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Monday, January 26, 2009

शम्मां मुहब्बत का जलायें

(1) आवाज़ उठाये हम वतन के वास्ते खून बहायें अपना वतन के वास्ते कमी न हो कभी तिरंगे की शान में दुश्मनों को सबक सिखायें वतन के वास्ते (2) वतन के वास्ते जीयें जायें हम कार्य दुष्कर सारे किये जायें हम बाधाओं से ना कभी घबरायें हम साहसिक तेवरों के साथ बढ़ते जायें हम (3) तरक्की की राह में हम चलते जायें शर्त ये के पहले नफरतों को मिटायें अमन, चैन, खुशहाली सब मुमकिन है तीरगी मिटायें, शम्मां मुहब्बत का जलायें

1 comment:

Asha Joglekar said...

सुंदर कविता

सुरक्षा अस्त्र

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