कोमल तन चंचल चितवन
मुख पर तेरे प्यार की आभा है
पाना चाहूं सानिध्य तेरा
जग देखने की अभिलाषा है
मन में जीवन की एक ललक
अस्तित्व तेरी पहचान हूं मैं
तेरी कोख में सांसें लेती हूं
इस दुनिया से अनजान हूं मैं
नव जीवन का संचार किया
दिया ईश्वर ने संसार मुझे
बोलो क्या दोगी जननी तुम
जीने का अधिकार मुझे
परछाई हूं मैं तेरी मां
तेरा ही तो अंश हूं मैं
क्या दोष है इसमें मेरा गर
नहीं तुम्हारा वंश हूं मैं
तेरी तनुजा कोई बोझ नहीं
ममता का अमृत पीने दो
पल्लवित पुष्पित होने का
एक बार तो मुझको मौका दो
ये कामना अंर्तमन की है
नैनों की मौन ये भाषा है
पाना चाहूं सानिध्य तेरा
जग देखने की अभिलाषा है