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Sunday, February 24, 2008

सपने बीनता बचपन


सड़क पर पडा
बादलों से झांकती
धूप का एक टुकडा
जिसे बिछा कर
बैठ गया वो
उसी सड़क के
मोड़ पर
घर पर अल सुबह
माँ के पीटे जाने के
अलार्म से जागा
बाप की शराब के
जुगाड़ को
घर से खाली पेट भागा
बहन के फटे कपड़ो से
टपकती आबरू
ढांकने को
रिसती छत पर
नयी पालीथीन
बाँधने को
बिन कपड़े बदले
बिन नहाए
पीठ पर थैला लटकाए
स्कूल जाते
तैयार
प्यारे मासूम
अपने हम उम्रो
को निहारता
बिखरे सपनो को
झोली में
समेटता
ढीली पतलून
फिर कमर से लपेटता
जेब से बीडी निकाल कर
काश ले
हवा में
उछाल कर
उडाता
अरमानों को
जलाता बचपन को
मरोड़ता
सपनो को
चल दिया
वो उठ कर
समेत कर
वह एक टुकडा
धूप का
वही बिछा है
अभी भी
देख लें जा कर कभी भी
वो सुनहरा टुकडा
अभी भी वही है
पर
उस पर बैठा बच्चा
अब नही है !!!!

mailmayanksaxena@gmail.com

बुंदेलखंड

आज शाम से ही कुछ बेचैन सा था अक्सर ही करता रहता हूँ रिक्शे वालों का साक्षात्कार जब वो मुझे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते हैं इस बीच ज्यादातर रिक्शेवाले बुंदेलखंड के निकले कुछ तीन साल से आए हैं कुछ एक साल से और कुछ दो महीने पहले आज जो रिक्शेवाला मिला दो महीने पहले ही महोबा से आया है मैंने पूछा सुना है वहां सूखा पड़ा है उसने बोला पिछले कई सालों से इसलिए ही तो यहाँ चला आया हूँ बीस बीघे की खेती है पर चार सालों से पानी के इंतजार में खेत सूखा पड़ा हुआ है लोग काम की तलाश में बाहर जा रहे हैं कईयों ने तो क़र्ज़ चुकाने के बजाय आत्महत्या का रास्ता अपनाया है दें भी तो कहाँ से दें मैंने पूछा सरकार क्या कर रही है उसने बोला कुछ नही उसके बाद से ही बेचैन हूँ गुस्सा भी उमड़ आता है जनता हूँ कि बुंदेलखंड का सूखा और इससे उपजी आग पर चुनावी पार्टियाँ अपनी रोटियां पकाएँगी अपनी ज़िम्मेदारी से बचते हुए एक दूसरे पर आरोप लगाएंगी दरअसल समस्या को सुलझाने का ये उनका अपना तरीका है और इसमे उनकी आपसी सहमति भी है कुछ सलाह भी आए हैं मसलन बुंदेलखंड को अलग राज्य बनने का लगता है पिछले कई सालों के सूखे पर नज़र सिर्फ़ इसलिए नही पड़ी कि उत्तरप्रदेश एक बड़ा राज्य है लगातार किसानों की आत्महत्या की खबरें सिर्फ़ इसलिए नही पढ़ पाए क्यूंकि उत्तरप्रदेश की जनसंख्या बहुत ज्यादा है और हर जिले में रोज कोई न कोई तो ज़िंदगी से मुक्ति का रास्ता फंदे से झूलकर या सल्फास निगलकर खोज लेता है अब इतने बड़े राज्य में जिसकी जनसंख्या सोलह करोड़ से ज्यादा है किस किस का हाल जाने और किस किस के मर्ज़ का इलाज करें अलग राज्य बनाने की अलाप अपने अपने सुर में कई पार्टियों ने उठाई है लगातार आती मौत की ख़बरों के बीच बड़े पैमाने पर होते पलायन के बीच बड़ी दूर की सोच रखती हैं पार्टियाँ खली पेट जो घंटों से सभा स्थल पर खड़े हैं उन्हें उपदेश पिलाते हुए कि हम आपके दुःख दर्द में साथ हैं एक अलग राज्य की आपको ज़रूरत है थके हारे बेदम पैर शाम को घर पहुँचते हैं बुझे हुए चूल्हे को देखते हुए परेशान दिमाग सोचता हुआ सा अगर बैंक , साहूकार की जिल्लत से सुबह शाम पेट की भूख से अलग राज्य के लिए जो कमीशन बनाया जाएगा उसकी सिफारिशें आने और लागू होने तक हम ख़ुद को बचाए रख सके तो हमारा भविष्य उज्जवल है ।

आतंकवादी


कहीं पढा था
बड़े बुज़ुर्गों से भी सुना था
सपने देखना अच्छी बात है
सपने ऊँचे देखना चाहिए, बड़े देखना चाहिए
एक छोटे बच्चे ने भी देखा था सपना
एक छोटा सा सपना
उसके जैसे न जाने कितने लोगों ने
देखा होगा कुछ ऐसा ही सपना
सोचा था सपना छोटा है
इसलिए पूरा होने की उम्मीद भी रखी
लेकिन जब सपने की उस मज़बूत चादर के तार
झीने पड़ने लगे
फटने लगे
टूटने लगे तो साथ ही
उसके सपने
उसकी उम्मीदें
विश्वास भी
तार-तार होकर बिखरने लगे
अपने पराए लगने लगे
और अपनों में बेगाना वो
हर पल खण्डित होते विश्वास
से परास्त हो गया
और
बन गया
आतंकवादी।
(आतंकवादी कोई बचपन से नहीं होता, समाज बना देता है)

स्मृति

Friday, February 22, 2008

सवाल

आस पास टूट फुट हो, तो हाथो में समेट लूँ मन भर कर अफ़सोस फ़िरे बहार फेंक भि दूँ पर आज कया करूं? दिल अपना टूटा सा है, इन फ़ैली भावनाओ को सुलझाऊ तो केसे? भिखरी भिखरी बातो को बताऊँ भि तो किसे ? अजीब होते है बंधन निभाऊ भि तो केसे? कुछ ऐसे ही ... ढेरों सवालो का अम्बार बरसाऊ भि तो किस पे? कीर्ती वैद्य.....

Thursday, February 21, 2008

आप समझें तो ....

आप समझें तो कुछ कहें हम भी आप कह दें तो कुछ सुनें हम भी बैठिये तो हमारे पहलू में कोई ताज़ा ग़ज़ल लिखें हम भी इस समंदर में हैं छुपे मोती साथ उतरें तो कुछ चुनें हम भी मोड़ के उस तरफ़ उजाला है मोड़ तक साथ तो चलें हम भी रात की तीरगी नहीं जाती चाँद दुश्मन है क्या करें हम भी जी हुज़ूरों की भीड़ है हर सू भीड़ टूटे तो फ़िर जुड़ें हम भी हम मुसाफिर हैं और 'तनहा' भी कोई खिड़की खुले ' रुकें हम भी ' 'प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'

IMPORTANT FOR GIRLS & WOMEN

A woman at a Gas night club (Mumbai) on Saturday night was taken by 5 men, Who according to hospital andpolice reports, gang raped her before Dumping her at Bandstand Mumbai. Unable to remember the events of the evening, tests later confirmed therepeat rapes along with traces of rohypnol in herblood. Rohypnol, date rape drug is an essentially a small sterilization pill. The drug is now being used by rapists at parties torape AND sterilize their victims. All they have to dois drop it into the girl's drink. The girl can't remember a thing the next morning, of all that hadTaken place the night before. Rohypnol, which dissolves in drinks just as easily, is such that the victim doesn't conceive from the rape and the rapist needn't worry about having a paternity test identifying him months later.The Drug's affects ARE NOT TEMPORARY - they are PERMANENT. Any female that takes it WILL NEVER BEABLE TO CONCEIVE. The weasels can get this drug from anyone who is in the vet school or any university. it's that easy, and Rohypnol is about to break out bigon campuses every where. Believe it or not, there are even sites on the Internet telling people how to use it. Please tell this to everyone you know, especially girls. Girls, becareful when you're out and don't leave your drink unattended. (added - Buy your own drinks, ensure bottles or cans received are Unopened or sealed; don't even taste someone else's drink)

Wednesday, February 20, 2008

उमड़-घुमड़

कुछ उमड़ता घुम्ड़ता आया खोल पट, छुआ शीतल स्पर्श इक मधुर स्वर गुंजन, किसी अभिलाषा का स्पंदन गगरी से छलकी नमकीन बूंदे भर आँचल, चुगती तारे जोड़ यादे, पिघलती राते खींच बादल, कुम्हलाती बाते......... कीर्ती वैद्य

पाकिस्तान मे लोकतंत्र की जीत

मंगलवार शाम तक आए चुनाव परिणामो से साफ हो गया है की पाकिस्तानी जनता मुल्क मे लोकतंत्र चाहती है.वह की जनता ने तो अपने मन की बात बता दी है,लेकिन अब सारी जिम्मेदारी वह के सिआसतदानो पर आ गई है.संयुक्त विपच को जिसमे पीपीपी और पीमल(न) भी शामिल है को मिल कर मजबूत सरकार बनानी होगी .नेताओ को अपनी आपसी मसलों को समझदारी से सुलझाना होगा तभी भविष्य मे फौज को सत्ता पर कब्जा करने से रोक सकेंगे वरना इतिहास अपने आप ko duhrata hai.

मेरा क्या चाहें मैं रहूँ या ना ....?

मैं कल शाम को चौडा मोड़ की तरफ़ कुरियर करने गया था । लौटते समय मैं देखा की दो युवक एक रिक्सा वाले को बेदर्दी से पिटते जा रहे थे । वहां बहुत लोग इक्कठा थे लेकिन कोई भी बीच बचाव की मुद्रा में नजर नही आ रहे थे ... मुझसे रहा नही गया ....मैं आगे बढ़कर बीच -बचाव करने लगा ... मैं रिक्सा वाले की ढल बनकर खड़ा हो गया और दोनो से निवेदन करने लगा की इसको छोड़ दीजिये.... मैं देख रहा था की ये दोनों युवक मेरी बातों को धयान नही दे रहें हैं .... मैंने उनसे पूछा की आप लोग कौन हैं और क्या करते हैं ..... उनमे से एक ने जवाब दिया की मेरे पिताजी पुलिस में हैं .... फिर पूछा कि रिक्से वाले कि गलती क्या है ? ... उसने तैस में कहा कि रिक्से वाले ने अपना रिक्सा तेजी से लाकर मेरे गाड़ी में सटा दिया..... मैं थोड़े देर चुप रहा ,फ़िर पूछा कि गाड़ी में रिक्सा सटाने के कारण आप लोगों ने उसे बेरहमी से पिटा .....? यानी कि आपके पिताजी नॉएडा पुलिस में हैं तो कानून आप अपने हाथ में ले लेंगें ....? इतना कहा ही था कि महासय लोग गरम होने लगे ... तब-तक कुछ लोग और मेरा साथ देने लगे .... तभी अचानक रिक्सा वाला रोते हुए कहने लगा ...'साहब मेरा क्या है मैं चाहे जीवित रहूँ या ना रहूँ ..तिलतिल कर तो मरना ही है ... क्योंकि कानून भी हम जैसे लोगों को मार कर अपने मजबूती का दावा करता है ।' मुझे इस बात का ज्यादा दुःख नही था कि एक रिक्सा वाला मारा जा रहा है । क्योंकि ऐसी घटनाएँ तो रोज देखने के लिए मिलतीं हैं । दुःख इस बात की है कि जैसे राजनेताओ के लड़के अपने आप को सर्वोपरि समझकर कुछ भी करते हैं , कोई रोक -टोक नही होता । वैसे ही पुलिस वालों के लड़के भी कानून को अपने हाथ में लिए घूम रहें हैं ? दूसरी बात ... रिक्से वाले ने जो बात कही वह सौ फीसदी सही है ..... जो हमारे देश कि प्रशासनिक ढांचा की वास्तविकता को बताता है .... सत्येन्द्र mcrpv भोपाल

Tuesday, February 19, 2008

शुरु हो गया ताज महोत्सव-2008

पर्यटन की राजधानी मे दस दिवसीय ताज महोत्सव शुरु हो गया है। रविवार की शाम उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राजेश्वर ने शील्पग्राम मे दीप जलाकर इस महोत्सव का आगाज़ किया। महोत्सव के दौरान हर शाम देश विदेश के जाने-माने कलाकार शिल्पग्राम के मुक्ताकाशी मंच पर अपना जलवा दिखाऐगें। इस महोत्सव मे शिल्पग्राम को पारम्परिक तरीके से सजाया जाता है। यहां देश के कोने-कोने से शिल्पी और हस्त शिल्पी अपने स्टाल लगाते हैं। हालांकि इस बार अभी तक शिल्पग्राम मे व्यवस्थायें पूरी नही हो सकीं हैं। इस महोत्सव का मज़ा लेने के लिये आप कभी भी आगरा जा सकते हैं। इसमे होने वाले कार्यक्रम इस प्रकार हैं.......
01। 18-02-2008 इस्माइल दरबार नाइट
02। 19-02-2008 गुलाम अली नाइट
03। 20-02-2008 बांसुरी वादक प. हरि प्रसाद चौरसिया
04। 21-02-2008 ब्रिटिश पुलिस सिंफनी ऑर्केस्ट्रा
05। 22-02-2008 आतिफ असलम (पाकिस्तान) नाइट
06। 23-02-2008 अ. कवि सम्मलेन
ब. कुनाल गांजावाल और वसुन्धरा नाइट
07। 24-02-2008 अ. ऑल इण्ड़िया मुशायरा
ब. सा रे गा मा के मौली और हरप्रीत नाइट
08। 25-02-2008 सोनू निगम नाइट
09। 26-02-2008 हिमेश रेशमिया नाइट
10। 27-02-2008 आशा भोंसले नाइट

Monday, February 18, 2008

झूठ

कितने सवालो का अम्बार क्यों? कब? केसे? उफ़..... कंहा और केसे समेटू किस सिरे को पकड़ किस ओर तह मोडू हाँ .... सिमट तो जायेगा ओर सहज भि पर कबतक ऐसे झूठ को नापू कीर्ती वैदया

Saturday, February 16, 2008

समर

मैं लड़ रहा हूँ लगातार वर्षो से हज़ार मैं ...... तुमसे नहीं उससे नहीं दोस्तों से दुश्मनों से अन्जानो से परिजनों से किसी से नही मैं लड़ रहा हूँ झगड़ रहा हूँ कभी झुकता तो कभी अकड़ रहा हूँ पर मैं तुम लोगों से नहीं ख़ुद से लड़ रहा हूँ कभी अपने सुख कभी दुःख कभी खुशी कभी गम कहीं हारने का डर तो कभी अपना अहम् कभी तुम्हारे प्रति अपने स्नेह कभी यह नश्वर देह कभी तुम्हे खोने के भय से तो कभी ख़ुद पर विजय से किसी के नहीं ख़ुद अपने सर पड़ रहा हूँ मैं ख़ुद से ही लड़ रहा हूँ कभी अपने ईश्वर से कभी अन्दर के शैतान से और शायद कभी कभार अपने भीतर के इंसान से अपने मिथ्या अभिमान को मारने को कभी निराशा हताशा उतारने को कभी अपनी बुराइयों कभी अच्छाइयो से नाराज़ तो तुम पर हूँ पर ख़ुद पर बिगड़ रहा हूँ मैं ख़ुद से ही ........... (कहीं न कहीं यह हम सबकी कहानी है ! ) mailmayanksaxena@gmail.com

Friday, February 15, 2008

अजीब बात

हाँ, अजीब ही लगा आज, जब देखा किसी ने मेरे घर का दरवाजा खटखटाया । जान न पहचान फ़िर भी अपनी बहना बनाया

बे-वजह हमारा रोज़ हाल चाल पूछा, बड़ी फुरसत से हमारे साथ चाय का प्याला थामा ।

एक दिन हमने यूँही कह दिया भाई अपने जो टोपी पहनी है, यह किसी ओर के सर पर मैंने देखि है। लो, हो गए वो शुरू.....अंडे क्या, पडे हमे दुनिया जहाँ के डंडे....कमाल की बात तों यह की हमे दुनिया का सबसे बड़ा "भ्रमित इंसान " के नाम से नवाजा। हम पर नकारा ओर फालतू का इल्जाम डाला।

उनकी इस हरक़त से हमने मोहल्ला क्या अपना बचपन का शहर भी त्यागा।

लेकिन हद तब पार हुई जब फ़िर एक दिन उन्हे अपना दरवाजा खटखटाते पाया। दांत उनके बहार, वही बेरहम मासूम हँसी छलका वो बोले " दीदी, छोटे भाई को माफ़ी न दोगी , छोडो, अब वो पुरानी बात ....नए घर ओर शहर में हमे चाय नही पूछेंगी।

हमारी तों जान निकल गई क्या अब यह हमसे चाहते है ..खेर अपने ज़स्बतो को दबा हमने पूछा, भाई जी हमारा पता आपको किधर से मिला ?

बड़ी नमर्ता से फ़िर हमारे भाई बोले हम दीदी अब आपके ही शहर में शिफ्ट हो गए है ओर इश्वर के कृपा से आज फ़िर आपके पड़ोसी बन गए है। जैसे ही हमने पड़ोस के दरवाजे पर नज़र दौडाई आपके नाम के नेम प्लेट पाई, तुरंत समझ गए अपनी प्यारी बहना का घर है , फ़िर काहे के शर्म ओर बजा दी घंटी।

अब तक हम समझ गए थे फ़िर बदलना होगा हमे अपना घर, लकिन अबकी बार बस घर ओर मोहल्ला न के शहर ...

कीर्ति वैद्य....

ये कैसी पत्रकारिता ...?

आज सुबह जब मैं अपने ऑफिस पहुँचा ... मैंने देखा की एक न्यूज़ चैनल ज़ोर -ज़ोर से चिल्ला रहा था कि शाहरुख खान का क्रेडिट कार्ड चोरी हो गया ... ब्रेकिंग न्यूज़ - तीन लोग हिरासत में । ..... मुझे समझ में नही आ रहा है कि हमारे वरिष्ठ पत्रकार क्या जताना चाहते हैं ..... या तो अपनेआप को सर्वोपरि मान चुकें हैं ... या तो दिमागी रूप से दिवालिया हो चुकें हैं ? मैं जहाँ भी जाता हूँ ..... लोगों को यह कहते हुए पाता हूँ कि पत्रकारिता मदारियों का समूह है। आज कोई भी समर्पित पत्रकार अपने को पत्रकार बताना नही चाहता है ? यही दशा रहा तो आने वाले समय में पत्रकारों की जो दशा होगी .... उसकी कल्पना आज की परिदृश्य से लगाया जा सकता है ।

Thursday, February 14, 2008

क्या तमाशा ही देखना चाहते हैं दर्शक

आज सुबह जब ऑफिस पंहुचा तो टीवी पर एक नया तमाशा देखा प्यार के इज़हार का। वेलन्टाइन डे के मौके पर राखी सांवत के घर पंहुचा उनका आशिक अभिषेक गुलाब का गुलदस्ता लेकर... और माफी मांगने पर उसे मिले तमाचे... ये थी देश मे आज की सबसे बड़ी ख़बर। और मेरे जैसे कई टीवी पत्रकारों अपने कैमरों से लैस होकर इस तमाशे को कैद कर रहे थे। सारे चैनल्स की ब्रेकिंग न्यूज़ थी राखी और अभिषेक के बीच का ये तमाशा। हर कोई इसे अपने ही अन्दाज़ मे दिखाकर ज़्यादा से ज़्यादा टीआरपी बटोरने की फिराक मे लगा हुआ था............ मैं सोच रहा था क्या यही पत्रकारिता का असली मकसद है? क्या हम सिर्फ इसी तरह की बेमतलबी ख़बरों के लिये काम कर रहे है? इस सवाल का जवाब मुझे पता है नही। लेकिन खेल टीआरपी का है जो कुछ भी करने को मजबूर कर सकता है कुछ भी......... पत्रकारिता के अपने दस साल के सफर में मैने कई पड़ाव देखें हैं। बदलते देखा ख़बरों को... हमारी प्राथमिकता को... और कहीं ना कहीं खुद को भी.. जैसे हम आत्मसर्मपण करते जा रहे हैं केवल टीआरपी की खातिर... पांच साल तक देश के सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल मे काम किया। और ये बदलाव करीब से देखा कि आज के इस दौर मे राखी सावंत जैसे लोग ही हमारी प्रथिमकता है भले ही देश के किसी कोने मे कोई परिवार भूख से तड़प कर मरता रहे। हमे हास्य से भरपूर फूहड़ता परोसते शो दिखाने ज़रुरी हैं भले ही लाखों लोग बिना पानी और सड़कों के ज़िन्दगी गूज़ार रहे हों। देश की राजधानी के करीब ही ऐसे कई गांव मौजूद है जहां आज तक लोग मिट्टी के घरों मे रहने को मजबूर हैं लेकिन हमारे लिये उन्हे दिखाने के बजाय ये दिखाना ज़रुरी है कि कौन सी हिरोईन ने रैम्प पर कम कपड़े पहन कर कैटवॉक किया। किसने बनाया आलिशान बंगला। किस के बीच चल रहा है अफेयर और ना जाने क्या क्या......... जब भी इस बारे मे कोई पूछता है तो हम कहतें है कि क्या करें दर्शक यही देखना चाहते है। ये सवाल हम सब के लिये अहम है कि क्या वाकई हमारे दर्शक यही देखना चाहते हैं? मै यही सवाल अपने सब साथियों और दर्शकों से पूछना चाहता हूँ.... उम्मीद है आप सभी जवाब ज़रुर देगें कि आप क्या देखना चाहते हैं?

वेलेन्टाइन दिवस

ये दिन है सुर्ख गुलाबों का ग्रीटिंग्ज का और चॉकलेटों का दिल की बातों को कहने का मन भावन के संग रहने का ... हो हो हो हो आज जोडियाँ मिलतीं है भैया नही चढता कोई भी सीढियाँ उडते हैं सब अस्मानों में पाँव टिकते नहीं मैदानों में... दिलवर के लिये दिलदार हैं ये दुश्मन के लिये भी प्यार हैं ये यहाँ मेले ठेले लगते हैं और प्यार के प्याले छलकते हैं

बाज़ार बनती पत्रकारिता

"तुम हर कीमत पर सच को लोगों तक पहुँचाना, सच सच और कोवल सच, सच के सिवा कुछ नहीं,अगर उस सच से कभी तुम्हे समझौता करना पड़े, अपनी आत्मा से समझौता, तो मरना श्रेयस्कर समझना बजाय झुकने के।" समय बदला और साथ ही पत्रकारिता भी और उसकी मांग भी अब जनाब आप भरे बाज़ार में खड़े है जहाँ हर चीज़ बिकती है। ईमान भी और इंसान भी। शायद एक बिज़नेस मैन के लिए ये कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन एक पत्रकार के लिए इससे हेय शायद ही कुछ हो। ऊपर लिखी पंक्तियां श्री गणेश शंकर विद्यार्थी की हैं, एक पत्रकार की । समय आ गया है चयन आपको करना है कि हमारा न्यूज़ सेन्स राखी सावंत को न्यूज़ मानता है या एक अरब की जनसंख्या वाले देश में सड़कों पर रहने वाले हज़ारों भूखे बच्चों को जिन्हे एक व़क्त की रोटी भी नसीब नहीं।

Wednesday, February 13, 2008

कहाँ है देश ....?

महाराष्ट्रा में हो रहे आतंक से तो सभी लोग परिचित ही होंगे... उत्तर भारतीय उनके आंखों का कांटा बने हुए हैं.... राज अपने राजनीति की रोटी सेंकने के लिए तवा गरम करने का प्रयास कर रहे हैं ... राजनेताओं में वाक् युद्ध चल रही है । मुलायम , मायावती , लालू , रामविलास पासवान तथा अन्य उत्तर भारतीय नेता गण तथाकथित रहनुमा बने हुए है .... संविधान की बात करें तो सभी भारतीय नागरिक को अबाध रूप से देश के किसी भी कोने में घुमाने , रहने , व्यवसाय कराने तथा संगठन बनाने के लिए अनुमति देता है । लेकिन संविधान को कौन मानता है ? नैतिक कर्तव्य को कौन मानता है , कानून तो हाथ में रहता है ...जिसको जैसे मर्जी इस्तेमाल कर रहा है .... किसी पर कोई लगाम नही है ? राज जो कर रहें है वह ठीक नही है ... लेकिन प्रश्न उठता है कि उत्तर भारतीय नेता अपने प्रदेश में क्या कर रहे हैं .... ? जातिवाद का ज़हर घोल कर लोगों को आपस में लड़ा रहें है...... जाति पर आधारित राजनीति कर रहे है .... धर्म और जाति नेताओं का चुनावी मुद्दे होतें हैं... विकास का मुद्दा नगण्य होता है ..... सामाजिक सरोकारों की तिलांजली चढाना इन नेताओं की नियती हो गई है.... सत्ता पाने के पहले और सत्ता पाने के बाद की स्थिति में कोई अन्तर नही होता है... महाराष्ट्र हो चाहें उत्तर प्रदेश ,बिहार या बंगाल हर जगह किसान आत्महत्या कर रहें हैं ... लेकिन कोई भी राजनेता इन मुद्दों को नही उठाता है... ? हमारा देश विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है... विकास दर 8 प्रतिशत से ऊपर है... हम आधुनिकता का चोला ओढे अपने मुँह मिया मिठ्ठू बन रहें हैं .... लेकिन वास्तविकता कुछ और है ..जो देश वाशियों से छुपा नही है ... भ्रष्टाचार , बेरोजगारी , अशिक्षा , भूखमरी आज भी हमारे देश की पहचान बनी हुई है । पता नही देश का भविष्य क्या होगा ? जातिवाद , धर्मवाद , क्षेत्रवाद , भाषावाद रूपि नाग को ये नेतागण कबतक दूध पिलाते रहेंगे ? आज हर आम भारतीय नागरिक इस सोच में है की कहाँ है हमारा देश ?

Tuesday, February 12, 2008

मैं तो....... क्योंकि मैं किसान हूँ ....

नेताजी पूछे तुम कौन हो ....? मैं बोला , मैं इन्सान हूँ .... क्या तेरे पास गाड़ी है ...? हाँ मेरे पास बैलगाडी है .... नेताजी, वैश्वीकरण के इस युग में बैलगाडी.... ? हाँ , ये भारत की सवारी है ... नेताजी , अरे ! मैं तो सस्ते दर पर क़र्ज़ की व्वस्था किया है ... ? हाँ , इसीलिए मोतिया ने आत्महत्या किया है .... ? नेताजी , आत्महत्या ? ये जरूर विपक्षी पार्टी की चाल है...? मैं , नहीं ! यह तो आपके कमीशन का कमाल है ....? नेताजी , चलो ठीक है.... अब बताओ तुम्हारे घर क्या -क्या है...? मैं , जानवरों के गोबर से जलाता हूँ चूल्हा मिटटी का घर है लेकिन छत है खुला पानी इतना है ? कि बस हो पाता है कुल्ला खाने में सुखी रोटी और नसीब से दाल का दूल्हा ...? मैं तो दबा , कुचला एक इन्सान हूँ ...... ....... क्योंकि मैं भारत का किसान हूँ ...? सत्येन्द्र mcrpv भोपाल

Monday, February 11, 2008

गोवा मेरे चश्मे से -भाग १

जी, कुछ दिनों पहले गोवा घूमने का अवसर मिला, एक खूबसूरत सागर किनारे, नारियल पेडो से घिरा शहर

घूमने के लीए हमने किराये की बाईकस ली...ओर चल पड़े शहर घूमने...सबसे पहली नज़र वंहा बने घरो में गयी ...सुंदर छोटे -छोटे घर जो केले ओर नारियल पेडो से घिरे थे

खैर, हमारा पहला पड़ाव सेंट फ्रांसिस चर्च था, जो सबसे पुरानी ओर मान्य चर्च है, यंहा मोमबत्ती ज़ला जो भी मांगे, पूरा होता है , ऐसा मुझे एक स्थानिये निवासी ने बताया

वैसे तों हर मोड़ पर एक चर्च है ओर हर चर्च के बनावट दूसरी चर्च से अलग है, लेकिन सच मुझे सेंट फ्रांसिस चर्च में शांति का अनुभव हुआइस चर्च में फादर फ्रांसिस कि मृत देह संभाल कर ज्यूँ की त्युं रखी गयी है

सेंट फ्रांसिस चर्च
बाहरी और भित्री दृश्य




















अगले
भाग में पढे गोवा के फोर्ट अगोढा , समुंदरी तट और होटल्स खानापीना , शॉपिंग....

कीर्ती वैद्य ...

हाईटेक प्यार का मौसम

मौसम प्यार का हो गया हाईटेक प्रेम की भाषा मैसेजिंग , चैटिंग और मेल अब बादल नहीं ले जाते संदेश पत्र की भेष में एस एम एस जज़्बात नही जिस्म बोलते हैं सिर्फ जिस्म नहीं ! दिल रोज बदलते हैं वे दिन थे जब प्रेमिका देती थी काढायीदार रुमाल जिसमें होता था प्यार का अलग खुमार कूल है हम फिर भी फूल है ? क्योंकि , आत्मीयता ,आवेग और प्रतिबद्धता की बत्ती गुल है ।

Saturday, February 9, 2008

खुदा बचाये

मुझको बुला के घर में पूछें वो आप क्या हैं
कोई मुझे बताये ये दुआ, सलाम क्या है ।

मैने तो अपना मान कर जाने की की थी जुर्रत
बेगाना वो बना कर पूछें कि नाम क्या है ।

मै सोच कर गया था होगी मेहमाँ नवाज़ी
अनजान बन वो पूछे मुझसे कि काम क्या है ।

इस बेरुखी ने उनके किया दिल को कितना घायल
मेरा दिल ही मुझसे पूछे उनका पयाम क्या है ।

उफ़ दोस्ती से ऐसे बेज़ार हो गये हम
उनसे खुदा बचाये जिन्हे कत्ले आम क्या है ।

Friday, February 8, 2008

परवेज़ सर बनें बेस्ट क्राइम रिर्पोटर ऑफ दि ईयर

आप सभी जानते हैं कि हमारे परवेज़ सागर सर को मीड़िया जगत के प्रतिष्ठित नेशनल मीड़िया एक्सीलेन्स अवार्ड़ के लिये नामित किया गया था। आपको जानकर खुशी होगी कि गुरुवार की शाम फिक्की ऑडीटोरिमय मे आयोजित दूसरे मीड़िया एक्सीलेन्स अवार्ड़ फंक्शन मे परवेज़ सागर सर को क्राइम श्रेणी मे बेस्ट रिर्पोटर ऑफ दि ईयर अवार्ड़ से सम्मानित किया गया। ये पुरुस्कार उन्हे केन्द्रीय मंत्री मंगत राम सिंघल और झारखण्ड़ के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की उपस्थिति मे राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चन्द कटियार ने प्रदान किया। इस श्रेणी मे देशभर के 39 टीवी पत्रकारों को नामित किया गया था। ये अवार्ड़ परवेज़ सागर सर को 2007 मे आज तक पर दिखाई गयी ज़हरीली सब्ज़ियों वाली सनसनीखेज़ खंबर के लिये दिया गया। इस ख़बर के प्रसारण के बाद दिल्ली सरकार ने कई लोगों के खिलाफ कार्यवाही की थी। गौरतलब है कि इसी ख़बर के लिये परवेज़ सर को वर्ष 2007 मे ही ईएम बेस्ट रिर्पोटर ऑफ दि ईयर अवार्ड़ से सम्मानित किया जा चुका है। दस वर्षों से पत्रकारिता कर रहे परवेज़ सागर जी इससे पहले भी अपनी कई ख़बरों के लिये सुर्खियों मे बने रहें। जिसमें ताज कॉरिड़ोर, आगरा-अलीगढ के दंगे, मथुरा मे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के रिश्तेदार की ट्रेन से फेंककर हत्या और उत्तर प्रदेश के लखनऊ विकास प्राधिकरण का भूमि आवन्टन घोटाला जैसी कई बड़ी ख़बरें शामिल है। उनकी इस उपलब्धि पर उनके सिखाये गये छात्र ही नही बल्कि उनके साथ काम कर चुके और काम कर रहे सभी लोगों मे गौरव की अनुभूति है। देशभर के सभी पत्रकारों और रंगकर्मीयों की और से परवेज़ सर को हार्दिक बधाई....... हम सभी उनके उज्जवल भविष्य की कामना करतें है।

Wednesday, February 6, 2008

ऐ रंगरेज .....

ऐ रंगरेज ..... सब रंग हैं न तेरे पास ....... भर दो पीत मेरे बचपन को बाबुल के संग जब मैं रहती हूँ इठलाती इत उत जब फिरती हूँ रोती माँ है मैं जब गिरती हूँ फिर बाबु जी की गोदी होती हूँ ऐ रंगरेज ..... भर दो नील मेरे अल्हर्पण को जब मैं तितली सी उड़ती हूँ ले बलाएँ दादी कहती है कैसी सुंदर नील परी हूँ ऐ रंगरेज ..... भर दो गुलाबी मेरे यौवन को जब मैं यादों का पनघट हूँ टूटे फूटे सपनों का अम्बर हूँ धुंधली भूली टूटी खंडहर हूँ ऐ रंगरेज ..... हर लो न यह कला रंग मैं फिर जीना चाहती हूँ वह बचपन के छोटे मोटे पल जब दुनिया अच्छी है मैं भोली हूँ ..... ऐ रंगरेज ..... दे दो न मुझको यह हरा रंग बोलो न ..... क्या दोगे मुझको अपना इन्द्रधनुष ... ऐ रंगरेज ..... कीर्ती वैद्य

Monday, February 4, 2008

इस कदंब की डाली पर

इस कदम्ब के डाली पर
डलता था कभी हिंडोला
बैठा करती थी राधा
और मोहन देते झूला

फिर बजती सुरीली बंसी
गूँजे था मधुबन सारा
नाचती गोपियाँ झूमझूम
और ब्रज थिरकता प्यारा

रात चांदनी में होती थी
जब यहाँ रास की लीला
तब यमुना भी किलोल करती
मचलती बहती सलिला

रूठ मनव्वल चलती थी जब
राधा और कान्हा की
सारा गोकुल जुगत भिडाता
दोनों के मधुर मिलन की

होता फिर मिलन का उत्सव
और मधुबन सारा गाता
और कन्हैया मुरली मनोहर
भूलते विश्व की चिंता

मैंने गांधी को मारा है !

गांधीजी की पुण्यतिथि पर उनको शायद हम सबने याद किया, कुछ को याद था कुछ को याद दिला दिया गया। अच्छा लगा कि कम से कम हमारी ज़िम्मेदार ( तथाकथित ) मीडिया इस दिन को नही भूली। वैसे कई चैनल दूरदर्शन देख कर जगे होंगे, दूरदर्शन को बधाई किसी काम तो आया ....... कुछ निजी चैनल भी तैयारी के साथ आये जैसे एन डी टी वी और समय को बधाई ! एन डी टी वी देखते पर कुछ विचार फिर से उठे और शब्दों की शक्ल अख्तियार कर ली ! गांधी की प्रासंगिकता पर सवाल और जवाब की ही उलझन में पड़े हम सब हिन्दोस्तानी शायद यही सोचते हैं ! मैंने गांधी को मारा है !! मैंने गांधी को मारा है ..... हां मैंने गांधी को मार दिया !! मैं कौन ? अरे नही मैं कोई नाथूराम नहीं मैं तो वही हूँ जो तुम सब हो हम सब हैं क्या हुआ अगर मैं उस वक़्त पैदा नही हो पाया क्या हुआ अगर गांधी को मैं सशरीर नही मार सका मैंने वह कर दिखाया जो नाथू राम नही कर पाया मैंने गांधी को मारा है मैंने उसकी आत्मा को मार दिखाया है और मेरी उपलब्धि कि मैंने गांधी को एक बार नही कई बार मारा है अक्सर मारता रहता हूँ आज सुबह ही मारा है शाम तक न जाने कितनी बार मार चुका हूँगा इसमे मेरे लिए कुछ नया नहीं रोज़ ही का काम है हर बार जब अन्याय करता हूँ अन्याय सहता हूँ सच छुपाता झूठ बोलता हूँ घुटता अन्दर ही अन्दर मरता हूँ अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान करता हूँ और उसे प्रोफेश्नालिस्म का नाम देकर बच निकलता हूँ तब तब हर बार हाँ मैंने गांधी को मारा है ........ जब जब यह चीखता हूँ कि साला यह मुल्क है ही घटिया तब तब ...... जब भी भौंकता हूँ कि साला इस देश का कुछ होने वाला नही और जब भी व्यंग्य करता हूँ कि अमा यार ' मजबूरी का नाम .........' तब तब हर बार मैंने उसे मार दिया बूढा परेशान न करे हर कदम पर आदर्शो के नखरों से सो उसे मौत के घाट उतार दिया तो आज गीता कुरान जिस पर कहो हाथ रख कर क़सम खाता हूँ सच बताता हूँ कि मैंने गांधी को मारा है पर इस साजिश में मैं अकेला नहीं हूँ मेरे और भी साथी हैं जो इसमे शामिल हैं और वो साथी हैं आप सब !! बल्कि हम सब !!!! यौर होनौर आप भी ...... अब चौंकिए मत शर्मिन्दा हो कर चुप भी मत रहिये ....... फैसला सुनाइये मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है !!!!!!! हाँ दो मुझे सज़ा दो क्यूंकि मैंने गांधी को .................... - मयंक सक्सेना mailmayanksaxena@gmail.com

Saturday, February 2, 2008

विज़न २०२०

हरी नीली लाल पीली बड़ी बड़ी तेज़ रफ़्तार भागती मोटरें और उनके बीच पिसता घिसटता आम आदमी हरे भरे हरियाले पेडों के नीचे बिखरी हरी काली सफ़ेद लाल पन्नियाँ और उनको बीनता बचपन सड़क किनारे चाय का ठेला लगाती वही बुढ़िया और चाय लाता वही छोटू बडे बडे डिपार्टमेंटल स्टोरों में पाकेट में सीलबंद बिकता किसान भूख से खुदकुशी करता पांच सितारा अस्पताल का उद्घाटन करते प्रधानमंत्री की तस्वीर को घूरती सरकारी अस्पताल में बिना इलाज मरे नवजात की लाश इन सबके बीच इन सबसे बेखबर विकास के दावों की होर्डिंग्स निहारता मैं और मन में दृढ करता चलता यह विश्वास कि हां २०२० में हम विकसित हो ही जाएँगे दिल को बहलाने को ग़ालिब ....................

परवेज़ सर को शुभकामनाऐं........

आप सभी को जानकर खुशी होगी कि हमारे प्रिय सर परवेज़ सागर जी को नेशनल मीड़िया एक्सिलेंस अवार्ड के लिये नामित किया गया है। यह अवार्ड़ समारोह सात फरवरी को दिल्ली के फिक्की ऑड़ीटोरियम मे मीड़िया फेडेरेशन द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस समारोह मे देशभर के जाने-माने पत्रकारों और टीवी पत्रकारों को उनकी ख़बरों के लिये सम्मानित किया जायेगा। गौरतलब है कि वर्ष 2007 मे श्री सागर को "आज तक" पर ज़हरीली सब्ज़ियों का खुलासा करने के लिये ईएम बेस्ट रिर्पोटर ऑफ दी ईयर अवार्ड़-2007 से सम्मानित किया जा चुका है। इस ख़बर ने राजधानी समेत पूरे देश मे लोगों को बेची जा रही ज़हरीली सब्ज़ियों का पर्दाफाश किया गया था। परवेज़ सर को रंगकर्मी परिवार की ओर से ढेरों शुभकामनाऐं। हम सभी उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

सुरक्षा अस्त्र

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