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Sunday, January 24, 2010

----चुटकी---- क्रिकेट की मंडी में नहीं बिका पाकिस्तानी माल, ये कूटनीति है या कुदरत का कोई कमाल।

Saturday, January 23, 2010

जय हिंद,जय हिंद ,जय हिंद

हिन्दूस्तान के महान सपूत सुभाष चन्द्र बोस की आज जयंती है। नारदमुनि उनके कोटि कोटि जय हिंद कर उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। इन्होने हिन्दूस्तान के लिए क्या किया, यह दुनिया जानती है। ये अलग बात है कि आज के ज़माने के नेता उनके बारे में हिन्दूस्तान के बचपन को कुछ बताना नहीं चाहते। उसके बाद तो फिर जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद ,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद,जय हिंद,जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद, हो जाएगी।

Wednesday, January 20, 2010

बसंत से सराबोर

तेरा जाना पतझड़ तेरा आना बसंत, मन एक कामनाएं अनंत। ---- बसंत से सराबोर हर उपवन, पतझड़ सा वीरान तेरा मेरा मन।

Monday, January 18, 2010

कामरेड का देह दान

मृत देह का दान सचमुच अनुकरणीय है। इस से मैडिकल के विद्यार्थी शोध करते हैं। कामरेड की देह भी कल दान कर दी जाएगी। भारतीय संस्कृति में तो जरा से दान का भी बहुत महत्व है, ये तो देह का दान है। लेकिन एक जिज्ञासा है कि क्या ज्योति दा की देह से शोध कार्य हो सकेगा? ऐसा कौनसा विद्यार्थी होगा जो ज्योति दा से अंजान हो। ऐसे में क्या कोई विद्यार्थी देह की चीर फाड़ कर सकेगा ? जैसी ही विद्यार्थी उनके निकट जायेंगे,उनमें उस देह के प्रति सम्मान,श्रद्धा,मान के भाव आ जायेंगें। क्योंकि वे जानते होंगें कि जिस देह को वे खोलने वाले हैं वह कौन था। हम शरीर को ही पहचानते हैं। आत्मा को नहीं। आत्मा,जिससे कोई वास्ता नहीं वह देह में नहीं है। शरीर के रूप में उसकी पहचान सबके सामने है। व्यक्ति,चाहे वह कोई भी हो, उसकी कमजोरी है कि अपनों के सामने उसके स्वभाव में थोडा बदलाव आता ही है।सामने जाना माना इन्सान हो तो फिर और भी भाव आते हैं। ज्योति दा की बात ही अलग है। उनके प्रति तो उनके विरोधियों के दिलों में मान सम्मान,आदर है। ऐसी स्थिति में ज्योति दा की यह इच्छा पूरी हो पायेगी कि उनकी देह शोध के काम आये। पता नहीं मैं गलत हूँ या सही,लेकिन प्रश्न है कि दिल,दिमाग से निकल नहीं रहा। कहीं ऐसा ना हो कि कामरेड की देह हॉस्पिटल में सबके देखने भर की " वस्तु" रह जाये। कामरेड को लाल सलाम।

Sunday, January 17, 2010

राजू गाइड को थैंक्स

देश में बड़ा सूर्यग्रहण है। इसलिए धर्मपत्नी ने सुबह ही बता दिया कि ग्रहण शुरू होने से मोक्ष तक घर से बाहर नहीं जाना। बेटे को स्कूल नहीं भेजा। कई अख़बारों में ग्रहण का समय देखा। उसके हिसाब से रसोई का काम निपटा दिया। मतलब अब चाय,पानी, भोजन, ग्रहण के समाप्त होने के बाद ही। क्या करें?चलो टीवी पर ग्रहण देखते हैं लाइव। बार बार चैनल बदल कर देखते रहे। कमरे का दरवाजा बंद, बाहर देखना नहीं। पत्नी जो धर्मपत्नी है,मन ही मन कोई पाठ करती रही। नजर बेटे पर थी। वह कसमसा रहा था। मैं खुद भी चैनल बदल कर तंग था। चैनल को बदलने के दौरान एक चैनल पर गाइड फिल्म दिखाई दी। सच में राजू गाइड ने ऐसा गाइड किया कि समय बीतता ही चला गया। बेटे को भी कुछ राहत मिली। फिल्म की बात शुरू हो गई। फिल्म में चित्तौड़ का किला देख पुराने दिन याद आ गये। सूरज का ग्रहण समाप्त हो गया,हमारी कैद। पत्नी ने खुद स्नान किया,बेटे को करवाया। मुझ पर गंगाजल छिड़का। तब कहीं जाकर घर की इस कैद से खुले में जाने की इजाजत मिली। इस कैद में राजू ने जो साथ दिया, उसका कोई जवाब नहीं। वरना मुझे पता नहीं, चैनल पर ग्रहण के बारे में और क्या क्या देखना,सुनना पड़ता। मगर अंत में ये नहीं देख पाया कि राजू का स्वामीपना गाँव में बरसात करवाने में सफल हुआ या नहीं। क्योंकि फिल्म पूरी नहीं देख सका। कई घंटे की कैद से छुट्टी के बाद खुद को खुले में जाने से नहीं रोक सका। चैनल ने मेरा इंतजार तो करना नहीं था। फिल्म ने ख़तम तो होना ही था, हो गई। फिर भी राजू गाइड को थैंक्स।

Friday, January 15, 2010

वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद राजू को बधाई...

ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की प्रेम कहानी पर लिखी ब्रिटिश लेखिका शरबनी बसु की चर्चित किताब "विक्टोरिया एण्ड अब्दुल" मे आगरा के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद राजू ने सहयोग किया है। इस सहयोग के लिये शरबनी ने किताब की भूमिका मे उनके नाम का ज़िक्र भी किया है। इस किताब को लन्दन मे लॉन्च किये जाने के बाद भारत मे भी उतारा गया है। इस किताब मे महारानी विक्टोरिया और अब्दुल करीम के प्रेम की वो अनछुई दास्तान है जो अब तक दुनिया से छिपी रही। इस किताब मे करीम का आगरा से सम्बन्ध और उनकी निशानियों का उल्लेख किया गया है। आगरा के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद राजू ने इस किताब में करीम से जुडे पहुलओं को जुटाया है। साथ यहां से सारी तस्वीरे भी शरबनी को मुहैय्या कराई हैं। इस काम के लिये सैय्यद राजू को 11 जनवरी को ब्रिटिश दूतावास मे आयोजित एक कार्यक्रम मे सम्मानित भी किया गया। राजू की इस उपलब्धि पर रंगकर्मी परिवार की बधाई। सैय्यद राजू से 9359937774 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

Thursday, January 14, 2010

चुटकी

भारत की हाकी, क्या रह गया अब बताने को बाकी।

Tuesday, January 12, 2010

Sunday, January 10, 2010

आप मुझे अच्छे लगने लगे

साम्राज्यवादी शक्तियों ने आज देश की राजनीतिक विचारधारा, अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति को किस प्रकार अपने काबू में कर रखा है कि जो पार्टी अपने को समाजवादी विचारक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की अनुयायी कहा करती थी वह कार्पोरेट समाजवाद के जाल में फंस कर साम्राज्यवादी प्रवत्ति के गुण दर्शा रही है तो वही बेनी प्रसाद वर्मा जैसे लोग जो अमर सिंह के समाजवादी पार्टी में बढ़ते हस्तक्षेप व अपनी उपेक्षा से छुब्ध होकर पार्टी छोड़ गए थे अब उन्ही अमर सिंह को अपने साथ आने की दावत कांग्रेस में दे रहे हैं और अमर सिंह अब उन्हें अच्छे लगने लगे। मुलायम सिंह पर समाजवादी विचारधारा का परित्याग कर अमर सिंह के कार्पोरेट समाजवाद के जाल में फंस कर चाल चरित्र बदलने का आरोप उनके पुराने साथी बेनी प्रसाद वर्मा लगा कर पार्टी से अलग हुए थे और कांग्रेस की गोद में बैठ कर उन्होंने मुलायम सिंह की पार्टी समाजवादी को प्रदेश में सत्ता से बाहर कर देने में अहम् भूमिका अदा की थी, आज वही बेनी प्रसाद वर्मा अमर सिंह को कांग्रेस में आने का न्योता दे रहे हैं । लोग शायद अनुमान नहीं कर पाए कि बेनी प्रसाद वर्मा ने जब कुरता धोती छोड़ सूट धारण किया तो केवल उनका तन का ढांचा नहीं बदला बल्कि उनके मन के विचारों में भी तब्दीलियाँ आ चुकी थी। जो नेता बाराबंकी में सड़कों पर पैदल चल कर बीड़ी पिया करता था अब वह विदेश निर्मित कारों एवं एयर कंडीशन कमरों में बैठ कर भला समाजवाद की बात कैसे करता ? अमर सिंह से भी समाजवादी पार्टी में उनकी रस्साकशी अपनी इसी बढती महत्वकांछा की प्रवृत्ति के चलते ही रही। साम्राज्यवादी शक्तियों ने किस प्रकार देश की समाजवादी विचारधारा रखने वाले या आम जनमानस के हितों का विचार रखने वाले राजनितिक दलों को छिन्न-भिन्न करने की योजना बनाई है उसका अनुमान इस बात से भली भांति लगाया जा सकता है कि आंध्र प्रदेश के कांग्रेसी मुख्य मंत्री राज शेखर रेड्डी जिनका प्रदेश को सूचना प्रद्योगिकी में आत्म निर्भरता एवं निपुणता की और ले जाने में बहुमूल्य योगदान था की हेलीकाप्टर दुर्घटना में हुई मौत महज एक हादसा न होकर एक साजिश थी जो रिलायंस इनर्जी एवं ऑयल कंपनी के बोर्ड ऑफ़ ड़ाईरेक्टर के सलाहकार की हैसियत से काम कर रहे एक अमेरिकी ने अंजाम दिलाई थी और जिसका खुलासा रूस के गुप्तचरों ने अभी हाल में किया तो पूरे आन्ध्र प्रदेश में तीव्र प्रदर्शन रिलायंस कंपनी के विरुद्ध हुए। चूँकि देश में कृषि के व्यवसाय को तहस नहस कर खाद्य पदार्थों में आत्म निर्भरता पर हमला करने की योजना साम्राज्यवादियों ने बना ली थी इसलिए आवश्यक था की समाजवादी विचारधारा का पहले नष्ट किया जाए बेनी प्रसाद वर्मा भी उसी साजिश का शिकार हुए अब वह स्वयं कार्पोरेट समाजवादी बन चुके हैं सो उन्हें अब अमर सिंह अच्छे लगने लगे हैं। -मो॰ तारिक खान

Friday, January 8, 2010

सब कुछ लुटा के होश में आए....

सपा के प्रभावशाली लीडर अमर सिंह ने दुबई में बैठकर पार्टी के सभी महत्वपूर्ण क्रमशः महामंत्री, प्रवक्ता एवं संसदीय बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनका यह इस्तीफा ऐसे समय पर आया है जब पार्टी के अन्दर से उनकी कार्यशैली के विरूद्ध बुजुर्ग समाजवादी लीडर ज्ञानेश्वर मिश्रा एवं पार्टी में सबसे समझदार माने जाने वाले डा0 राम गोपाल यादव के विरोध के स्तर फूटने प्रारम्भ हो गये थे और पार्टी मुखिया इस पर खामोश थे। वर्ष 1993 में आकर पार्टी के ब्राण्ड एम्बेस्डर का रोल निभाने वाले अमर सिंह ने चंद वर्षों के दौरान जिस प्रकार मुलायम सिंह के दिमाग पर अपना बंगाल का काला जादू चढ़ाया था, जहां से उन्होंने कांग्रेसी लीडर सिद्धार्थशंकर राम की छत्रछाया में राजनीति की ए0बी0सी0डी0 सीखी थी, उसके चलते सपा के सबके बाद एक दिग्गज नेता किनारे लगते चले गये। चाहे वह ज्ञानेश्वर मिश्रा हो या डा0 रामगोपाल यादव चाहे वह शफीकुर्रहमान बर्क रहे हों या सलीम शेरवानी, चाहे वह बेनी प्रसाद वर्मा रहे हो या आजम खां या राज बब्बर अन्त में मुलायम का हाल यह हुआ कि सारी खुदाई एक तरफ अमर प्रेम एक तरफ। मुलायम पर अमर सिंह का ऐसा नशा चढ़ा कि वह समाजवाद का पाठ भूलकर साम्राज्यवाद की डगर पर चल पड़े। उनके पुराने दोस्त जो लोहिया के विचारों के थे वह तो किनारे लग गये अनिल अम्बानी, अमिताभ बच्चन, सुब्रतराय जय प्रदा व जया बच्चन के साथ उनकी गलबहिएं बढ़ती गई। परिणाम यह हुआ कि लोहिया का समाजवाद बकौल वयोवृद्ध समाजवादी लीडर मोहन सिंह के वह काॅरपोरेट समाजवाद में तब्दील हो गया। मुलायम के वोट की दौलत लुटती गई और विदेशी बैंकों में उनकी दौलत में भण्डार बढ़ते गये। मुलायम सिंह की राजनीतिक बैसाखी दो प्रबल वोट बैंकों पर टिकी थी एक यादव दूसरा मुस्लिम जो उन्हें अपना सच्चा और खरा हमदर्द समझती थी और उनकी इसी छवि के कारण संघ परिवार के लोग उन्हें अपना कट्टर दुश्मन मान कर मौलाना मुलायम सिंह भी कहा करते थे। अमर सिंह ने मुलायम सिंह के चरित्र को ऐसा बदला कि अखाड़े का यह पहलवान जो कभी लंगोट का बेइंतेहा मजबूत माना जाता था, पर बदनामी के कई दाग लगने लगे। कभी फिल्मी तारिकाओं का लेकर तो कभी उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में उनकी निजी सचिव रही एक महिला आई0ए0एस0 अधिकारी के साथ उनकी करीबी रिश्तों को लेकर। कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति का चरित्र कमजोर हो जाता है तो वह आत्मबल से कमजोर होकर नैतिक पतन के अंधकार में चला जाता है। मुलायम के साथ भी ऐसा ही होने लगा। उनके घर में उनकी छवि बिगड़ने लगी। पहली पत्नी की बीमारी और उसके बाद उनका देहान्त फिर उनके पुत्र अखिलेश से उनके रिश्तों में कड़वाहट मुलायम सिंह की मौजूदा पत्नी व अखिलेश के बीच मतभेद के पीछे भी बताते हैं अमर सिंह का ही अहम किरदार शामिल है। यही तक नहीं मुलायम सिंह के छोटे अनुज शिवपाल यादव, अखिलेश, डिम्पल वगैरह का एक ऐसा गुट अमर सिंह ने तैयार कर दिया कि मुलायम सिंह बिलकुल बेबस होकर अकेले रह गये मुलायम का अपना कोई स्वतंत्र निर्णय न हो पाता उनके ऊपर अमर सिंह का निर्णय ही सदैव हावी रहता। यहाँ तक कि बीते लोकसभा चुनाव में मुसलमानों में नफरत की निगाह से सदैव देखे जाने वाले कल्याण सिंह के साथ हाथ मिलाकर मुलायम ने अपने सबसे वफादार वोट बैंक मुस्लिम में भी हाथ धो लिया और इसी का लाभ उठाकर कांग्रेस ने अपने बरसों पुराने रूठे हुए मुस्लिम वोट बैंक को अपने घर वापसी कराने में सफलता प्राप्त कर ली। अमर सिंह की ही गलत नीतियों के चलते हपले शफीकुर्रहमान बर्क, सलीम शेरवानी और राजबब्बर जैसे वफादार नेता मुलायम का साथ छोड़कर गये फिर उनके सबसे पुराने साथी बेनी प्रसाद वर्मा व आजम खाँ भी उनसे रूठकर अलग हो गये। यह सभी अमर सिंह के ही घायल रहे और मुलायम के अमर प्रेम के ही चलते उनसे नाराज हुए। बेनी का तो भरपूर इस्तेमाल कांग्रेस ने करके सपा को ठिकाने लगाने के अतिरिक्त उ0प्र0 में अपने दोबारा सत्ता में आने की राह हमवार कर ली। और वह सपने भी संजोने लगी, वही आजम खा की बयानबाजी ने मुस्लिम वोटों को उनसे काफी दूर कर दिया। अमर सिंह ने मुलायम के हरे भरे राजनीतिक चमन में ऐसी आग लगाई कि उनके घर तक आग जा पहुंची। बताते हैं कि फिरोजाबाद में अखिलेश की पत्नी डिम्पल की हार की दुआ मुलायम की पत्नी कर रही थी तो वही पलटवार करते हुए मुलायम की पत्नी की पसंद के उम्मीदवार बुक्कल नवाब लखनऊ पश्चिम से विधान सभा उपचुनाव जो लालजी टण्डन के सांसद होने के पश्चात सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे और जीत के करीब पहुंच गये थे कि अमर सिंह ने आकर एक ऐसा भड़काऊ भाषण इमाम हुसैन के हुसैनी लश्कर की तुलना अपने से करते हुए दिया कि बुक्कल नवाब का अपना स्वयं का शिया वोट बैंक उनसे रूठकर छिटक गया और सपा की जीती सीट मौके के ताक में बैठी कांग्रेस के पाले में चली गई। बुक्कल नवाब ने चुनाव बाद स्वयं यह बयान दिया था कि मेरी हार का कारण अमर सिंह है। समाजवादी पार्टी के दिन प्रतिदिन गिरते राजनीतिक ग्राफ का सीधा लाभ कांग्रेस को हो रहा था जहाँ उसका मुस्लिम वोट जाने को पर तोल रहा था तो वहीं भाजपा के कमजोर होने पर हिन्दू मतों का धु्रवीकरण भी कांग्रेस की ओर होना प्रारम्भ हो गया। उधर विधान सभा का चुनाव होने में मात्र सवा दो साल बचे थे ऐसे में मुलायम सिंह की पार्टी की राजनीतिक भविष्य पर ही प्रश्न उठने खड़े हो गये थे। सपा से बड़े पैमाने पर भगदड़ प्रारम्भ होने के आसार भी साफ दिखने लगे थे सो मुलायम के पास इसके अतिरिक्त कोई चारा नहीं था कि अमर सिंह से छुटटी पा ली जाए। इसीलिए सोंची समझी रणनीति के तहत उन्होंने डा0 रामगोपाल यादव को उन्होंने आगेकर अमर सिंह के विरूद्ध उन्होंने मोर्चा खुलवा दिया वह जानते हैं कि अमर सिंह एक भावुक व्यक्ति हैं वह अपमान सहकर पार्टी में नही रह पायेंगे सो अमर सिंह की प्रतिक्रिया मुलायम की उम्मीदों के करीब आयी हैं। उधर अमर सिंह ने पार्टी की सदस्यता ना छोड़कर इतनी गुंजाइश बाकी बचा ली है कि दोबारा पार्टी में आने की डगर जीवित रहे। मुलायम भी अध्ययन करना चाहते हैं कि अमर सिंह के पार्टी से किनारा करने की खबर पाकर उनके रूठे नेताओं की तरफ से उन्हें क्या संकेत मिलते हैं। समाजवादी का ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय बतायेगा फिलहाल अमर सिंह के इस्तीफ से समाजवादी पार्टी के तेजी से होते नुकसान में थोड़ा ठहराव अवश्य आ जायेगा विशेष तौर पर मुस्लिम वोटों के पार्टी से जाते कदम रूक सकते हैं। परन्तु मुलायम सिंह को अपनी पुरानी छवि पाने में लोहे के चने चबाने होंगे क्योंकि सब कुछ लुटाने के बाद वह अब अपने होश में आने की तैयारी कर रहे हैं। मो॰ तारिक खान

Tuesday, January 5, 2010

बेनी प्रसाद का कांग्रेस में भविष्य

आजकल उत्तर प्रदेश में फिर बेनी प्रसाद वर्मा राजनीति की सुर्ख़ियों में हैं। कांग्रेस पार्टी से गोंडा के सांसद बेनी प्रसाद वर्मा ने अपने गृह जनपद बाराबंकी की राजनीति में अपना हस्तक्षेप न सिर्फ जारी रखा है बल्कि कांग्रेसी सांसद पुनिया से उनकी ठन गयी है। कारण स्थानीय निकाय के लिए विधान परिषद् सीट के चुनाव में उनका खुले आम बसपा प्रत्याशी को समर्थन का एलान करना और अपने इस निर्णय में कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री एवं प्रदेश प्रभारी दिग्विजय सिंह के नाम को घसीटने पर प्रदेश के कांग्रेसी इतने आग बबूला हो चुके हैं कि उनके निष्कासन की सिफारिश पी.सी.सी सदस्यों की तरफ से कांग्रेस आलाकमान को कर दी गयी है। समाजवादी तहरीक से पोषित हो कर राजनीति में अपना कदम रखने वाले बेनी वर्मा के राजनीतिक जीवन का आगाज चरण सिंह के लोकदल से हुआ जो अपनी चौधरी चरण सिंह स्टाइल की ऐंठ व बरर के साथ राजनीति में अपनी स्वार्थ की प्रवत्ति के लिए प्रसिद्ध थे। बेनी का फिर साथ हुआ उस मुलायम सिंह से जिन्होंने अपने कर्णधार विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ घात करके समाजवादी पार्टी का गठन वर्ष 1989 में किया। फिर कशीराम के साथ उनका गठबंधन 1992 मनें बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद हुआ परन्तु वह भी मात्र डेढ़ वर्षों में ढेर हो गया। उसके बाद बेनी प्रसाद वर्मा व मुलायम सिंह के रिश्तों में खटास समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की आमद के बाद शुरू हुई जो अंत में 2007 के चुनाव से पूर्व बेनी के पार्टी से बागी होने के बाद पूर्णतया कड़वाहट में बदल गयी। बेनी ने अलग अपने दल का गठन समाजवादी क्रांति दल (एस.के.डी) कर के इंडियन जस्टिस पार्टी के साथ समझौता किया और पूरे प्रदेश में चुनाव लड़े परन्तु उन्हें जबरदस्त विफलता हाथ लगी यहाँ तक कि उनके गृह जनपद बाराबंकी में भी उनका सफाया हो गया उनका पुत्र एवं भूतपूर्व राज्य मंत्री राकेश कुमार वर्मा को भी अपने पिता की कर्म भूमि मसौली से शिकस्त खानी पड़ी। राजनीति में सब कुछ लुटाने के बाद बेनी प्रसाद ने कांग्रेस की डगर पर आ कर विराम किया और कांग्रेस ने उन्हें सम्मान देते हुए गोंडा से न सिर्फ टिकट दिया बल्कि देवीपाटन की लगभग सात सीटों का टिकट उनकी सलाह ले कर दिया। बेनी वर्मा खुद भी जीते और फैजाबाद बहराइच श्रावस्ती, सुल्तानपुर और महाराजगंज पर कांग्रेस को जीत दिलाई बाराबंकी में 1984 के बाद 25 साल के लम्बे अरसे बाद कांग्रेस को सफलता पुनिया की जीत के तौर पर मिली। इसमें कोई शक नहीं कि यदि बेनी की कुर्मी बिरादरी का समर्थन पुनिया को न होता और एक बड़ा बेस वोट बैंक पुनिया के पास न होता तो फिर पुनिया की सफलता की राह आसान न होती। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सफलता का डंका भले ही बेनी वर्मा के लोग पीटते फिरें परन्तु कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व व प्रदेश कांग्रेस इसे राहुल का करिश्मा मानते हैं और सपा, बसपा व भाजपा से परेशान होकर ऊब चुकी जनता का पुन: कांग्रेस की ओर वापसी मान रहे हैं। उधर बेनी है कि आज भी अपने अड़ियल रवैये पर टिके हैं और उस पार्टी को आँख दिखा रहे हैं जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह राजनीति का महासागर है जिससे अलग होकर सभी दरिया निकले हैं चाहे वह भाजपा हो या समाजवादी, चाहे वह लोकदल हो या डी.ऍम.के , अन्ना डी ऍम.के चाहे वह तृणमूल कांग्रेस हो या राष्ट्रवादी कांग्रेस। यहाँ तक की भारतीय जनसंघ भी कांग्रेस के कोख से पैदा हुई पार्टी है. केवल कम्युनिस्ट पार्टियों को यह गौरव प्राप्त है कि उनका उदय कांग्रेस की कोख से नहीं हुआ। जहाँ तक कांग्रेस में बेनी वर्मा के भविष्य का प्रश्न है तो वह बहुत उज्जवल नजर नहीं आता क्योंकि बेनी प्रसाद वर्मा की राजनीतिक पृष्टभूमि स्वार्थ की राजनीति और अवसरवादिता की बैसाखी पर टिकी हुई है विचारों के आधार पर कभी भी उनकी समानता कांग्रेसियों से नहीं हो सकती. कांग्रेस ने वर्ष 2007 में यदि बेनी वर्मा के कंधे पर हाथ रखा तो उसका लक्ष्य मुलायम व उनकी पार्टी सपा को कमजोर करना था सो उन्होंने सफलता के साथ वह कारनामा अंजाम दिया। अब चूँकि 2012 का आपरेशन उत्तर प्रदेश का लक्ष्य अभी कांग्रेस को प्राप्त करना है इसलिए बेनी वर्मा के बडबोलेपन को वह बर्दाश्त कर रही है परन्तु अधिक समय तक नहीं। उधर बेनी वर्मा को भी एस.के.डी के प्रयोग के विफल हो जाने के पश्चात एक राजनीतिक छतरी की आवश्यकता थी सो वह उसके नीचे से आसानी से निकलने वाले नहीं जबतक उन्हें कोई नई छतरी न मिल जाए।
मो॰ तारिक खान

Monday, January 4, 2010

तेरी जुदाई का ग़म....

तमाम खुशियों पर भारी है तेरी जुदाई का गम, मिलने के सारे के सारे जतन पड़ गए कम, हो सके तो चले आना मेरी ओर, निकलने को है अब मेरा दम।

Sunday, January 3, 2010

मोहे आई न जग से लाज..........

महाराष्ट्र के मुंबई में माफिया ड़ॉन छोटा राजन के गैंग सरगना पालसन जोसेफ की (चेम्बूर जिमखाना क्लब) क्रिसमस पार्टी में पांच उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारियों ने डांस ठुमके. शायद जीवन में उन्हें पहली बार अपराधियों के साथ खुलकर गठजोड़ जिंदाबाद करने से अत्यधिक उल्लास मिला होगा और उन्होंने पंकज उदास को मात करते हुए गाया होगा "मोहे आई जग से लाज, मैं इतना जोर से नाची आज , की घुंघरू टूट गये " पुलिस अपराधी गठजोड़ की यह छोटी मिसाल है अपराधियों ने राजनेताओं, पुलिस के उच्च से उच्चतम अफसर तक गठजोड़ बना लिया है अपराधियों ने न्यायिक अधिकारियो में भी निचले स्तर पर पहुँच बना रखी है जिससे आम जनता को इन गठजोड़ो के चलते कुंठा के अतिरिक्त कोई भी लाभ नहीं मिलने वाला हैठुमका लगाने वालों में स्पेशल ब्रांच के डिप्टी एस.पी वी एन साल्वे, चेम्बूर के .सी.पी प्रकाश वाणी, सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर तुलसी दास खाकर, एंटी एक्सटॉर्शन सेल के अधिकारी खालटकर और कांस्टेबल सालुंखे प्रमुख हैंइसी तरह के गठजोड़ जिले स्तर पर, प्रदेश स्तर पर राष्ट्र के स्तर पर हैंविधयिका कार्यपालिका पर उनका कब्ज़ा बना रहता हैसुमन loksangharsha.blogspot.com

Saturday, January 2, 2010

विधि में संसोधन कोई विकल्प नहीं है

रुचिका प्रकरण के बाद विधि मंत्रालय से लेकर आम जनता तक पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री रठौड़ को कम सजा दिए जाने को लेकर एक बहस प्रारंभ हो गयी है सरकार बगैर सोचे समझे जनता की भावनाओ के दबाव में विधि में संशोधन कर रही है जिसका कोई औचित्य नहीं हैन्यायलयों में अभियोजन पक्ष की नाकामियों के लिए विधि को दोषी नहीं ठहराया नहीं जा सकता हैन्यायलयों की कार्यवाहियों में अभियोजन पक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है अभियोजन पक्ष सम्बंधित राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी होता हैव्यवहार में मजिस्टे्ट ट्रायल में सहायक अभियोजन अधिकारी सरकार के पक्ष की तरफ से अधिवक्ता होते हैंजो दोनों पक्षों से लाभान्वित होते हैं पीड़ित पक्ष को उनको खुश करने के लिए कोई समझ नहीं होती है इसलिए अभियोजन पक्ष न्यायलयों में बचावपक्ष से मिलकर सही प्रक्रिया नहीं होने देता हैजब कोई अपराधिक वाद किसी भी थाने में दर्ज होता है तो कुछ अपराधों को छोड़ कर सभी अपराधों की विवेचना सब इंस्पेक्टर करता है जिसकी निगरानी के लिए डिप्टी एस.पी, एड़ीशनल एस.पी, एस.पी, एस.एस.पी, डी.आई.जी, आई.जी, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिदेशक होते हैंइतने महत्त्वपूर्ण अधिकारीयों की देख-रेख में हो रही विवेचना का स्तर बहुत घटिया स्तर का होता है इन अधिकारीयों की मद्दद के लिए सहायक अभियोजन अधिकारी, अभियोजन अधिकारी, विशेष अभियोजन अधिकारी सहित एक विशेष कैड़र अभियोजन का होता हैवर्तमान में इनकी भूमिका का स्तर भी बहुत ही निकिष्ट कोटि का होता है. वर्तमान भारतीय समाज में फैले भ्रष्टाचार की गंगोत्री में स्नान करने के बाद सजा की दर क्या हो सकती है आप सोच सकते हैंगंगा अगर मैली है तो स्नान के बाद चर्म रोग निश्चित रूप से होना है उसी तरह अभियोजन पक्ष भ्रष्टाचार की गंगोत्री में हर समय स्नान कर रहा है तो क्या स्तिथि होगी? इसलिए आवश्यक यह है की इस भ्रष्टाचार को अगर दूर कर दिया जाएहजारों लाखों रुचिकाओं को न्यायलय में आने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगीविधि में संशोधन की आवश्यकता नहीं है जरूरत है उसको लागू करने वाली एजेंसियों में सुधार की जिसके लिए कोई सरकार तैयार नहीं हैसुमन loksangharsha.blogspot.com

Friday, January 1, 2010

कैसे मिले गरीब को रोटी ?

नव वर्ष के शुभारम्भ पर आज यह सोचने की आवश्यकता है कि लाखो-करोडो गरीब व्यक्तियों को रोटी कैसे मिले ? केंद्र सरकार द्वारा सस्ते दामों पर खाद्यान सार्वजानिक वितरण प्रणाली के तहत उपलब्ध कराया जाता है खाद्यान्न सरकारी एजेंसी से उठने के बाद सीधे सार्वजानिक वितरण प्रणाली की दुकान पर बिक्री हेतु जाना चाहिए लेकिन वस्तुस्तिथि यह है कि आपूर्ति विभाग के अधिकारियों, विपणन वाली सरकारी एजेंसी, पुलिस, प्रशासनिक अफसर, व्यापारी जिसमें फ्लोर मिल्स राईस मिल्स के मालिकों का एक गठजोड़ बन गया है जिसके कारण विपणन एजेंसी से गेंहू या चावल फ्लोर मिल या राईस मिल को वापस हो जाता है और वह महंगे दामो पर बाजार में बिकने के लिए जाता हैआम आदमी को सरकार द्वारा प्रदत्त सस्ते खाद्यान्न उपलब्ध नहीं हो पाते हैं . गाँवों शहरों में बहुत सारे परिवार भूखे पेट सो जाते हैं इस गठजोड़ के लोग लाखो और करोडो रुपये कमा रहे हैंइस गठजोड़ ने स्थानीय स्तर पर पत्रकारों को भी मिला रखा होता है ताकि पब्लिसिटी होने पाएआज नव वर्ष के शुभारम्भ पर हम आप से आशा करते हैं कि कोई ऐसा कदम उठाया जाए की जिससे यह गठजोड़ टूटे और आर्थिक अपराधी जिनकी जगह कारागार होनी चाहिए वहां पहुंचेवैसे आर्थिक अपराधियों ने देश में समान्तर अर्थव्यवस्था कायम कर रखी है जिससे लाखो करोडो व्यक्तियों के मुंह का निवाला भी यह लोग छीन कर स्वयं खा ले रहे हैंनए वर्ष यह संकल्प होना चाहिए कि आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करवाने में मेली मदद्गार बने अन्यथा नया वर्ष आया, समाप्त हुआ -यह प्रक्रिया चलती रहेगी। सुमन loksangharsha.blogspot.com

सुरक्षा अस्त्र

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