श्रीगंगानगर-“कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान”। “बेटी बचाओ आंदोलन”। “नारी शक्ति के लिए रैली”। और भी बहुत कुछ....ये....वो..... । किसलिए
ताकि जब हमारी बेटी,बहिन,भतीजी...बड़ी हो जाए तो उनको समाज के बिगड़ैल लड़के
छेड़े। उनको आते जाते रास्ते में रोक कर परेशान करें। और उसकी मजबूरी देखो
ना तो वह यह बात घर में बता सकती है और ना खुद कुछ करने में सक्षम। घर बताए तो
माता,पिता,भाई,चाचा...को टेंशन। कुछ करें तो मुश्किल....काम धंधा रुक जाएगा...कोर्ट
कचहरी के चक्कर....लड़की की बदनामी...लड़ाई झगड़ा। परिवार कुछ ना
करे तो और मुश्किल,,,लड़की को टेंशन...या तो लड़कों की अच्छी बुरी बातें सुने.......या घर से निकलना छोड़
दे। महिला सशक्तिकरण को लगे गोली। इज्जत है तो
सब कुछ है। वह दौर कुछ अलग था जब लड़कियों को घर बैठे काम चल जाता था। अच्छे रिश्ते मिल जाते थे। अब तो लड़कियों को समय के
साथ चलना जरूरी है। इसके लिए घर से और शहर से भी बाहर निकालना ही होगा...तो सुरक्षा? फिर वही सवाल...हैरानी इस बात की है कि
लड़कियों को बचाने के आंदोलन चलाने वाले संगठन,नारी आंदोलन के लीडर कभी दिखाई नहीं देते इनकी रक्षा
के लिए। लड़कियों को छेड़ने वाले लड़कों के खिलाफ कभी खड़े नहीं होते ऐसे संगठन। इनको शर्म तो अब भी
नहीं आती। कांता सिंह लगा है ऐसे लड़कों से
निपटने के लिए। किन्तु लड़की और नारी की रक्षा,उनको बचाने की बड़ी बड़ी बात करने वाला। बड़ी बड़ी रैली
निकालने वाला। बड़े बड़े आयोजन कर लड़की के महत्व को समझने वाला कोई संगठन कांता सिंह
के साथ खड़ा नहीं हुआ। किसी ने ये नहीं कहा...कांता सिंह हम तुम्हारे
साथ है। कोई तो आए और ये कहे कांता सिंह तुम प्रशंसा के पात्र हो। इन संगठनों ने तो क्या
आना था कुछ लड़के विरोध में जरूर आ गए। फिर ऐसे नारी वादी संगठनों का क्या मतलब।
एनजीओ किस काम की। केवल प्रचार के लिए।सम्मानित होने के वास्ते। यूं तो लड़की बचाओ
की बात करते है और जब कोई लड़कियों को बुरी नजरों से बचा रहा है तो ये आँख,कान,मुंह बंद किए हुए हैं। शर्म की बात है....जिस कांता सिंह का काम नहीं
है वह लगा है और जो सारा दिन “लड़की
बचाओ””कन्या भ्रूण हत्या बंद करो” चिल्लाते हैं वे चुप है। खामोश हैं। मौन धारण
किए हैं। फिर ऐसे संगठन किस काम के। काहे के नारी बचाने के आंदोलन। क्या बेटी
इसलिए बचाएं कि लड़के उनको छेड़े। जलील करें। अपमानित करें। कन्या भ्रूण हत्या
रोकें....ताकि लड़की पैदा हो.....बड़ी हो और फिर लड़कों के
भद्दे कमेन्ट को सुन कर प्रताड़ित हों। शायद नारीवादी संगठनों को पता लग गया होगा
कि कन्या भ्रूण हत्या क्यों होती थी.....किसी जमाने में लड़की के पैदा होते ही उसे क्यों मार
दिया जाता था। क्योंकि हर रोज मरने से अच्छा है एक बार मरना। अब भी चेतो मौका है।
कांता सिंह है। उसके पास हौसला है। काम करने का जुनून है। बस उसे अच्छे काम के लिए
साथ चाहिए। कुछ ऐसा होना चाहिए ताकि लड़कियों की राह में कोई रोड़ा ना हो...॥ वरना तो फिर शहर में
बिगड़ैल लड़कों का ही राज होगा। वे लड़के भी हमारे ही हैं। बस किसी कारण से बिगड़ गए।
Monday, September 3, 2012
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