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Sunday, October 6, 2024

क्यूं दूर हुए .



नदिया से जब संग चले थे
बादल से क्यूं दूर हुए,
यश की सीढी चढे चले तो
मद में यूं मग्रूर हुए ।

ऐसे अलग हुए अपनों से
दूरी से भी से दूर हुए ,
चिठ्ठी पत्री भूल गये सब
इतने भी क्यूं क्रूर हुए ।

जिस घर को संवारने खातिर
मेहनत में थे चूर हुए,
उसी के सब हालात भुलाये
ऐसे क्या मजबूर हुए ।

धन, पद, मान मिल गये हैं तो
मद से यूं भरपूर हुए
माँ बाबा की सुधि बिसराई
भाई बहन से दूर हुए ।

जब सगे ही याद नही तो
हम भी भुलाये जरूर हुए,
एक हम ही पागल से बनेहैं,
सोच विचार में चूर हुए ।


Sunday, September 15, 2024

तनुजा

 कोमल तन चंचल चितवन 

मुख पर तेरे प्यार की आभा है 

पाना चाहूं सानिध्य तेरा

जग देखने की अभिलाषा है


मन में जीवन की एक ललक

अस्तित्व तेरी पहचान हूं मैं 

तेरी कोख में सांसें लेती हूं 

इस दुनिया से अनजान हूं मैं 


नव जीवन का संचार किया 

दिया ईश्वर ने संसार मुझे 

बोलो क्या दोगी जननी तुम 

जीने का अधिकार मुझे 


परछाई हूं मैं तेरी मां 

तेरा ही तो अंश हूं मैं 

क्या दोष है इसमें मेरा गर

नहीं तुम्हारा वंश हूं मैं 


तेरी तनुजा कोई बोझ नहीं  

ममता का अमृत पीने दो 

पल्लवित पुष्पित होने का

एक बार तो मुझको मौका दो


ये कामना अंर्तमन की है 

नैनों की मौन ये भाषा है 

पाना चाहूं सानिध्य तेरा 

जग देखने की अभिलाषा है 

सुरक्षा अस्त्र

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