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Monday, January 24, 2011

राजनीति में मौन के मतलब

श्रीगंगानगर-राजनीति है ही ऐसी,कई बार वाणी के स्थान पर मौन, बोडी लैंग्वेज , चेहरे पर आते जाते भाव बहुत कुछ कह जाते हैं। जैसे गत दिवस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया। छब्बे जी बन जाने के उम्मीद पाले एक इन्सान को एक बार तो दूबे जी बना दिया। उन्होंने पंचकोसी से लौटते समय ज्योति कांडा के यहाँ चाय पीने का अनुरोध स्वीकार कर लिया, केवल चाय और कुछ भी नहीं। वापसी के समय उन्होंने इस बारे में पता भी करवाया क़ी चाय का ही इंतजाम है या और कुछ भी। श्री गहलोत और उनके पर्सनल स्टाफ को आयोजकों ने बार बार यही विश्वास दिलाया गया कि केवल चाय ही है। श्री गहलोत ने गाड़ी रुकवाई और कारखाने में चले गए। वहां तो मुख्यमंत्री के स्वागत के लिए कलियाँ ,फूल बिछे थे। इस से पहले क़ी उनके मंत्री उनके पीछे अन्दर पहुँचते वे तो वापिस आ गए। ये क्या , फटाफट गाड़ी में बैठे और झटपट ये जा वो जा। गाड़ी में उनके साथ बैठे एक मंत्री ने श्री गहलोत को बताया कि फलां मंत्री जी रह गए, जो उनके साथ थे। मगर गहलोत जी फलां मंत्री के लिए भी गाड़ी नहीं रोकी। गाड़ी में मुख्यमंत्री ने अपने सुरक्षा ऑफिसर से इस बात पर नाराजगी दिखाई कि उसने ठीक से पता नहीं किया कि आयोजकों ने केवल चाय ही रखी है या बहुत कुछ। गहलोत जी को निकट से जानने वाले इस बात को जानते है कि कड़क चाय क़ी तलब उनको रहती है। इसी कारण वे सफ़र में अपने साथ थर्मस रखते हैं। किन्तु इसके साथ साथ वे इस बात का भी पूरा ध्यान रखते हैं कि वे कहाँ हैं और किस माहौल में हैं। किसी के अंतिम संस्कार से लौटते समय आम आदमी भी रास्ते में स्वागत सत्कार से परे रहता है ये तो मुख्यमंत्री हैं। जिनके हर कदम पर जन जन की नजर लगी रहती है। इसलिए भड़क गए स्वागत का तगड़ा ताम झाम देखकर। इसमें कोई शक नहीं कि श्री गहलोत कांडा परिवार को जानते हैं। हाँ ये संभव है कि कांडा परिवार के उत्साही सदस्य श्री गहलोत के स्वभाव को ठीक से ना जानते हों। वरना कोई जानबूझकर मेहमान के मूड के प्रतिकूल आचरण करके इस प्रकार अपनी उपेक्षा क्यों करवाता। सुना है कि ज्योति कांडा यू आई टी की चेयरमैनी के दावेदार हैं। वैसे पंचकोसी जाते समय उन्होंने अपना थर्मस साधुवाली में प्रशासन को सौंप दिया था चाय के लिए।

मुख्यमंत्री की इस यात्रा की थोड़ी और चर्चा कर लेते हैं। मुख्यमंत्री किसकी गाड़ी में बैठते है,किसको अपने साथ रखते हैं। राजनीति में यह सब बहुत महत्व रखता है। शोक की इस यात्रा का कोई दूसरा अर्थ ना निकले,उन्होंने जयपुर से अपनी गाड़ी यहाँ मंगवा ली थी। लालगढ़ हवाई पट्टी पर मुख्यमंत्री श्री गहलोत लोगों से मिल रहे थे। किसी नेता ने गुरमीत सिंह कुनर को राय दी कि वे मुख्यमंत्री की गाड़ी के निकट खड़े हो जाएं ताकि रवानगी के समय मुख्यमंत्री उनको निकट खड़ा देख अपने साथ बिठा लें। ऐसा करना कुनर के स्वभाव में नहीं था। काफिला यहाँ से रवाना हो गया। कुनर अलग गाड़ी में। साधुवाली में श्री गहलोत का तीसरा नेत्र खुला। उन्होंने खुद कुनर को बुलाया और अपने साथ बिठा कर पंचकोसी की ओर चल पड़े। जयपुर से जल संसाधन मंत्री परसराम मदेरणा भी श्री गहलोत के साथ आये थे। उनके रिश्तेदार विधायक संतोष सहारण ने उनसे गाड़ी में बैठने के लिए निवेदन किया। श्री मदेरणा ने इंकार कर दिया। वे रामलाल जाट के साथ हो लिए। अब इसका कोई कोई भी मतलब निकाले कोई क्या कर सकता है।

Wednesday, January 19, 2011

--- चुटकी--

प्याज की भी बदल गई तकदीर, देश में कैसे कैसे वजीर।

Tuesday, January 18, 2011

सामाजिक शिष्टाचार का आभाव

श्रीगंगानगर--एक अद्धा और पचास रूपये लेकर आना। इस से पहले घर में मत घुसना चाहे रात के दस बज जाएं। यह किसी फिल्म का संवाद नहीं। एक महिला द्वारा एक भीखारी बच्चे को दिया गया आदेश है। भीख! जो दे उसका भी भला ना दे उसका भी। अब इसका स्टाइल बदल गया है। जबरदस्ती भीख वसूली जाती है। जो नहीं देता उसको सरे राह रुसवा होना पड़ता है। ऐसे दृश्य बाजार में हर रोज देखे जा सकते हैं। पांच से दस साल के लड़के-लड़कियां किसी दुकान,होटल,रेस्टोरेंट से निकल रहे नए कपल,युवक,युवती को अपना निशाना बनाते हैं। उनके कपड़े खींचेंगे। पैर पकड़ लेंगे। दूर दूर तक उनके पीछे चलेंगे। आखिर इस स्थिति में कोई क्या करेगा? " भीख" देगा या जैसे तैसे पिंड छुड़ा कर भागेगा। ये बच्चे अकेले नहीं होते। दूर खड़ा कोई किशोर इनको इशारे करके यह बताता रहता है कि कब क्या करना है। बच्चे उसके इशारे पर भीख वसूल कर उसको दे आते। जिस किसी दुकान के आगे यह सब होता है उसका मालिक,कर्मचारी इनको भागने से डरते हैं। नरमी से ये मानते नहीं। गर्मी दिखाने पर बात बिगाड़ जाने का डर। इस लिए हर रोज परेशान होते हैं, होते रहें।

शिष्टाचार का अता पता नहीं-- सामाजिक शिष्टाचार का महत्व बहुत अधिक है। छोटी छोटी गली में इस शिष्टाचार को देखा और महसूस किया जाता है। किन्तु सिविल लाइन्स में यह सब दिखाई नहीं देता। जितना बड़ा रुतबा उतना ही कम शिष्टाचार। जयपुर के सिविल लाइन्स , जहाँ जनता के चुने प्रतिनिधि सरकार के मंत्री बन कर रहते हैं। कोई मंत्री अपने पडौसी मंत्री से राम राम करता नहीं दिखता। कोई एक दूसरे के घर शायद ही कभी गया हो। ये अपने अपने इलाके से चुने ही इसलिए गए कि इन्होने जन जन से संवाद बनाये रखा। या तो अकेले ही पड़े रहते हैं या वहां रहते नहीं।

कोई आया नहीं, कोई जाने को-- एस पी साहेब लम्बी छुट्टी के बाद कम पर लौट आये। काम उनके बिना भी चल रहा था उनके आने के बाद तो चलना ही है। जिले के मंत्री, विधायकों ने उनको कई थाना प्रभारियों को बदलने के आदेश निर्देश दिए थे। अब उसकी पालना की उम्मीद है। इन्तजार करते करते एक पखवाडा हो गया। उधर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के जाने की चर्चा है। उनका यू एन ओ के किसी कार्यक्रम के लिए चयन हो गया है। उनका जाना तय है। उनकी जगह प्राप्त करने के लिए अधिकारियों ने राजनेताओं की शरण में जाना क्या अपने अपने शुभचिंतक नेता से डिजायर भिजवाना शुरू कर रखा है। जिन्होंने डिजायर भिजवा दी वे उसका फोलो अप करवाते रहते हैं। नए डी एस पी अशोक मीणा के आने की कोई सूचना नहीं है। इस पद के लिए भी कई अधिकारी नजर लगाए हुए हैं। कोई राजनीतिक सम्पर्क से आस लगाए है कोई अपने प्रशासनिक सम्बन्धों के भरोसे उम्मीद पाले है।

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