ग़ज़ल
शरीक़े ग़म तुम्हारे सिर्फ़ हम थे
ज़माने के सितम थे सिर्फ़ हम थे
फ़क़त इक बार तुमसे बात की थी
निशाने पे सभी के सिर्फ़ हम थे
तुम्हारे साथ लाखों मुस्कुराये
तुम्हारे साथ सिसके सिर्फ़ हम थे
ग़ज़ल की बात करते थे हज़ारों
ग़ज़ल से बात करते सिर्फ़ हम थे
चलेंगे साथ था वादा तुम्हारा
चले 'तनहा' सफ़र पे सिर्फ़ हम थे
- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
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