक्त ही तय करेगा कि समाज ऐसे बेटे,दामाद को क्या नाम देगा! किसी की पहचान उजागर करना गरिमापूर्ण नहीं है।मगर बात एकदम सच। लेखक भी शामिल था अंतिम यात्रा में। किसी ने कहा है-सारी उम्र गुजारी यों ही,रिश्तों की तुरपाई में,दिल का रिश्ता सच्चा रिश्ता,बाकी सब बेमानी लिख।
Sunday, September 18, 2011
Monday, September 12, 2011
फालतू
संवाद थम जाता है माँ के साथ,
जब छूट जाता है बचपन का आँगन
चिठ्ठियों का अंतराल लंबे से लंबा होता चला जाता है
और सब सिमट जाता है एक वाक्य में,
“ कैसी हो माँ “ ?
माँ का जवाब उससे भी संक्षिप्त,
“ठीक” ।
पर उसकी आँखें बोलती हैं,
उसकी उदासी कह जाती है कितना कुछ ,
उसका दर्द सिमट आता है चेहेरे की झुर्रियों में
जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का ।
जब छूट जाता है बचपन का आँगन
चिठ्ठियों का अंतराल लंबे से लंबा होता चला जाता है
और सब सिमट जाता है एक वाक्य में,
“ कैसी हो माँ “ ?
माँ का जवाब उससे भी संक्षिप्त,
“ठीक” ।
पर उसकी आँखें बोलती हैं,
उसकी उदासी कह जाती है कितना कुछ ,
उसका दर्द सिमट आता है चेहेरे की झुर्रियों में
जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का ।
Wednesday, September 7, 2011
तेरी मीरा जरुर हो जाऊं।
सारी दुनियां से दूर हो जाऊं,तेरी आँखों का नूर हो जाऊं
तेरी राधा बनू ,बनू ना बनू ,तेरी मीरा जरुर हो जाऊं।
Tuesday, September 6, 2011
दुर्गा मंदिर के चुनाव में जुगल डूमरा अध्यक्ष बने
श्रीगंगानगर-जिसने कभी श्री दुर्गामंदिर की चौखट पर धोक नहीं लगाई वह मंदिर में आया हुआ था। दुर्गा को प्रणाम करने के लिए नहीं,वोट डालने के लिए।जी हाँ यह सच है। दुर्गा मंदिर को संचालित करने वाली समिति में ऐसे ऐसे वोटर हैं जिनका कभी दुर्गा मंदिर में आना नहीं होता। ऐसे ही सदस्यों की लिस्ट पर रिसीवर तहसीलदार ने चुनाव करवाए। चुनाव में पूर्व पार्षद जुगल डूमरा अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने पूर्व पार्षद चन्द्र शेखर असीजा को हराया।उपाध्यक्ष पद पर वीरेंद्र विग निर्विरोध चुने गए। सचिव पद पर सुशील मल्होत्रा,कोषाध्यक्ष संदीप कटारिया विजयी हुए। मंदिर के चुनाव १५ साल बाद हुए। चुनाव के कारण मंदिर में खूब रौनक रही। ऐसे ऐसे इन्सान मंदिर में वोट डालने आये जिसने कभी मंदिर की सूरत भी नहीं देखी होगी। जिनका और जिनके पुरखों के इस मंदिर से कभी कोई लगाव नहीं रहा। लेकिन वोटों की राजनीति करने वालों ने उनके वोट बना रखे थे जो काम आ गए। दुर्गा मंदिर अरसे से आपसी विवादों का गढ़ रहा है। कई गुट होने के कारण मंदिर का उतना विकास नहीं हो पाया जितनी इसकी मान्यता है।चुनाव से पहले सर्व सम्मति के काफी प्रयास हुए भी मगर बात नहीं बनी।
हिन्दू बताकर मुस्लिम लड़की से शादी करवा दी
श्रीगंगानगर-मुस्लिम युवती को हिन्दू बताकर उसका विवाह जैन युवक से करवा दिया। भेद खुलने पर राजसमन्द के इस युवक ने मैरिज ब्यूरो संचालक सहित कई जनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया है। कोतवाली थाना में दर्ज इस मुकदमे के अनुसार राजसमन्द जिले के रोहित पुत्र बाबूलाल जैन के साथ यह घटना हुई। पहले उसने पाली जिले के एक थाने में मुकदमा दर्ज करवाया था। चूँकि घटना श्रीगंगानगर की थी इसलिए वहां जाँच बंद कर दी गई। पाली के एसपी ने यह केस श्रीगंगानगर को प्रेषित कर दिया। रोहित ने बताया है कि उसकी शादी विनोबा बस्ती में संचालित मैरिज ब्यूरो के संचालक जागर सिंह व कुलजीत कौर ने कुछ समय पहले कसाइयों का मोहल्ला मस्जिद के पास की एक युवती सीमा से करवाई। रोहित के परिवार को यह बताया गया कि सीमा मूंदड़ा परिवार से है। उसके पिता का नाम रामजी लाल मूंदड़ा बताया गया। शादी के लिए रोहित से तीन लाख तीस हजार रूपये लिए गए। कुछ समय बाद रोहित को पता चला कि सीमा का असली नाम शकीना है। उसके पिता का नाम सलीम खान और माँ का नाम खातून बीबी है। थाना में जागर सिंह,कुलजीत कौर,सीमा उर्फ़ शकीना,रामजीलाल उर्फ़ सलीम व खातून बीबी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है।
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